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यह पहली बार देखने में आ रहा है कि मीडिया संस्थान ओपनिंग और मिड लेवल पर जॉब खोलकर बैठे हैं। मीडिया संस्थानों के खुद के प्लेटफार्म हों या Linkedin जैसे प्लेटफार्म, सभी पर मौके भरपूर हैं। सैलरी कितनी मिलेगी? काम कितना खींचकर लेंगे? सांस लेने दोगे या पेलकर रखोगे? ऐसे सवाल जर्नलिज्म का हर दूसरा छात्र पूछता नजर आता है और कंपनियां पूरी गंभीरता से बताती हैं- भाई ये तो आपके काम की डिलेवरी पर निर्भर करेगा।
यह पहली बार है, जब मीडिया में आज यहां, कल वहां की दिहाड़ी वाला कल्चर देखने को मिल रहा है। वरना तो कहां, एक बार ठीकठाक संस्थान में नौकरी लगी तो लोग ज्यादा उछल- कूद नहीं करते थे। उछल- कूद का यह ट्रेंड भोपाल से लेकर नोयडा तक एक सा ही है। और हो भी क्यों न, जर्नलिज्म पढ़ाने वाली हर यूनिवर्सिटी अपने यहां अंजना ओम कश्यप और रवीश कुमार से कम लेवल का प्रोडक्ट तैयार ही नहीं कर रहीं। जो भी बच्चा इंटर्नशिप या जॉब के लिए अपना रिज्यूमे लेकर आता है, उसकी बातों और कॉन्फीडेंस से तो कम से कम यही लगता है।
ऐसे बच्चों की पहली च्वाइस होती है- वीडियो… यह बात और है कि मीडिया संस्थान को तगड़ी फीस देकर आया “पत्रकारिता का शावक” है और हैं, में अंतर नहीं कर पा रहा। ऐसा नहीं है कि यह लिखते समय मुझे मेरी सिली मिस्टेक्स याद नहीं। हम भी गलतियों की उसी माटी के पुतले हैं। इसलिए गलतियां की हैं और भयंकर लेवल पर की हैं, मगर अं, अ: तो स्कूल ने सिखा ही दिया था। हां सीमांत बुंदेलखंडी होने से स और श में भ्रमित हो जाना जन्मसिद्ध अधिकार की तरह चिपका रहा है। अब लिखने में तो नहीं, लेकिन बोलने में आज भी गच्चा खा ही जाते हैं।
AI Saint : परंपरागत पत्रकारिता के अंत और उम्मीदों का साल 2025
बहरहाल, सीरियस नोट यह है कि जॉब भरपूर हैं और मीडिया संस्थान चिंतित हैं कि अब टैलेंट नहीं आ रहा। नई टेक्नालॉजी ने नए तरह के जॉब्स भी क्रिएट किए हैं। ऐसे में मोबाइल पर कीपैड से “Ram” टाइप करके “राम” लिखने वाले कैंडिटेट कैसे टिकेंगे? इनको भरोसा है कि Google सब संभाल लेगा, तो भैया ये है अर्ध सत्य, सभी के गुरुजी यह कहते ही आए हैं कि नकल उसी के सफल होगी, जो अकल लड़ाएगा और यहांं तो संकट अकल का ही है। Artificial Intelligence या AI बिल्कुल काम को बेहद आसान और तुरत- फुरत कर सकता है, मगर यहां भी सवाल उस सेंस का ही है, जो विधायक और विधेयक में अंतर बताता है। यानी पहले आपको खुद आएगा, तभी आप AI से खेल सकेंगे। यह भी सही है कि ज्यादातर काम AI संभाल लेगा, मगर जब सब AI ही सब संभाल लेगा तो आपका क्या काम? किस बात की सैलरी? जाहिर है, जो लोग जर्नलिज्म में टिकेंगे उनको बेस मजबूत करना ही होगा। यह आपको तय करना होगा कि आप AI के हिसाब से चलेंगे या फिर आपके हिसाब से AI…
इधर देर से ही सही, लगभग सभी बड़े मीडिया संस्थान समझ चुके हैं कि डिजिटल ही भविष्य है। ऐसे में जर्नलिज्म की जॉब प्रोफाइल में 360 डिग्री का बदलाव आ चुका है। ऑपरेटर नहीं है, कैमरामैन नहीं आया, स्क्रिप्ट में टाइम लगेगा जैसी समस्याएं अब बहानों में बदल गई हैं। मल्टी टॉस्किंग डिजिटल वर्ल्ड का सत्य है। हां यह बात और है कि इस सत्य की आड़ में क्रूर मीडिया संस्थान निचोड़ने की हद तक अपने निचोड़ रहे हैं। दूसरी ओर समझदार मीडिया हाउस इससे आगे की संभावनाओं को तलाश रहे हैं। यानी पूरी की पूरी डेस्क का एआई ऑटोमेशन, जहां चंद ब्रिलिएंट किस्म के सहयोगी पूरा संस्थान रन कर सकेंगे और रचनात्मकता और AI का वह क्लासिक दौर हो सकता है…
तो कहिए, AI शरणम् गच्छामि…
माइक्रोसॉफ्ट देगा AI की ट्रेनिंग और नौकरियां भी…
माइक्रोसॉफ्ट ने भारत में 26,000 करोड़ रुपए निवेश करने की घोषणा कर दी है। यह निवेश क्लाउड कंप्यूटिंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) क्षमताओं के विस्तार के लिए किया जाएगा। कंपनी ने 2030 तक 1 करोड़ भारतीयों को AI स्किल्स में प्रशिक्षित करने और 2 लाख नई नौकरियां सृजित करने का लक्ष्य रखा है। माइक्रोसॉफ्ट के CEO सत्य नडेला का कहना है कि यह निवेश भारत में कौशल विकास और इन्फ्रास्ट्रक्चर में सुधार लाकर AI के क्षेत्र में भारत की अग्रणी भूमिका को सशक्त करेगा। इससे टियर-2 शहरों में इनोवेशन को बढ़ावा और 1.5 लाख स्टार्टअप कर्मियों का कौशल विकास का मौका मिलेगा। माइक्रोसॉफ्ट का लक्ष्य भारत को "AI-फर्स्ट नेशन" बनाना है।
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