BERUT. आपने शायद ही सुना हो कि किसी देश में टाइम को लेकर विवाद हो गया हो, लेकिन हम यहां आपको बता रहे हैं। एक अरब देश है जहां टाइम को लेकर दो मजहबों में संघर्ष की स्थिति बन गई है। हालात ये हैं कि अलग-अलग धर्म के लोग अपने-अपने हिसाब से टाइम को लेकर सामंजस्य बैठाकर काम को अंजाम दे रहे हैं। यही संघर्ष की मुख्य वजह है। जानते हैं, यह कौन सा देश है और ऐसा क्यों हो रहा है।
लेबनान में हर साल मार्च में घड़ियों को एक घंटा आगे किया जाता है
लेबनान में लंबे समय से हर साल मार्च के महीने में घड़ियों को एक घंटा आगे कर दिया जाता है। ये आधिकारिक तौर पर होता है। यानी जब वाकई में सुबह के 10 बजे होंगे तो लेबनान में 11 बजे का समय दिखाएगा। सारे दफ्तर खुल जाएंगे और अगर किसी की 11 बजे की अपॉइंटमेंट है। तो उसे घड़ी में आगे बढ़ी सुइयों के अनुसार ही पहुंचना होगा। ये डे.लाइट सेविंग टाइम है।
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दिन का पूरा इस्तेमाल करने किया जाता है ऐसा
इस प्रोसेस को बहुत से पश्चिमी देश मानते हैं। जिसकी वजह ये है कि वहां सर्दियों में दिन छोटे, जबकि गर्मियों में सूरज बहुत देर से डूबता है। ऐसे में दिन का पूरा-पूरा इस्तेमाल हो सके। इसके लिए साल में दो बार घड़ियां ऑफिशियली आगे-पीछे की जाती हैं। ये नियम देशभर में लागू होता हैं।
अरब देश में बदला गया फैसला
लेबनान में हालात अलग हैं। वहां हर साल मार्च के आखिरी संडे को घड़ियां एक घंटा आगे की जाती हैं, लेकिन वहां के कार्यवाहक प्रधान मंत्री नजीब मिकाती ने इस बार इसे 20 अप्रैल से लागू करने का एलान किया। उनकी दलील थी कि इससे रमजान के दौरान लोगों को आराम मिल सकेगा। कुछ ही दिनों बाद पीएम ने एक बार फिर अपना फैसला बदलते हुए कहा कि 20 अप्रैल नहीं, डे.लाइट सेविंग टाइम इस साल बुधवार, 29 मार्च की आधी रात से लागू होगा।
चर्च ने इसे जताया विरोध
गुस्साए हुए चर्च अधिकारियों ने हर साल की तरह ही महीने के आखिरी रविवार को अपनी घड़ियों को एक घंटा आगे कर दिया। माना जा रहा है कि चर्च को ये लगा कि लेबनान की बहुसंख्यक आबादी को खुश करने के लिए कार्यवाहक पीएम नियम तोड़ रहे हैं। बता दें कि एक समय पर अपनी समृद्धि के लिए मशहूर ये देश अब भयंकर गरीबी और महंगाई से त्रस्त है। यहां तक कि लेबनानी मुद्रा की कीमत 90 प्रतिशत तक गिर चुकी है। ऐसे में देश के अंदरूनी संघर्ष बढ़ रहा है।
अफरातफरी का माहौल
बार.बार फैसला बदलने और चर्च और कैबिनेट के बीच तनाव के चलते पूरे देश में अफरातफरी मच चुकी है। आधी घड़ियां अपने पुराने समय से चल रही हैं, जबकि आधी घड़ियां डे.लाइट सेविंग टाइम मानते हुए समय से घंटाभर आगे हो चुकीं। इससे काम पर भी असर हो रहा है क्योंकि किसी को सही समय नहीं पता। इंटरनेशनली भी वे किस समय को सही मानें। इस पर भी उलझन है।
क्या है डे-लाइट सेविंग टाइम
डीएसटी वो प्रैक्टिस है। जिसके तहत घड़ियां अपने स्टैंडर्ड टाइम से एक घंटा आगे कर दी जाती हैं। ये गर्मियों में होता है। वहीं सर्दियां आते ही घड़ी को एक घंटा पीछे कर दिया जाता है। ये इसलिए होता है ताकि लोग दिन की रोशनी का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल कर सकें। यानी सर्दियों में जब दिन जल्दी ढलेगा तो काम जल्दी बंद हो जाएंगे, जबकि गर्मी में काम जल्दी शुरू हो जाएगा।
इस देश ने की थी शुरुआत
साल 1908 में कनाडा के एक छोटे से हिस्से ने इसकी शुरुआत की थी। फायदेमंद होने के चलते ये ट्रेंड जल्द ही पूरे कनाडा में फैल गया। फिर हर साल वहां डीएसटी की आधिकारिक घोषणा होने लगी। 1916 में जर्मनी और ऑस्ट्रिया ने भी अपने यहां टाइम का ये स्टैंडर्ड लागू किया। तब प्रथम विश्व युद्ध चल रहा था और देश चाहते थे कि वे दिन की रोशनी में ही सारे काम खत्म कर लें, ताकि बिजली बचाई जा सके। ऊर्जा की खपत कम होती देख पश्चिम के कई देश इसे फॉलो करने लगे। ये सब कुछ विश्व युद्ध के दौरान ही होने लगा। फिलहाल 70 से ज्यादा देशों में डीएसटी को माना जा रहा है। सभी वे देश हैं। जो एक्सट्रीम सर्दियां झेलते हैं।