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इंटरनेशनल डेस्क. वर्ल्ड डिप्लोमैसी के लिहाज से ईरान और सऊदी अरब के बीच बड़ा समझौता हुआ। ईरान और सऊदी अरब दो महीने के भीतर संबंधों को दोबारा स्थापित करने और दूतावासों को फिर से खोलने पर सहमत हुए हैं। ईरानी और सऊदी सरकारी मीडिया में यह जानकारी दी जा रही है। 2016 के बाद दोनों देश एक-दूसरे के मुल्क में अपनी-अपनी एम्बेसी फिर खोलने के लिए राजी हो गए हैं।
दोनों देशों के बीच 2016 में बढ़ी थी तल्खी
बता दें कि साल 2016 में शिया धर्मगुरु निम्र अल-निम्र की सऊदी अरब में फांसी के बाद दोनों देशों के रिश्तों में खटास आ गई थी। ईरानी प्रदर्शनकारियों के सऊदी राजनयिक मिशनों पर हमला करने के बाद सुन्नी सरकार रियाद ने शिया देश तेहरान के साथ संबंध तोड़ दिए थे।
सूत्रों के मुताबिक, चीन की राजधानी में हुई बातचीत
अमेरिकी टीवी चैनल सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक, ईरान और सऊदी अरब के बीच यह बातचीत कई महीने से चीन की राजधानी बीजिंग के एक होटल में चल रही थी। हालांकि, चीन और सऊदी अरब ने अब तक इस बारे में ऑफिशियल स्टेटमेंट जारी नहीं किया है।
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क्यों खामोश है सऊदी अरब?
ईरान की सरकारी न्यूज एजेंसी IRNA के मुताबिक- मुल्क की सुप्रीम नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल के चीफ अली शमकहानी की चीन में अपने काउंटरपार्ट मोसेद बिन मोहम्मद अल एबान से मुलाकात हुई। इस दौरान एग्रीमेंट पर सिग्नेचर किए गए।
इस मामले में हैरान करने वाली बात ये है कि ईरान की तरफ से बयान जारी किए जाने के कई घंटे बाद भी सऊदी अरब, चीन और अमेरिका ने खामोश रहे। इसके कई मायने हैं।
चीन ने भी नहीं दिया खुलकर बयान
दरअसल, सऊदी सरकार को डर है कि चीन की वजह से हुए इस समझौते से अमेरिका नाराज हो सकता है, क्योंकि उसे इस मामले में उस सऊदी सरकार ने अंधेरे में रखा, जिसके 90% हथियार और तमाम टेक्नोलॉजी अमेरिका की ही है।
चीन ने शायद इसलिए बयान जारी नहीं किया, क्योंकि उसको लगता है कि अमेरिका उसके विरोधियों को अब खुलकर साथ दे सकता है। खासतौर से साउथ चाइना सी और हिंद-प्रशांत महासागर क्षेत्र में। ताइवान में तो अमेरिकी वॉरशिप पहले ही तैनात कर दिए गए हैं।