AI Saint : एक समस्या और हजार उपाय की चुनौती है Problem of Plenty

यह सच है कि AI पत्रकारिता में क्रांति लाने की क्षमता है, लेकिन जरूरत से ज्यादा Tools ने निर्णय लेने की प्रक्रिया को जटिल बना दिया है। दरअसल “Problem of Plenty” की थ्योरी हमें यह सिखाती है कि हर विकल्प को अपनाना आवश्यक नहीं है।

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आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आज हर क्षेत्र में बदलाव की लहर लेकर आया है। पत्रकारिता, जो सूचना और सत्य की बुनियाद पर टिकी है, इससे अछूती नहीं रही। जहां AI ने संभावनाओं के नए द्वार खोले हैं, वहीं इस तकनीक ने “Problem of Plenty”, यानी अत्यधिक विकल्पों की समस्या, पत्रकारिता के लिए एक नई चुनौती बनकर उभरी है। मेरे सीनियर और वरिष्ठ पत्रकार आनंद पांडे अक्सर इसकी चर्चा करते रहते हैं और इससे कंटेंट की गुणवत्ता पर आने वाले असर पर चिंतित भी… तो चलिए पहले समझें ये आखिर क्या बला है? 

“Problem of Plenty” की थ्योरी क्या है?

“Problem of Plenty” की थ्योरी का मतलब उन स्थितियों से है, जब अत्यधिक विकल्प उपलब्ध होने से निर्णय लेने में जटिलता और भ्रम की स्थिति पैदा हो जाती है। पत्रकारिता के संदर्भ में, यह समस्या तब उभरती है जब बाजार में एक के बाद एक नए AI टूल्स आ रहे हैं। इन टूल्स का वादा है कि वे कंटेंट क्रिएशन, रिसर्च, फैक्ट-चेकिंग, और डेटा एनालिसिस को तेज, सटीक और आसान बना देंगे। लेकिन इनकी भरमार ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि पत्रकार किस टूल का चयन करें और किसे छोड़ें? वैसे तो यह स्थिति खबरों के सिलेक्शन के साथ भी आ ही चुकी है। अगर आप किसी भारी- भरकम मीडिया संस्थान के हिस्से नहीं हैं तो बड़ी चुनौती यह है कि किस खबर को कैरी करें और किसे छोड़ें? हाइपर लोकल कंटेंट ने तो जैसे खबरों की बाढ़ ही ला दी है।    

AI टूल्स की लगातार बढ़ती संख्या

हर दिन कोई नया AI टूल लॉन्च होता है। कुछ टूल्स टेक्स्ट जनरेट करने में माहिर हैं, जैसे कि ChatGPT, जबकि कुछ इमेज क्रिएशन में, जैसे कि DALL-E। फिर ऐसे टूल्स भी हैं जो ऑडियो और वीडियो एडिटिंग, डेटा विज़ुअलाइजेशन, और सोशल मीडिया एनालिटिक्स के लिए बनाए गए हैं। इन सभी टूल्स की अधिकता ने पत्रकारों को कई तरह की दुविधाओं में डाल दिया है, जैसे…

विश्वसनीयता का सवाल:

हर टूल यह दावा करता है कि वह सबसे सटीक और तेज है। लेकिन इनमें से कौन वास्तव में सही है, इसका निर्धारण करना मुश्किल हो जाता है।

समय और संसाधनों की बर्बादी:

नए टूल्स को सीखने और समझने में समय लगता है। कई बार पत्रकार किसी टूल पर समय और पैसा खर्च कर देते हैं, जो उनकी जरूरतों के अनुकूल नहीं होता।

एथिक्स का मुद्दा:

कुछ AI टूल्स से जुड़े एथिकल सवाल, जैसे कि डेटा की गोपनीयता और फेक न्यूज़ का खतरा, पत्रकारिता के मूल्यों को चुनौती देते हैं।

अब जबकि बड़े मीडिया संस्थान AI के उपयोग की संभावनाओं को तलाश रहे हैं, तो हिंदी का जर्नलिस्ट अभी इस पर बहुत कंसर्न नहीं हो सका है। कारण, वही नैतिकता का हवाला…

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पत्रकारिता में AI की संभावनाएं

यह सच है कि AI टूल्स की अधिकता ने चुनौतियां खड़ी की हैं, लेकिन यह पत्रकारिता के लिए अभूतपूर्व संभावनाएं भी लेकर आया है। आइए, AI के कुछ सकारात्मक पहलुओं पर नजर डालते हैं:

फैक्ट- चेकिंग को तेज और सटीक बनाना: पत्रकारिता में सत्यता सबसे महत्वपूर्ण है। AI टूल्स, जैसे कि Logically और Factmata, बड़ी मात्रा में डेटा को तेजी से स्कैन कर सकते हैं और फेक न्यूज़ की पहचान कर सकते हैं। 

डेटा जर्नलिज्म का विकास: AI की मदद से पत्रकार अब जटिल डेटा सेट्स को विज़ुअल स्टोरीज़ में बदल सकते हैं। उदाहरण के लिए, Tableau और Flourish जैसे टूल्स डेटा को इंटरएक्टिव ग्राफिक्स में परिवर्तित कर सकते हैं, जो पाठकों के लिए अधिक आकर्षक होते हैं।

हाइपर-पर्सनलाइजेशन: AI एल्गोरिदम यह समझ सकते हैं कि किस प्रकार का कंटेंट किस दर्शक के लिए सबसे उपयुक्त है। इससे मीडिया हाउस अपनी ऑडियंस को अधिक प्रभावी ढंग से टार्गेट कर सकते हैं।

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AI टूल्स का सही उपयोग कैसे करें?

“Problem of Plenty” का समाधान पत्रकारों को खुद ही खोजना होगा। हालांकि इसके लिए निम्नलिखित उपाय मददगार हो सकते हैं:

स्पष्ट प्राथमिकताएं तय करें

सबसे पहले यह समझें कि आपकी जरूरतें क्या हैं। क्या आपको टेक्स्ट जनरेशन में मदद चाहिए, या डेटा एनालिसिस में? अपनी प्राथमिकताओं के अनुसार टूल्स का चयन करें।

ट्रायल और फीडबैक का उपयोग करें

किसी भी नए टूल को अपनाने से पहले उसका ट्रायल वर्जन इस्तेमाल करें। साथ ही, सहकर्मियों और इंडस्ट्री के विशेषज्ञों से फीडबैक लें।

एथिकल गाइडलाइंस का पालन करें:

 AI टूल्स का उपयोग करते समय यह सुनिश्चित करें कि आपकी पत्रकारिता के एथिकल मानकों से समझौता न हो। फेक न्यूज़ को बढ़ावा देने वाले या गोपनीयता का उल्लंघन करने वाले टूल्स से बचें।

यह सच है कि AI पत्रकारिता में क्रांति लाने की क्षमता है, लेकिन जरूरत से ज्यादा Tools ने निर्णय लेने की प्रक्रिया को जटिल बना दिया है। दरअसल “Problem of Plenty” की थ्योरी हमें यह सिखाती है कि हर विकल्प को अपनाना आवश्यक नहीं है। पत्रकारों को अपने लक्ष्यों और मूल्यों को ध्यान में रखते हुए सही टूल्स का चयन करना चाहिए। सही संतुलन स्थापित करने पर ही AI पत्रकारिता को अधिक सशक्त और प्रभावी बना सकता है। वैसे मेरा व्यक्तिगत सुझाव है कि हिंदी के पत्रकार को Chatgpt के फ्री वर्जन से शुरू करना चाहिए। 

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