इस्लामाबाद. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की कुर्सी खतरे में है। उनके खिलाफ पेशअविश्वास प्रस्ताव पर 3 अप्रैल को वोटिंग होनी है। इमरान का पद बचा पाना काफी मुश्किल नजर आ रहा है। विपक्ष का कहना है कि अपने साढ़े तीन साल के कार्यकाल में इमरान नया पाकिस्तान का सपना पूरा कर पाने में नाकाम रहे और देश की अर्थव्यवस्था को गर्त में धकेल दिया।
आंकड़े बताते हैं कि 2018 के बाद से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था की हालत खराब होती जा रही है। जहां एक तरफ देश की जीडीपी में जबर्दस्त गिरावट जारी है, वहीं महंगाई का आंकड़ा भी डबल डिजिट में है। इसके अलावा डॉलर के मुकाबले पाकिस्तानी रुपया भी लगातार गिरावट के नए रिकॉर्ड बना रहा है। समझिए, आखिर कैसे इमरान का नया पाकिस्तान बनाने का सपना नेस्तनाबूत हुआ...
1. महंगाई दर को कम करने में नाकाम: सेना के समर्थन के बावजूद इमरान सरकार के लिए अपने वादे निभाना काफी मुश्किल साबित हुआ। सामाजिक असमानता और गरीबी के मुद्दे पर इमरान सरकार फेल साबित हुई। इमरान के पिछले तीन साल के कार्यकाल में पाकिस्तान में खाद्य महंगाई दर दो अंकों में ही रही। पाकिस्तान में महंगाई दर में सबसे ज्यादा उछाल नवंबर 2021 में आया। ताजा आंकड़ों के मुताबिक, पाकिस्तान में खुदरा महंगाई दर 12% से ज्यादा है, वहीं थोक महंगाई दर तो 23.6% के ऊपर ही है।
2. आर्थिक विकास दर बढ़ने के बजाय गिरी: दुनिया के सबसे युवा देशों में शुमार पाकिस्तान की आर्थिक विकास दर 2018 में 5.8% पर थी, जबकि अगले वित्त वर्ष में ही यह दर 0.99% गिर गई। विश्व बैंक के मुताबिक, 2020 में एक बार फिर विकास दर में 0.53% की गिरावट आई। मौजूदा वक्त में पाकिस्तान की आर्थिक विकास दर 3.6% पर है।
3. रुपए की गिरती वैल्यू: पाकिस्तान आर्थिक तौर पर कितना पिछड़ गया, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अगस्त 2018 में इमरान सरकार बनने से ठीक पहले डॉलर के मुकाबले पाकिस्तानी रुपए की कीमत 123 थी, अब एक डॉलर की कीमत 183 पाकिस्तानी रुपए है। इमरान के पीएम रहते पाकिस्तानी रुपये की वैल्यू 33% यानी एक-तिहाई तक गिर गई है। एक साल से कम समय में ही डॉलर के मुकाबले यह 12% कमजोर हुआ। किसी देश की मुद्रा की कीमत गिरने का असर उसकी आबादी पर भी पड़ता है। खासकर गरीब लोगों पर इसकी मार सबसे ज्यादा पड़ती है। दरअसल, करंसी कमजोर होने से आयातित चीजें महंगी हो जाती हैं। पाकिस्तान अपनी जरूरत की कई चीजें इम्पोर्ट करता है।
4. पाक का बढ़ता कर्ज: अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुताबिक, पाकिस्तान पर विदेशी कर्ज बढ़कर 90 अरब डॉलर (करीब 6.86 लाख करोड़ पाकिस्तानी रुपए) हो गया है। इसमें चीन से लिए कर्ज की हिस्सेदारी 20% है। पाकिस्तान की जीडीपी में विदेशी कर्ज का ही करीब छह फीसदी से ज्यादा हिस्सा है। इस हफ्ते पाकिस्तान को चीन को 4 अरब डॉलर का कर्ज चुकाना था, लेकिन उसने चीन से इस कर्ज को चुकाने के लिए और समय मांगा। एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी) की रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान ने अकेले कोरोनावायरस महामारी के दौर में ही 10 अरब डॉलर यानी 1.83 लाख करोड़ पाकिस्तानी रुपए का कर्ज ले लिया।
5. आर्थिक सुधार ना कर पाने से जबर्दस्त नुकसान: इमरान का देश में आर्थिक सुधार ना कर पाने का उल्टा असर उनके बाकी वादों पर भी पड़ा। उनका एक करोड़ नई नौकरियों को पैदा करने का वादा अब तक अधूरा है। इन स्थितियों को बदलने के बजाय इमरान अब तक अपने वित्त मंत्री को ही चार बार बदल चुके हैं। आतंकवाद को खत्म ना कर पाने की वजह से आतंकरोधी संस्था फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की ओर से लगाए गए प्रतिबंधों ने भी पाकिस्तान में विदेशी कंपनियों की ओर से निवेश में भारी कमी आई।