TAIPEI. चीन की धमकियों के बीच अमेरिकी सदन की स्पीकर नैंसी पेलोसी 2 अगस्त को ताइवान पहुंच गईं। उनका प्लेन ताइपे के एयरपोर्ट पर उतरते ही चीन बौखला गया। चीन के विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है कि अमेरिका खतरनाक जुआ खेल रहा है और अब जो गंभीर नतीजे होंगे, उसकी जिम्मेदारी अमेरिका को लेनी होगी।
अमेरिका डेमोक्रेसी का समर्थन करता है
ताइवान पहुंचने पर नेंसी पेलोसी और कांग्रेस डेलिगेशन की तरफ से बयान आया कि यूनाइटेड स्टेट्स हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स के स्पीकर द्वारा 25 साल में यह पहला दौरा है। बयान में लिखा गया है कि वे (नेंसी पेलोसी) ताइवान के जीवंत लोकतंत्र का समर्थन करती हैं। बयान में आगे लिखा गया है कि यह ट्रिप सिर्फ इंडो-पैसेफिक बॉर्डर ट्रिप का हिस्सा है। सिंगापुर, मलेशिया, साउथ कोरिया और जापान भी इसका हिस्सा हैं।
पेलोसी के दौरे का विरोध कर रहा था चीन
चीन लगातार नैंसी पेलोसी के ताइवान दौरे का विरोध कर रहा था। चीन का कहना है कि अमेरिका अब तक 'वन चाइना' के सिद्धांत को फॉलो करता रहा है। ऐसे में अब ताइवान के अलगाववाद को समर्थन करना अमेरिका का वादा तोड़ने जैसा है। चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने पिछले दिनों कहा था कि अगर पेलोसी का प्लेन ताइवान की तरफ गया तो उसे उड़ाया जा सकता है। बाद में ये भी कहा गया कि चीनी एयरफोर्स के एयरक्राफ्ट पेलोसी के विमान को घेर लेंगे। ये धमकियां कोरी साबित हुईं।
ताइवान और अमेरिका भी तैयार
रिपोर्ट्स के मुताबिक अमेरिका और ताइवान की सेनाएं चीन से निपटने के लिए तैयारी कर चुकी हैं। अमेरिकी नेवी के 4 वॉरशिप हाईअलर्ट पर हैं और ताइवान की समुद्री सीमा में गश्त कर रहे हैं। इन पर एफ-16 और एफ-35 जैसे हाईली एडवांस्ड फाइटर जेट्स और मिसाइलें मौजूद हैं। रीपर ड्रोन और लेजर गाइडेड मिसाइलें भी तैयार हैं। अगर चीन की तरफ से कोई हिमाकत की गई तो अमेरिका और ताइवान उस पर दोनों तरफ से हमला कर सकते हैं।
कहा जा रहा है कि चीन ने कार्रवाई के लिए लॉन्ग रेंज हुडोंग रॉकेट और टैंक तैयार रखे हैं। उसके पास ताइवान स्ट्रेट में दूसरे मिलिट्री इंस्टॉलेशन्स भी हैं। इनका इस्तेमाल वो कर सकता है। अमेरिकी फौज की इन हरकतों पर पैनी नजर है। USS रोनाल्ड रीगन वॉरशिप और असॉल्ट शिप हाईअलर्ट पर हैं।
इस बात पर है चीन और ताइवान की जंग
ताइवान और चीन के बीच जंग काफी पुरानी है। 1949 में कम्युनिस्ट पार्टी ने सिविल वार जीता था। तब से दोनों हिस्से अपने आप को एक देश तो मानते हैं, लेकिन इस पर विवाद है कि राष्ट्रीय नेतृत्व कौन सी सरकार करेगी। चीन ताइवान को अपना प्रांत मानता है, जबकि ताइवान खुद को आजाद देश मानता है। दोनों के बीच अनबन की शुरुआत सेकंड वर्ल्ड वॉर के बाद हुई। उस समय चीन के मेनलैंड में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और कुओमितांग के बीच जंग चल रही थी।
1940 में माओत्से तुंग के नेतृत्व में कम्युनिस्टों ने कुओमितांग पार्टी को हरा दिया। हार के बाद कुओमितांग के लोग ताइवान आ गए। उसी साल चीन का नाम 'पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना' और ताइवान का 'रिपब्लिक ऑफ चाइना' पड़ा। चीन ताइवान को अपना प्रांत मानता है और उसका मानना है कि एक दिन ताइवान उसका हिस्सा बन जाएगा। वहीं, ताइवान खुद को आजाद देश बताता है। उसका अपना संविधान है और वहां चुनी हुई सरकार है।
ताइवान चीन के दक्षिण पूर्व तट से करीब 100 मील दूर एक आइसलैंड है। चीन और ताइवान, दोनों ही एक-दूसरे को मान्यता नहीं देते। अभी दुनिया के केवल 13 देश ही ताइवान को एक अलग संप्रभु और आजाद देश मानते हैं।