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NEW DELHI/KINGSTON. ट्रैक एंड फील्ड में अमेरिका, स्वीमिंग, बैडमिंटन, टेबल टेनिस में चीन, जिमनास्टिक, रेसलिंग में पहले USSR और फिर रूस, तैराकी, डाइविंग, में जापान-साउथ कोरिया, बॉक्सिंग में क्यूबा का दबदबा रहा। स्वीमिंग में अमेरिका के मार्क स्पिट्ज, मैट बियोंडी से लेकर माइकल फेल्प्स को कौन नहीं जानता। फेल्प्स तो जीते जी किंवदंती बन गए। जिमनास्टिक में 10 में से 10 लेने वाली दो खिलाड़ी हुई हैं- रोमानिया की नाडिया कोमोनेशी और चीन की लू ली। 1936 में ही अमेरिका के जेसी ओवेंस ने 4 गोल्ड जीते। 100 मी., 200 मी., लॉन्ग जंप और 100X4 मीटर रिले। ट्रैक एंड फील्ड में अमेरिका ने लंबे समय तक ताज अपने पास रखा। कमाल के एथलीट दिए। लॉन्ग जंपर बॉब बीमन, 9 ओलंपिक गोल्ड जीतने वाले कार्ल लुइस, माइकल जॉनसन (200 और 400 मीटर में रिकॉर्डधारी), माइक पॉवेल (लॉन्ग जंप में रिकॉर्ड होल्डर), मॉरिस ग्रीन (2000 के सिडनी ओलंपिक में 100 मीटर चैंपियन)।
मॉडर्न ओलंपिक की शुरुआत यानी 1896 से लेकर अब तक 100 मीटर रेस का जलवा रहा है। 100 मीटर चैंपियन यानी धरती का सबसे तेज धावक। ओलंपिक के मुरीद इसे देखने के लिए 4 साल इंतजार करते हैं। 10 सेकंड में ये लोग ट्रैक पर आग लगा देते हैं। 1984 में कार्ल लुइस, 1988 में बेन जॉनसन जीते थे पर डोप टेस्ट में फेल होने के बाद जॉनसन का गोल्ड लुइस को मिल गया। 92 में लिनफर्ड क्रिस्टी, 96 में डोनोवन बैली, 2000 में मॉरिस ग्रीन, 2004 में जस्टिन गैटलिन चैंपियन रहे। 1896 से 2004 तक हर ओलंपिक में 100 मीटर चैंपियन बदलता रहा। वजह सिर्फ दमखम है। 4 साल तक उस मजबूती के लिए बहुत मेहनत लगती है।
एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी स्प्रिंटर हैं बोल्ट
पर 2008 से 2016 तक एक एथलीट ने इतिहास रचा। 21 अगस्त 1986 को जमैका में जन्मे यूसेन सेंट लियो बोल्ट। 3 ओलंपिक में 100 मीटर फर्राटा में अपना वर्चस्व बनाए रखा। वे अपनी असाधारण काबिलियत के बल पर ऐसा करने में कामयाब हुए। 88 में बेन जॉनसन ने 100 मीटर 9.79 सेकंड्स में पूरी की, पर स्टेरॉयड के दोषी पाए गए। बोल्ट ने 9.58 सेकंड में 100 मीटर दौड़कर ऐतिहासिक कीर्तिमान बनाया। बोल्ट का ओलंपिक करियर---3 ओलंपिक, 100 मी, 200 मी और 4X100 मीटर रिले चैंपियन। कुल 8 ओलंपिक गोल्ड।
100 मीटर में ये टाइमिंग
- बीजिंग ओलंपिक 2008- 9.69 सेकंड
मैंने दर्द में भी दौड़ना सीखा- बोल्ट
बोल्ट अपनी आत्मकथा में लिखते हैं कि एक वक्त एथलीट का शरीर हथियार डालने की पुरजोर कोशिश करता है, आराम चाहता है। उस तीव्र छटपटाहट वाले समय को कोच द मूमेंट ऑफ रिटर्न कहते हैं। ये एक ऐसा बिंदु है, जहां चीजें बदल जाती हैं। अगर एथलीट उस दौरान बैठ गया तो पहले का पूरा दर्द सहने का मतलब नहीं रह जाएगा। मांसपेशियां और मजबूती से नहीं उभरेंगी। लेकिन दो तीन कदम चल लिए, तब शारीरिक रूप से मजबूती टिकने लगती है। ये मानसिक खेल भी है। मैंने दर्द में भी दौड़ना सीखा। कोच कहते थे कि क्या पता ओलंपिक फाइनल में भी दर्द महसूस होने लगे। अगर तुमने ट्रेनिंग में दर्द सहना नहीं सीखा तो शायद मेडल न जीत पाओ। मैं बड़ी चैंपियनशिप के लिए बना हूं। सामान्य जगहों पर वैसी ललक और भूख नहीं रह पाती। मैंने अपने प्रतिद्वंद्वियों के इमोशन पढ़ना सीख लिया है।
ऐसी है बोल्ट की फिजीक
