अगले 27 साल में नहीं मिलेगा चावल, गेहूं और मक्का! जानिए जलवायु संकट से कितनी घट जाएगी फसल की पैदावार

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Jitendra Shrivastava
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अगले 27 साल में नहीं मिलेगा चावल, गेहूं और मक्का! जानिए जलवायु संकट से कितनी घट जाएगी फसल की पैदावार

DELHI. जलवायु संकट (Climate Crisis) की वजह से भविष्य में अनाज की पैदावार पर असर पड़ेगा। सिर्फ मौसम संबंधी आपदाएं नहीं आएंगी। बल्कि, उसका सीधा असर कृषि और फलों की खेती पर पड़ेगा। क्योंकि जिस तेजी से एक्सट्रीम वेदर इवेंट्स यानी मौसम का तेजी से बदलना और उससे जुड़ी आपदाएं आ रही हैं, देश में लोग दाने-दाने को मोहताज हो सकते हैं। 





क्या फसलों के पैदावर पर जलवायु परिवर्तन के असर की स्टडी होती है





सवाल ये है कि क्या केंद्र सरकार और राज्य सरकारें इस बात पर नजर रखती हैं? क्या फसलों के पैदावर पर जलवायु परिवर्तन के असर की स्टडी होती है? ऐसे कई सवालों के जवाब पर्यावरण, वन एवं क्लाइमेट चेंज मंत्रालय के राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने लोकसभा में दी। मंत्री ने बताया कि सरकार अपने अलग-अलग मंत्रालयों और विभागों के जरिए जलवायु परिवर्तन और उससे पड़ने वाले असर पर नजर रख रही है। नए डेटा और वैज्ञानिक तकनीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है, लेकिन ये भी तय है कि जलवायु परिवर्तन का असर भविष्य में होने वाली पैदावार पर पड़ेगा। 





ICAR ने की है कृषि पर होने वाले बुरे असर की स्टडी





इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च (ICAR) यानी भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने कृषि क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन की वजह से होने वाले असर की स्टडी की। स्टडी में जो नतीजे सामने आए, वो डराने वाले हैं। अगर नई तकनीकों और तरीकों का इस्तेमाल नहीं किया गया तो भविष्य डरावना है। 





न चावल मिलेगा, न गेहूं.... मक्के की फसल भी होगी खराब





ICAR की स्टडी में यह बात सामने आई है कि 2050 तक बारिश से होने वाली धान की फसल की पैदावार में 20 फीसदी की गिरावट आएगी। जो 2080 तक 47 फीसदी घट जाएगी। वहीं जिस धान की फसल की सिंचाई की जाती है, वो 2050 तक 3.5 फीसदी गिर जाएगी, जबकि 2080 तक 5 फीसदी गिर जाएगी। यही नहीं, जलवायु परिवर्तन की वजह से गेंहू की फसल में 2050 तक 19.3 फीसदी की गिरावट आएगी, जबकि 2080 तक यही बढ़कर 40 फीसदी हो जाएगा। हालांकि, यह गिरावट जरूरी नहीं कि इतनी ही हो। बदलते मौसम के अनुसार ये घट और बढ़ सकती है। ऐसा ही कुछ मक्का के साथ भी है। 2050 तक मक्का की फसल में 18 फीसदी और 2080 तक 23 फीसदी की गिरावट होने की आशंका है। 





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एक्सट्रीम वेदर इवेंट्स की वजह से ज्यादा मुसीबत 





जलवायु परिवर्तन इंसानों द्वारा किए जा रहे ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन से हो रहा है। इसमें बड़ी भूमिका जंगलों का काटा जाना है। इस आशंका को सच करती हुई एक रिपोर्ट अभी सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट ने रिलीज की है। जिसमें बताया है कि भारत में पिछले साल 1 जनवरी से लेकर 31 अक्टूबर तक 304 दिनों में 271 दिन मौमस खराब ही रहा है। वो भी आपदाओं के तौर पर। कभी सूखा तो कभी बाढ़। कभी ओले तो कभी आंधी-तूफान। इस एक्सट्रीम वेदर इवेंट्स (Extreme Weather Events) की वजह से 18.1 लाख हेक्टेयर जमीन पर लगी फसल बर्बाद हो गई। एक्सट्रीम वेदर इवेंट्स यानी मौसम संबंधी भयानक घटनाएं या आपदाएं। अगर सिर्फ पिछले साल में भारत की बात करते हैं। किस मौसम में कितने एक्सट्रीम वेदर इवेंट्स हुए और उनसे कृषि पर क्या असर पड़ा वो जानिए।





मध्य भारत में 1.36 लाख हेक्टेयर जमीन पर लगी फसल बर्बाद 





भारत के मध्य इलाके में यानी गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और ओडिशा में 1 जनवरी से 31 अक्टूबर 2022 के बीच 198 दिनों तक खतरनाक मौसम था। मध्यप्रदेश सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य रहा। 1.36 लाख हेक्टेयर से ज्यादा जमीन पर लगी फसलें खराब हो गईं। 





पूर्व-उत्तरपूर्व भारत में 2.85 लाख हेक्टेयर खेती खराब हुई





पूर्वी और उत्तर-पूर्वी राज्यों में 191 दिनों तक एक्सट्रीम वेदर इवेंट्स थे। यहां बिहार, झारखंड, सिक्किम, पश्चिम बंगाल, असम, अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा और मेघालय हैं। खराब मौसम की वजह से 2.85 लाख हेक्टेयर से ज्यादा जमीन पर लगी फसलें खराब हुईं। सबसे बुरी हालत असम की रही। 





इन राज्यों में खेती सबसे बुरी तरह प्रभावित





उत्तर और उत्तर-पश्चिम राज्यों यानी जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और राजस्थान ने सबसे ज्यादा 216 दिनों तक खराब मौसम का सामना किया है। इनमें सबसे ज्यादा बुरी हालत उत्तर प्रदेश की रही। 3.11 लाख हेक्टेयर जमीन पर लगी फसलें खराब हो गईं।





दक्षिण भारत में 10.73 लाख हेक्टेयर जमीन खराब 





अगर दक्षिण भारत की बात करें तो तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक में खराब मौसम के कुल 145 दिन थे। सबसे बुरी हालत कर्नाटक की रही। 10.73 लाख हेक्टेयर जमीन पर लगी फसलें खराब हुईं। 



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