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DELHI. समलैंगिक, ट्रान्सजेंडर कम्यूनिटी ने अपने रक्तदान पर लगे प्रतिबंध को रद्द करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर करके गे, ट्रान्सजेंडर समुदाय का खून दूसरे लोगों में डोनेट करने के बाहिष्कार को जायज ठहराया है। केन्द्र का कहना था कि इस बात के वैज्ञानिक प्रमाण हैं कि ऐसे लोगों में एचआईवी, हेपेटाइटिस बी, हेपेटाइटिस सी का खतरा ज्यादा होता है। समलैंगिक लोगों के बल्ड डोनेशन पर साल 1980 के दशक में ही प्रतिबंध लगा दिया गया था। ये वो दौर था जब आज के मुकाबले में एचआईवी/एड्स जैसी बीमारियों का पता लगाने के लिए ज्यादा टूल्स नहीं थे। बता दें कि ये प्रतिबंध सभी सेक्सुअली एक्टिव समलैंगिक पुरुषों, बाइसेक्सुअल पुरुषों और ट्रान्सजेंडर महिलाओं पर लागू होता है।
भारत में ट्रांसजेंडर की स्थिति
2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में 4.9 लाख ट्रांसजेंडर हैं (जिनमें से मात्र 30,000 चुनाव आयोग में पंजीकृत हैं), लेकिन उनकी वास्तविक संख्या इससे कई गुना ज्यादा अनुमानित है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 2014 में दिए गए ऐतिहासिक फैसले के अनुसार अब देश में तीसरे लैंगिक पहचान को कानूनी मान्यता प्राप्त है। ट्रांसजेंडर्स को पुरुष, महिला या तीसरे लिंग के रूप में अपने स्वयं की पहचान तय करने का अधिकार है। साथ ही भारत के संविधान के तहत दिए गए सभी मौलिक अधिकार उन पर समान रूप से लागू होते हैं।
भारत में समलैंगिकों के ब्लड डोनेशन को लेकर क्या हैं कानून
आइए इसे समझने की कोशिश करते हैं कि भारत में समलैंगिक समुदाय के ब्लड डोनेशन को लेकर कानून क्या है, क्या दुनिया के बाकी देशों में भी इसी तरह का कानून है। क्या दुनिया के सभी देशों में समलैंगिक मर्द या औरत को ब्लड डोनेशन पर रोक लगाई गई हैं।
भारत में बल्ड डोनेशन के लिए क्लॉज 12 के मुताबिक रक्त दाता के लिए दिशा निर्देश बताए गए हैं। इसके मुताबिक किसी भी ब्लड डोनर को फैलने वाली बीमारियों से मुक्त होना जरूरी है। इस क्लॉज में ट्रांसजेंडर, समलैंगिक स्त्री और पुरुष, महिला सेक्स वर्कर का जिक्र किया गया है। इस कानून के मुताबिक वैसे लोगों को ब्लड डोनर की लिस्ट से बाहर रखा गया है जिनमें एचआईवी एड्स का खतरा ज्यादा होता है।
ब्लड डोनेशन की सेवाएं 'पूरी तरह सुरक्षित' होना जरूरी
इसी क्लॉज में समलैंगिक और ट्रांसजेंडरों का जिक्र भी किया गया है। नेशनल ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल (NBTC) और राष्ट्रीय एड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन की तरफ से 2017 में एक दिशा-निर्देश जारी किया गया था। इसके मुताबिक ब्लड डोनेशन की सेवाएं 'पूरी तरह से सुरक्षित' होना जरूरी है। ट्रांसजेंडर कम्यूनिटी के सदस्य थांगजम सिंह ने इसी क्लॉज को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। उनका कहना था कि ये धारा भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन करती है। थांगजम सिंह ने यह कहते हुए अदालत का रूख किया था कि किसी के लिंग और सेक्सुअल इंटरेस्ट को मद्देनजर रखते हुए ब्लड डोनेशन ना करने देना पूरी तरह से मनमाना है।
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दुनिया भर के देशों में समलैंगिक समुदाय के लोगों के ब्लड डोनेशन को लेकर क्या कानून है
