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मध्यप्रदेश की सियासत में इन दिनों मामा का इकरारनामा गूंज रहा है। उन्होंने साफ किया है कि मोहन ही मुख्यमंत्री हैं। अब मामा को ये सफाई क्यों देनी पड़ी, ये तो वे ही जानें, लेकिन जानकार तो इसके भी मायने निकाल रहे हैं। इधर, मंत्रालय में भी सब कुछ ठीक नहीं चल रहा। दो एससीएस आपस में उलझ गए हैं। फाइलें पेंडिंग हैं। एक साहब को मोबाइल पर गेम खेलने का इतना शौक है कि काम पीछे छूट रहा है। उधर,पंजा छाप भाजपाइयों की वजह से कैडर वाले भाजपाई भारी परेशान हैं।
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बड़े साहब के खास अफसर उलझे!
मंत्रालय में दो अपर मुख्य सचिवों की कुर्सी की खींचतान की चर्चा जोरों पर है। साहब लोग आपस में ऐसे उलझे हैं, मानो दो बिल्लियां एक ही रस्सी पर नाच रही हों। इनकी तनातनी का खामियाजा बेचारे विभाग भुगत रहे हैं। बाबू भी मालिकों के मूड के गुलाम, एक विभाग की फाइल को दूसरे के टेबल तक पहुंचने में चांद-तारे तोड़ने पड़ते हैं। महीनेभर का इंतजार तो अब रस्म बन चुका है। बड़े साहब ने इस नौटंकी पर नाराजगी जताई, मगर मजा तब है जब पता चले कि ये दोनों लड़ाके उनके ही खासमखास हैं। लगता है, मंत्रालय अब कामकाज कम, ड्रामेबाजी का अड्डा ज्यादा बन गया है। देखते रहिए आगे आगे होता है क्या?
तेल तंबाकू तेरा, भाई देख तमाशा मेरा
निगम मंडल के एक आयुक्त का कारनामा देखते ही बनता है। हाल ही में उत्कृष्ट कार्यों के लिए कुछ आईएएस अफसरों को पीएम सम्मान अवॉर्ड मिला था। इस सम्मान में इन साहब का भी सम्मान हुआ। साहब ने सम्मान मिलने की खुशी में बोर्ड के पैसों से राजधानी के पांच सितारा होटल में पार्टी कर डाली। बात यहां नहीं रुकती। सरकारी रिकॉर्ड में इस पार्टी का खर्चा साहब ने इंजीनियरों की ट्रेनिंग के नाम पर डलवा दिया। अब विभाग के इंजीनियर कहते फिर रहे हैं कि कमिश्नर साहब भी गजब हैं, सम्मान पार्टी भी हो गई, जेब से एक रुपया भी खर्च नहीं हुआ। इसी को कहते हैं तेल तंबाकू तेरा, देख तमाशा मेरा।
काम छूट जाए पर गेम नहीं छूट सकता!
मंत्रालय के एक सचिव साहब को मोबाइल गेम का ऐसा चस्का है, मानो सारा प्रशासन गेमिंग ऐप में सिमट गया हो। मौका मिलते ही साहब का अंगूठा मोबाइल की स्क्रीन पर नाचने लगता है। मीटिंग में फाइलें इंतजार करें, पर साहब का लेवल अप नहीं रुकता। साहब की प्रशासनिक बुद्धि? अरे, वो तो हमेशा से लो बैटरी मोड में है, मगर गेमिंग में साहब मास्टर हैं। साहब के इस रवैए से उनके विभाग के मुखिया भी भारी परेशान हैं। एक दो बार उन्होंने नाराजगी जाहिर की तो इन साहब ने लंबी छुट्टी ले ली। इनका कहना है कि काम भले ही छूट जाए लेकिन गेम नहीं छूट सकता।
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पंजा छाप भाजपाइयों का जलवा
राजनीतिक गलियारों में पंजा छाप भाजपाई इन दिनों स्टार बनकर चमक रहे हैं। इनकी वजह से मूल भाजपाई नेताओं की पहचान ही धुंधली हो रही है। जिलों में इनका जलवा ऐसा कि पुराने वफादार बस सिर पीट रहे हैं। कुछ मंत्रियों की नींद उड़ी है। एक—दो मंत्रियों ने तो अपने करीबियों से भी इस दर्द को शेयर किया है। कहते हैं, इनके तेवर देखकर लगता है, जैसे पार्टी नहीं, कोई नया "पंजा गैंग" बन गया हो। पहले फूल छाप कांग्रेसियों का जमाना था, अब पंजा छाप भाजपाईयों का डंका बज रहा है। मंत्रियों का हाल ऐसा कि कुर्सी बचाने की जुगत में दिन-रात एक कर रहे हैं।
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मोहन ही हैं मामा के मुख्यमंत्री
सूबे के पूर्व सरकार इन दिनों पदयात्रा कर रहे हैं। मीडिया ने जब इनकी यात्रा की व्याख्या की तो मामा तो सफाई तक देनी पड़ी है। मामा कह रहे हैं कि इधर-उधर कोई कयास मत लगाना। मोहन मेरे मुख्यमंत्री हैं। हमारे कॉन्सेप्ट क्लियर हैं। मामा ने यहां तक कहा, मेरे मन में यही है कि मेरे से अच्छा काम मोहन करें। वे मप्र के विकास के लिए पूरी मजबूती से मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के साथ खड़े हैं। मीडिया उनकी विकसित भारत संकल्प यात्रा के बारे में अटकलबाजी न करे। अब भैया! इसके क्या मायने हैं ये तो मामा ही जानें।
मौसम तबादलों वाला
प्रदेश में इन दिनों तबादलों का मौसम है। अब भैया मौसम है तो माननीयों को उसके हिसाब से व्यवस्थाएं भी करनी पड़ रही हैं। अब देखिए ना, एक मंत्री जी ने नया तरीका निकाला है। उन्होंने गेट पर ही पोस्टर चिपका दिया कि ट्रांसफर की बात न करें। दूसरे मंत्री जी गेट पर गार्ड तैनात कर दिए हैं। जो किसी के पहुंचने पर पहले बंगले के अंदर फोन लगाकर पूछते हैं। अंदर से इजाजत है तो वे बंगले में घुसेंगे। अन्यथा बाहर से रवाना हो जाएंगे। कुछ लोगों को यह रवैया नागवार गुजर रहा है। ये बात संगठन तक पहुंच गई है। अब देखना होगा कि पंडितजी के स्तर पर क्या घुट्टी पिलाई जाती है।
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