रिसर्चर्स ने पाया कि बोल्ट का बायां यानी लेफ्ट पैर, दाहिने यानी राइट पैर से 12% कम ऊर्जा पैदा करता है। स्कोलियोसिस के चलते उनका उल्टा पैर, सीधे पैर की अपेक्षा एक इंच छोटा है। इसलिए वे एक पैर ज्यादा फोर्स पैदा करते हैं। सामान्य रूप से स्प्रिंटर्स की हाइट 6 फीट होती है, बोल्ट 6 फीट 5 इंच के हैं।
पहले कोच ये बोलते थे कि आपको 100 मीटर नहीं, बल्कि 400 मीटर रेस दौड़ना चाहिए। लेकिन बोल्ट 100 मीटर ही दौड़ना चाहते थे और उन्होंने यही किया।
बोल्ट की खासियत
वे 60-70 मीटर में अपनी टॉप स्पीड हासिल कर लेते थे। उनसे कम हाइट के स्प्रिंटर्स छोटे कदमों के कारण उनसे तेज दौड़ सकते हैं, लेकिन बोल्ट सबसे तेज हैं। आखिर बोल्ट ये कैसे कर पाते हैं? स्पोर्ट्स साइंटिस्ट कहते हैं कि 100 मीटर रेस तेज शुरुआत से नहीं, बल्कि अंत में धीमे नहीं पड़ने से जीती जाती है। बोल्ट आखिरी तीस मीटर में अपनी स्पीड ज्यादा नहीं गिरने देते और पीछे से आगे निकलकर रेस जीत लेते हैं। एक स्प्रिंटर हवा में तेज पैर चलाने से एक्सलरेट नहीं करता, बल्कि एक्सलरेशन इस बात पर निर्भर करता है कि उसका पैर कितनी तेजी से धरती को पीछे धकेलता है। एक शानदार स्प्रिंटर बॉडी वेट का 5 गुना फोर्स पैदा कर सकता है। बोल्ट अपने सीधे पैर से 455 किलो से ज्यादा का फोर्स कर लेते हैं। कुल मिलाकर कहें तो बोल्ट साइंस, टेक्नीक और बैलेंस का बेहतरीन तालमेल बैठाकर चैंपियन बनना जानते हैं।
मजाकिया लेकिन दृढ़
ओलंपिक में 100 मीटर रेस फाइनल का स्टार्ट यानी वो जगह जहां अच्छे से अच्छा स्प्रिंटर कांप जाए। बोल्ट कहते हैं कि उस समय में ये सोचता हूं कि आज रात में क्या खाऊंगा या इसी तरह की बातें सोचता हूं। हालांकि बोल्ट कुछ भी कहें, उनकी ताकत उनकी प्रैक्टिस में छिपी है। बोल्ट कहते हैं कि मेरे कोच कभी मुझे अच्छा नहीं बोलते। मैं कितना भी अच्छा दौड़ लूं, मैं उनसे पूछूं कि मेरी रेस टेक्नीक अच्छी है तो उनका जवाब होता है- NO। कोच मिल्स तब बोल्ट को मिले, जब यूसैन चोटों से परेशान थे। लोग ये मानने लगे थे कि ये लड़का स्प्रिंट में कुछ खास नहीं कर पाएगा। लेकिन एक दिन यही लड़का असाधारण चैंपियन बना।
क्या कहते हैं बोल्ट?
यूसैन बोल्ट कहते हैं कि लोग मुझे दौड़ता देखकर कहते हैं कि आप स्प्रिंट को कितना सरल बना देते हैं। मैं कहता हूं कि सब बहुत कठिन है। हर दिन सुबह शाम सैक्रिफाइस है। जब आप पूरी दम लगाकर ट्रेनिंग करते हैं तो शरीर कहता है रुक जाओ। कई बार सुबह लगता है कि ना जाऊं, घर पर आराम करूं। लेकिन जाता हूं, ट्रेनिंग रेस से बहुत टफ होती है। बोल्ट कहते हैं कि कुछ सालों बाद हमारे पास दौड़ने की मुरम (मिट्टी) नहीं बचेगी, क्योंकि ये तो तुम पीठ पर लगाकर घर ले जा रहे हो। बोल्ट के मुताबिक, आप रेस में कॉन्फिडेंस नहीं ढूंढ सकते, इसकी तैयारी तो पहले से ही करनी पड़ेगी। रेस में मैं ये नहीं सोच सकता है कि बगल वाला एथलीट मुझे हरा देगा। अगर वो वर्ल्ड चैंपियन भी है तो मुझे अपनी सबसे अच्छी रेस दौड़नी है। क्या पता कि उसका बुरा दिन हो। मैं अपने ऊपर प्रेशर नहीं आने देता। मुझे कोच ने यही सिखाया था कि लंबा जीतना है तो कुछ हारना सीखो। हमें हार को पचाना और उसका फायदा उठाना आना चाहिए।
बोल्ट कहते हैं कि पूरी ट्रेनिंग जरूरी है। सही मेंटल स्ट्रेंथ आखिरी सेट में आती है, तब इच्छा होती है कि बस अब घर चलें। आपको इसी बैरियर के पार जाना है। इसी मेंटल बैरियर को धक्का लगाना ही Improvement है।