- अमेरिकाः 1970 और 80 के दशक में संयुक्त राज्य अमेरिका में एड्स ने भंयकर तबाही मचाई थी। इसी समय समलैंगिक और ट्रांसजेंडर पुरुषों के ब्लड डोनेशन पर रोक लगा दी गई थी। 2015 में फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन यानी एफडीए ने ये बताया कि देश (अमेरिका) का कोई भी पुरुष ब्लड डोनेशन कर सकता है अगर उसने पिछले 12 महीने से किसी पुरुष के साथ सेक्सुअल रिलेशन नहीं बनाए हों। बता दें कि एफडीए अमेरिकी स्वास्थ्य और मानव सेवा विभाग के अंदर काम करने वाली एक एजेंसी है, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की सेफ्टी के लिए काम करती है। अप्रैल 2020 में महामारी के दौरान रक्त की कमी होने की वजह से एफडीए ने इस अवधि को घटा कर तीन महीने कर दिया। इसके अलावा, 27 जनवरी, 2023 को, एफडीए ने घोषणा की कि व्यक्ति चाहे वे किसी भी समुदाय के हों। अगर उन्होंने हाल ही में यौन संबध बनाए हैं तो वो तीन महीने तक ब्लड डोनेशन नहीं कर सकते हैं।
दूसरे देशों में क्या है नियम
- नीदरलैंड, इजराइल, अर्जेंटीना, फ्रांस, ग्रीस और जर्मनी जैसे देशों में पहले से ही इन समुदायों के लोगों पर ब्लड डोनेशन पर रोक लगी है या रोक लगाने की योजना बनाई जा रही है। ऑस्ट्रेलिया में, रक्तदान के समय समलैंगिक और उभयलिंगी पुरुषों को ब्लड डोनेशन की इजाजत है, लेकिन वो ब्लड डोनेशन तभी कर सकते हैं जब उन्होंने ब्लड डोनेशन करने के 3 महीने से के बाद सेक्सुअल रिलेशन नहीं बनाया हो।
प्रतिबंध की वजह क्या थी
इस नियम को लेकर कई सालों से एक्टिविस्टों का ये कहना था कि ये नीति भेदभावपूर्ण है। ये विज्ञान पर आधारित भी नहीं है। इसके जवाब में एक शोध का हवाला भी दिया था जिसके मुताबिक खून के सभी सैंपलों को जांचने के बाद खून की आपूर्ति से एचआईवी संक्रमण होने की संभावना बहुत कम है। इसे आंकड़ों में दो करोड़ से भी ज्यादा सैंपलों में से एक के संक्रमित होने की संभावना है। इस शोध में यह भी बताया गया था कि हाल के सालों में कोई भी एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति ने रक्तदान नहीं किया है। बता दें कि गे पुरुषों पर यह प्रतिबंध 1992 में तब लाया गया था जब हजारों लोगों को ब्लड डोनेट करने के बाद उन्हें एचआईवी संक्रमण हो गया था। हेल्थ कनाडा की ऑफिशियल वेबसाइट के मुताबिक 2011 के बाद से ऐसे लोगों के लिए ये पिरियड 10 साल से ज्यादा और 5 साल से कम के समय अंतराल पर काम करने लगा। 2019 में ये समय अंतराल घटाकर एक साल से तीन महीने कर दिया गया। 2021 में हेल्थ कनाडा ने "हाई रिस्क वाले ब्लड डोनर " पर अपना ध्यान केन्द्रित किया. और 2022 में सेक्सुअल रिलेशन की स्क्रीनिंग को मानदंड बनाते हुए ब्लड डोनेशन के नियम बना दिए।
तीन महीने के गैप का ये है फायदा
दान किए जाने वाले सभी ब्लड हेपेटाइटिस बी और सी, और एचआईवी, साथ ही कुछ दूसरे वायरस की जांच से गुजरते हैं. वैज्ञानिक इस बात से सहमत हैं कि तीन महीने के सेक्सुअल गैप से वायरस या संक्रमण खून में प्रभावशाली नहीं होता है. प्रोफेसर जेम्स न्यूबर्गर ने बीबीसी को बताया था कि, वायरस की उपस्थिति को समझने के लिए तकनीकों में बहुत सुधार हुआ है, इसलिए अब हम संक्रमण में बहुत पहले चरण में ही शरीर से वायरस को निकालने में सक्षम हो गए हैं। ऐसे में हमारे लिए यह बताना बहुत ही आसान हो गया है कि रक्त दाता को वायरस का इंफेक्शन है भी या नहीं।
तीन महीने का सेक्सुअल गैप एकदम सही टाइम है
टेरेंस हिगिंस ट्रस्ट में ब्लड डोनेशन पॉलिसी के हेड एलेक्स फिलिप्स ने बीबीसी को बताया कि अलग-अलग देशों में ब्लड डोनेशन के नियम को लेकर जो सुधार हुए हैं वो "कलंकित धारणाओं पर विज्ञान की जीत" को साबित करते हैं। उन्होंने कहा "तमाम सबूत ये गवाही देते हैं कि तीन महीने का सेक्सुअल गैप एकदम सही टाइम है जब समलैंगिक पुरुष अपना ब्लड डोनेशन कर सकता है। नेशनल एड्स ट्रस्ट की मुख्य कार्यकारी अधिकारी डेबोरा गोल्ड ने बीबीसी को बताया था कि नए नियम समलैंगिक और बाइसेक्सुअल पुरुषों के लिए एक "एक बड़ी जीत" मानी जा सकती है।