/sootr/media/post_banners/47bb7a991c264dca483aaf8f33c32ee5268ffccc53ce352fe1c518ce69fc1bb7.jpeg)
MOSCOW. पूर्व सोवियत संघ (USSR) के राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव का 91 साल की उम्र में निधन हो गया। रूसी समाचार एजेंसी ने सेंट्रल क्लीनिकल अस्पताल के एक बयान के हवाले से कहा कि 30 अगस्त लंबी बीमारी के बाद उनका निधन हो गया। इसके अलावा कोई अन्य जानकारी नहीं दी गई। गोर्बाचेव ने बिना खून-खराबे के अमेरिका से चले शीत युद्ध (Cold War) को खत्म करा दिया था, लेकिन सोवियत संघ के पतन (1990) को रोकने में नाकाम रहे थे।
तत्कालीन सोवियत संघ में खुलापन और बदलाव लाए
गोर्बाचेव सोवियत संघ के अंतिम राष्ट्रपति थे। उनका का जन्म 2 मार्च 1931 को एक गरीब परिवार में हुआ था। वे जोसेफ स्टालिन के शासन में बड़े हुए और सेकंड वर्ल्ड वॉर में जर्मनी के कब्जे के अनुभव से गुजरे। युद्ध के बाद उन्होंने मॉस्को में कानून की पढ़ाई की थी। उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी में अपना करियर बनाया और साम्यवाद में सुधार करने की मांग की। उन्हें ग्लासनोस्त (खुलेपन) और पेरेस्त्रोइका (परिवर्तन) की अवधारणाओं के लिए जाने जाते हैं।
1985 में चुने गए सोवियत संघ के नए नेता, नोबेल पीस अवॉर्ड भी मिला
गोर्बाचेव 1985 में सोवियत संघ के नए नेता चुने गए। वह 1985 से 1991 तक सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी के जनरल सेक्रेटरी थे। 1988 से 1989 तक वह सुप्रीम सोवियत के प्रेसिडियम के अध्यक्ष रहे। 1988 से 1991 तक वह स्टेट कंट्री हेड रहे। 1989 से 1990 तक उन्होंने सुप्रीम सोवियत के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया।
नोबेल समिति ने मिखाइल गोर्बाचेव 1990 में शांति पुरस्कार से सम्मानित किया था। तब समिति ने उन्हें यह अवॉर्ड देते हुए कहा था- पिछले कुछ सालों में पूर्वी और पश्चिमी देशों के रिश्तों में नाटकीय बदलाव देखने को मिले। तनातनी की जगह बातचीत ने जगह ले ली। पुराने यूरोपीय राष्ट्र राज्यों ने अपनी स्वतंत्रता फिर से हासिल कर ली है, हथियारों की दौड़ धीमी हो रही है। हम निरस्त्रीकरण (Disarmamemnt) की दिशा में एक निश्चित और सक्रिय प्रक्रिया देख रहे हैं।
सोवियत टूटने पर अफसोस जताया था
मॉस्को में 25 दिसंबर 1991 को पूर्व सोवियत संघ के राष्ट्रपति गोर्बाचेव ने टीवी पर राष्ट्र के नाम अपने संदेश में इस्तीफे की घोषणा की थी। गोर्बाचेव ने अपने संस्मरणों में लिखा- “मुझे आज भी इसका दुख है कि मैं अपने जहाज को शांत समुद्र तक नहीं ला सका और देश में सुधार पूरा करने में विफल रहा।” हालांकि, कुछ लोगों का मानना है कि 1985 में सत्ता में आए गोर्बाचेव ने अगर राजनीतिक प्रणाली पर लगाम रखते हुए, सरकार के नियंत्रण वाली अर्थव्यवस्था को आधुनिक बनाने के प्रयास और मजबूती से किए होते तो सोवियत संघ का टूटना रोका जा सकता था।