मई में होगी किंग चार्ल्स की ताजपोशी, महारानी नहीं पहनेंगी कोहिनूर जड़ा ताज, कारण- कोहिनूर है शापित हीरा

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Rajeev Upadhyay
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मई में होगी किंग चार्ल्स की ताजपोशी, महारानी नहीं पहनेंगी कोहिनूर जड़ा ताज, कारण- कोहिनूर है शापित हीरा

International Desk. दुनिया का सबसे मशहूर हीरा कोहिनूर, जिसकी आज तक कोई कीमत ही नहीं लगा पाया। इसे टावर ऑफ लंदन में डिस्प्ले किया जाना है, यह मई महीने में जनता के लिए खोला जाएगा। दरअसल मई माह में ही ब्रिटेन में किंग चार्ल्स तृतीय की ताजपोशी का कार्यक्रम है। इस दौरान उनकी पत्नी महारानी कंसॉर्ट कैमिला को कोहिनूर हीरे से जड़ा ताज नहीं पहनाया जाएगा। 



बताया जा रहा है कि कोहिनूर के इतिहास की जानकारी को टॉवर ऑफ लंदन में साझा किया जाएगा। लेकिन माना जा रहा है कि महारानी को कोहिनूर जड़ा हुआ ताज इसलिए नहीं पहनाया जाएगा, क्योंकि ब्रिटेन भी अब यह मानने लगा है कि कोहिनूर एक शापित हीरा है। क्या है कोहिनूर हीरे के शापित होने की किंवंदियां देखिए इस रिपोर्ट में..



कहते हैं न कि जो चीज जितनी सुंदर हो, उसके नुकसान भी उतने ही होते हैं। तो चलिए हम आपको बताते हैं कि कोहिनूर हीरे से जुड़ी कुछ किंवदंतियां और उसके श्राप के बारे में जो काफी प्रचलित हुए। आज हम आपके सामने कोहिनूर हीरे के बारे में ऐसी जानकारी और रहस्य लाए है जो काफी चौंकाने वाले हैं।  वैसे तो कोहिनूर हीरा अब भी ब्रिटेन के कब्जे में है और वहां की महारानी के ताज में जड़ा हुआ है। तो आइए शुरू करते हैं कोहिनूर हीरे से जुड़े इस रहस्यमय सफर को । 




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  • गोलकुंडा की खदानों में मिला था



    दुनिया के सबसे बड़े हीरे कोहिनूर की कहानी आज से 800 साल पहले तब शुरू हुई जब आंध्र प्रदेश के गुंटूर की गोलकुंडा खदानों में यह मिला था। कहा जाता है कि दुनिया के करीब-करीब हर प्रसिद्ध हीरा इस खदान में मिल चुका है। वेल नोन आर्कियन रॉक्स के बीच बनी एक ट्यूब आंध्रप्रदेश के गुंटूर की गोलकुंडा खदानों के पास फूटी होगी जिस कारण यहां इतने बेशकीमती हीरे मिलते हैं। इस खदान में दरियाई नूर. नूर-उन-ऐन, ग्रेट मुगल, ओरलोव आगरा डायमंड, अहमदाबाद डायमंड और ब्रोलिटी ऑफ इंडिया जिसे कई हीरे मिले हैं। 



    राजाओं का राज्य और सुल्तानों की सल्तनत हुई तबाह

    इस खूबसूरत और बेशकीमती हीरे को लेकर कई मान्यताए है जिसके आधार पर इससे एक शापित हीरा कहा जाता है। इसके शापित होने की बात 13वीं सदी से चली आ रही है। इसे शापित इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि इस हीरे की चमक-दमक के पीछे बहुत सारे राजाओं ने अपनी जान भी गंवाई। कोहिनूर को शापित साबित करने के लिए इतिहास में ऐसी कई घटनाए हुई है जिससे इसके शापित होने के सबूत मिले हैं।   ‘कूह-ए-नूर’  एक फ़ारसी शब्द है जिसका हिंदी मतलब रोशनी का पर्वत होता है, पर यह हीरा जहां भी गया वहां पर विनाश ही हुआ ,देखते ही देखते वह सब बर्बाद हो गया। कई राजाओं का राज्य और सुल्तानों की सल्तनत तहस-नहस हो गई. राजाओं के चमकते सितारे गर्दिश में चले गए। 



