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सियासत सिर्फ नीतियों का मंच नहीं होती। यह चपलता, चालबाजी और चेहरों के पीछे छिपे चरित्रों का रंगमंच है। सत्ता और अफसरशाही का चेहरा बाहर से जितना सजा-धजा दिखता है, भीतर उतना ही उलझा हुआ, धुंधला और चौंकाने वाला होता है। अब देखिए न एक साहब और मंत्रीजी बुरी तरह उलझ गए हैं।
एक- दूसरे को पटखनी देने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे। यही नहीं, घोटालों की परतें सफेदपोशों की कथित ईमानदारी को बेनकाब कर रही हैं। मामला यहीं नहीं रुकता। दलाल टेंडर की चाबी लिए सिस्टम में घूम रहे हैं। टेंडर के लिए एडवांस बुकिंग हो रही है। उधर, पचमढ़ी में सत्ताधारी दल आत्ममंथन करता है, लेकिन कुछ नेता आत्ममुग्धता में डूबे दिखाई देते हैं। कोई कुछ भी कहे, लेकिन सच्चाई तो यही है। खैर, आप तो सीधे नीचे उतर आइए और इस ठंडे मौसम में बोल हरि बोल के रोचक किस्सों का आनंद लीजिए।
सत्ता के खेल में सिक्का किस्सा?
सत्ता का मैदान कुश्ती के अखाड़े से कम नहीं होता। यहां हर दिन धोबी पछाड़ और चकमा दांव चले जाते हैं। इस बार दंगल सजा है एक मंत्रीजी और उनके विभाग के अपर मुख्य सचिव (एसीएस) के बीच। मंत्रीजी को लग रहा था कि कुर्सी की ऊंचाई से सबको नीचा दिखा देंगे, लेकिन सचिव साहब तो पुराने पहलवान निकले। वे सरकारी लंगोट कसकर मैदान में उतर गए। जी हां, पॉवर गेम के नियम अलग ही होते हैं।
अपना सिक्का जमाने के लिए एक-दूसरे को पटकनी देना इस खेल का अहम हिस्सा है। इसी पॉवर गेम के चलते मंत्रीजी ने विभाग की एक कारस्तानी मीडिया में छपवाने की कोशिश की। इसकी भनक अपर मुख्य सचिव को लगी तो उन्होंने डैमेज कंट्रोल की रणनीति बनाकर खबरें रुकवा दीं। अब मंत्रीजी सोच रहे हैं कि आखिर कैसे इस अफसर को ठिकाने लगाया जाए। इधर, मंत्रीजी प्लान बना ही रहे हैं, उधर अपर मुख्य सचिव ने मंत्री की नोटशीट वायरल करवाकर मैदान मार लिया है। अब मंत्रीजी बौरा गए हैं।
पहले क्लीनचिट, फिर दुबई की सैर
सूबे की अफसरशाही में इन दिनों एक प्रमुख सचिव और ठेकेदार की जुगलबंदी के चर्चे गूंज रहे हैं। दरअसल, सरकारी संपत्ति पर हाथ साफ करने वाले ठेकेदार की किस्मत उस दिन चमक उठी, जब विभाग में नए प्रमुख सचिव की एंट्री हुई। साहब ने आते ही सबसे पहले ठेकेदार को मानो गंगाजल स्नान करवा दिया, मतलब उसे क्लीनचिट दे दी। फिर उसे सरकारी मेहमान बनाकर दुबई की एक बड़ी और आलीशान मीट में ले गए।
मामला अब बढ़ गया है। लिहाजा, प्रमुख सचिव सफाई दे रहे हैं कि उन्हें नहीं पता कि वो जिस ठेकेदार को इन्वेस्टर बनाकर दुबई ले गए थे, उस पर सरकारी संपत्ति की चोरी का मामला बना था। अब बताइए, क्या कहेंगे इसे? क्या साहब वाकई इतने सीधे हैं या अब पोल खुलने के कारण ऐसी बातें कर रहे हैं। समझने वाले तो सब जानते हैं, हमने तो अपना काम कर दिया है।
नौशाद है तो विश्वास है!
