म्यांमार. म्यांमार (Myanmar) के रोहिंग्या (Rohingya) नरसंघार में पीड़ित हुए लोगों के वकीलों ने अमेरिका (USA) के कैलीफॉर्निया (California) में सोशल मीडिया (Social Media) कंपनी फेसबुक (Meta) पर केस किया है। जिसमें उन्होंने फेसबुक पर हिंसा भड़काने और नफरत फैलानी वाली पोस्टस् पर रोक न लगने का आरोप लगाया है। म्यांमार में हुए इस नरसंघार में हजारों मुस्लमानों की जान चली गई थी। साथ ही लाखों लोग के घरों को निशाना बनाया गया था। स्थितियां इतनी अधिक बिगड़ी की लोग अपने देश को छोड़ने के लिए मजबूर हो गए थे। नरसंघार से पीड़ित लोगों ने अलग-अलग देशों में शरणा ली थी। वह लोग मुश्किल हालातों में अपनी जिंदगी बसर कर रहें हैं। अधिकतम लोग बांगलादेश (Bangladesh) में रहने लगे थे, तो बड़ी संख्या में भारत (India) भी आए थे।
फेसबुक से हर्जाने की मांग
रोहंगिया मुस्लमानों ने फेसबुक (Facebook) की मूल कंपनी मेटा पर मुकदम्मा दर्ज करते हुए 15 हजार डॉलर यानी 11.3 लाख करोड़ भारतीय रुपए के हर्जाने की मांग की। म्यांमार के सैन्य शासकों और उनके समर्थकों की हिंसा और नफरत फैलाने वाली पोस्ट को रोकने के लिए कोई भी ठोस कदम नहीं उठाया गया। जिससे हजारों लोगों को उनकी जान गवानी पड़ी।
फेसबुक पर सांप्रदायिक सौहार्द्र बिगाड़ने का आरोप
रोहिंग्या मुस्लमानों के वकीलों का कहना है कि फेसबुक के म्यांमार में आने के बाद से हिंसा भडकाने और नफरत फैलाने वाली सामग्री का तेज़ी से प्रसार हुआ और आगे चलकर उनका नरसंघार (Genocide) हुआ। इस मामले की जांच कर रहे संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने 2018 में कहा था की 'फेसबुक ने म्यामांर में नफरत फैलाने वाली पोस्ट के प्रसार में भूमिका निभाई थी' म्यांमार में फेसबुक ने 2011 में कदम रखा था। इससे पहले कई देशों ने भी फेसबुक पर सांप्रदायिक सौहार्द्र बिगाड़ने के आरोप लगे हैं।
हिंसा में दस हजार से ज्यादा रोहिंग्या मारे गए थे
फेसबुक पर केस करने वाली लॉ फर्म के अनुसार इस नरसंघार में 10,000 से ज्यादा लोगों की जान गई और 1.5 लाख से ज्यादा रोहिंग्याओं को प्रताणना झेलनी पड़ी। केस में कहा गया है कि फेसबुक ने नफरत भरी पोस्टस् को फैलने से रोकने का कोई खास इंतजाम नहीं किया।
2017 में हुई था रोहिंग्याओं का नरसंघार
म्यांमार में हुए इस कांड के बाद करीब 10 लाख रोहिंग्या बांगलादेश में पलायन कर वहां शरण लेने पर मज़बूर हो गए और करीब 10 हजार शरणार्थियों को संयुक्त राष्ट्र की योजना के तहत अलग-अलग देशों में शरण दिलाई गई।
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