    काकतीय वंश के पास था, मालिक काफूर ने छीना



    सन 1306 के आसपास इस हीरे को अपनी पहचान मिलने लगी। जिसने इसे पहचाना उसने यह भी साफ कर दिया था कि इस हीरे का मालिक संसार पर राज तो करेगा लेकिन उसके साथ ही दुर्भाग्य भी उसकी किस्मत का हिस्सा बन जाएगा। इस हीरे की सफर की शुरुआत काकतीय वंश के साथ हुई थी जहां से कोहिनूर को मलिक काफूर लूट कर लाया और अलाउद्दीन खिलजी को दे दिया। खिलजी से यह हीरा तुगलक वंश के पास आया। उसके बाद यह हीरा मुगलों के हाथ लगा, इतिहास गवाह है कि जिनके पास यह हीरा पहुंचा, शुरू में उनका वर्चस्व खूब परवान चढ़ा, लेकिन बाद में उनका बुरी तरह अंत हो गया.शाहजहां को पहले तो पत्नी ने छोड़ा, फिर बेटे ने नजरबंद कर सत्ता हथिया ली. शाहजहां ने कोहिनूर हीरे को अपने मयूर सिंहासन (तख्त ए ताउस) में जड़वाया था।



    नादिर शाह की भी हो गई थी हत्या



    इसके बाद मुगलों के कमजोर होते ही भारत पर नादिर शाह का आक्रमण हुआ। 1739 में नादिर शाह ने इस हीरे को अपने कब्जे में लिया, इतिहास के मुताबिक नादिर शाह ने मुगलों को हरा कर हीरा अपने कब्जे में लिया और कोहिनूर को पर्शिया लेकर चला गया। नादिर शाह से पहले इस हीरे का नाम कुछ और था लेकिन नादिर शाह ने इसकी भव्यता और खूबसूरती देखकर उसे कोहिनूर का नाम दिया। फारसी में इसे कूह-ए-नूर यानी कि रोशनी का पहाड़ कहते हैं, कोहिनूर ले जाने के ठीक 8 साल बाद  यानि 1747 में  नादिर शाह की हत्या कर दी गई यानी, कोहिनूर ने यहां भी अपना रंग दिखा दिया।



    नादिर शाह के बाद कोहिनूर हीरा  अफगानिस्तान के सुल्तान अहमद शाह दुर्रानी के वंशज शाह शुजा दुर्रानी के पास आया, लेकिन यहां भी दुर्रानी की सत्ता जाती रही। शुजा दुर्रानी हीरा लेकर अफगानिस्तान से भागा और पंजाब पहुंचा। यहां उसने कोहिनूर को राजा रणजीत सिंह के हवाले कर दिया। महाराजा रणजीत सिंह इसे अपने ताज में पहना करते थे, रणजीत सिंह की मौत के बाद 1839 में हीरा उन बेटे दिलीप सिंह को उत्तराधिकारी के रूप में सौंपा गया। इसके बाद यह हीरा रणजीत सिंह के बेटे दिलीप सिंह को विरासत में मिला।



    दिलीप सिंह के जरिए पहुंचा इंग्लैंड



    उसके बाद अंग्रेजों ने रणजीत सिंह के साम्राज्य और सिखों पर आक्रमण बोल दिया । आक्रमण में सिखों को हराकर दिलीप सिंह से संधि कर ली और अंग्रेजों ने कोहिनूर को अपने कब्जे में ले लिया। कब्जा करने के एक साल बाद यानी 1850 में इसे बकिंघम पैलेस में महारानी विक्टोरिया के सामने पेश किया गया। जिसके बाद मशूहर डच फर्म कोस्टर ने इसे 38 दिनों तक शेप दिया। शेप मिलने के बाद यह 108.93 कैरेट रह गया। जिसके बाद इसे रानी के ताज का हिस्सा बनाया गया। इस हीरे के प्रभाव से इंग्लैंड का शाही परिवार भी अच्छी तरह वाकिफ था और इसलिए इससे  बचने के लिए इंग्लैंड की महारानी ने नियम बनाया कि इसे कोई महिला ही धारण करेगी। माना जाता है कि इससे भी कोहिनूर हीरे की मनहूसियत खत्म नहीं हुई और दुनिया भर में फैली अंग्रेजों की हुकूमत खत्म हो गई।


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