सरकारी तंत्र में यूं तो दलालों की कमी नहीं है, लेकिन लगता है कि असली ब्रांड वैल्यू सिर्फ नौशाद की है। बाकी दलाल जहां खुद को सिस्टम का हिस्सा मानते हैं, वहीं नौशाद खुद को सिस्टम समझता है। अब देखिए न, टेंडर अभी निकला नहीं होता और कंपनियां चार महीने पहले ही नौशाद के पास एडवांस जमा करवा देती हैं, ताकि सौभाग्य सुनिश्चित हो जाए। ये कोई मामूली एडवांस नहीं, ये आस्था का प्रतीक है।
करोड़ों की बोली लगने से पहले करोड़ों की दलाली देना, वो भी आंख मूंदकर...ऐसा सिर्फ नौशाद पर श्रद्धा से ही संभव है। सूत्रों की मानें तो जब तक नौशाद की हरी झंडी नहीं मिलती, तब तक कोई कंपनी टेंडर के पास फटक भी नहीं सकती। यानी टेंडर तो सरकारी होते हैं, पर पासवर्ड नौशाद के पास होता है। अब दूसरे शब्दों में कहें तो कंपनियों को लगता है कि नौशाद है, तो विश्वास है।
नेताजी का पचमढ़ी से परहेज
पचमढ़ी की वादियों में बीजेपी नेता जहां आत्ममंथन कर रहे थे, वहीं एक पूर्व मंत्रीजी आत्म-गौरव में डूबे घर पर बैठे थे। कभी जिनका जलवा मुख्यमंत्री से कम नहीं था, इस बार उन्हें कैबिनेट से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया और जो कभी पीछे लाइन में खड़े रहते थे, उनके विरोध थे…उन्हें मंत्री बना दिया गया। अब नेताजी का दिल क्या करता? इसलिए उन्होंने पचमढ़ी से परहेज कर लिया। उन्होंने शिविर में न जाकर साफ संदेश दे दिया कि हम मंत्री पद के मोहताज नहीं, पार्टी के विचार से बड़े हैं।
बीजेपी में ये नाराजगी बहस का मुद्दा बन गई है। कोई कह रहा है कि ये घमंड है। कोई कह रहा घाव है और नेताजी कह रहे हैं कि ये स्वाभिमान है। देखना होगा कि क्या पार्टी नेताजी को अनुशासन का डोज देगी? या वे यूं ही नाराज बने रहेंगे।
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बुरे फंसे सद्दाम...
सूबे की अफसरशाही में सद्दाम सा रुतबा रखने वाले पुराने साहब बुरे फंस गए हैं। उन्होंने अपने कार्यकाल में जो किया था, अब वह न तो निगलते बन रहा है और न ही उगल पा रहे हैं। अरे हओ... लंबे समय तक मंत्रालय में अपना रुतबा जमाए रखने वाले साहब पर इन दिनों जांच एजेंसियों ने शिकंजा कस दिया है।
500 करोड़ के घोटाले में पुराने बड़े साहब और उनके पक्के दोस्त पर प्राथमिकी दर्ज हो गई है। अब इन साहबों से जलने वाले लोग कह रहे हैं कि सरकारी कुर्सी का खेल भी अजीब है, रुतबा चढ़ता है तो खबर बनता है और उतरता है तो चार्जशीट में बदल जाता है।
भाईसाहब! ये नहीं हैं सुधरने वाले
लो बताओ भाईसाहब! क्या फायदा हुआ तीन दिन की भारी भरकम पाठशाला का। बीजेपी ने जिस उद्देश्य से तीन दिन पचमढ़ी में मंथन किया, उसे नेता पलीता लगा रहे हैं। बीजेपी की मंशा थी कि नेताओं को समझाएंगे तो वे जुबान पर लगाम कस देंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ है। अब देखिए न, कृषि मंत्री एदल सिंह कंषाना कह रहे हैं कि हमारे सांसद जाति से ठाकुर हैं, लेकिन स्वभाव से बनिया हैं।
अगर आप इन्हें गाली भी दोगे तो मालूम है क्या करेंगे? यह गड़ा हुआ पत्थर उखाड़ेंगे। इनके सामने जो चुनाव लड़े थे कांग्रेस के, उन्हें कहीं भूल से चुन लेते और अगर उनको गाली देते, कुछ भी गलत कहते तो वह गड़ा हुआ पत्थर नहीं उखाड़ते। बगल में रखा हुआ कट्टा निकालते। सीधा कट्टा देते तुममें। अब इसे क्या कहेंगे आप। उधर, उषा ठाकुर कह रही हैं कि लव जिहाद करने वालों के प्राइवेट पार्ट काट देना चाहिए। मतलब...क्या चल रहा है ये। और इन बयानों से सत्ताधारी दल के ये नेता क्या संदेश देना चाहते हैं।
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