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जैसे मौसम का मिजाज कभी तेज गरम तो कभी नरम बना हुआ है, वैसे ही सियासत का पारा भी ऊपर-नीचे हो रहा है। अब देखिए ना, नेताओं के बयानों ने मध्यप्रदेश को बदनाम सा कर दिया। पिछले हफ्ते से क्या भोपाल और क्या दिल्ली...सब दूर मध्यप्रदेश और यहां के नेताओं की ही बातें हो रही हैं।
कुल मिलाकर कहें तो राजनीति के रंगमंच पर दिलचस्प ड्रामा चल रहा है। कुछ अफसर पेन ही नहीं चला रहे तो नेता जुबान दौड़ाते-दौड़ाते अपनी ही पार्टी की टांग खींच रहे हैं। उधर, चार इमली में एक अफसर ने अपने बंगले को किले में तब्दील कर दिया है, इसे देखकर पड़ोसी कहते हैं, लगता है कि कोई सीक्रेट मिशन चल रहा है।
देश प्रदेश में खबरें तो और भी हैं पर आप तो आनंद लीजिए जनाब, पेश है इस हफ्ते की सियासी चुस्कियों का पूरा पिटारा, चाय के साथ घूंट-घूंट पीजिए... मजा गारंटीड है।
मंत्रालय में 'पेन डाउन' के हालात
मंत्रालय के गलियारों में इन दिनों अजीब सी खामोशी है। पेन चलने कम हो गए हैं, मगर कानाफूसी जोरों पर है। दरअसल, इसके पीछे वजह बड़े साहब का बढ़ता अविश्वास है। वे अधिकारियों के हर काम को संदेह क नजर से देख रहे हैं। मीटिंग में अफसरों को डांट सुननी पड़ रही है और हर बड़ा फैसला शक के घेरे में आ रहा है। नतीजा ये कि मंत्रालय के आला अफसरों ने आपस में मौन समझौता कर लिया है। बड़े साहब जब तक हॉट सीट पर हैं, बड़े टेंडर और खरीदी से दूर रहो। यानी मंत्रालय अब स्लो मोड में है। अब बड़े फैसले ठंडे बस्ते में है । अफसर तो कह रहे हैं कि भैया! ई फाइलिंग में रुटीन वर्क से ही गुजारा कर लीजिए... बाकी तो अभी 'पेन डाउन' चल रहा है।
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बयान वीरों का बवाल
सीमा पर हमारे सैनिक जान हथेली पर रखकर आतंकियों से लोहा ले रहे हैं और देश के अंदर नेता अपनी बदजुबानी से सेना की छवि धूमिल करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। पहले एक मंत्रीजी ने बिना ब्रेक के बयान दाग दिया, फिर डिप्टी सीएम भी मैदान में कूद पड़े। अब छुटभैये नेताओं की जुबान भी फिसलने लगी है। हर बार सफाई यही कि बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया। लेकिन जनता पूछ रही है, भाईसाहब, सेना पर बोलने की क्या जरूरत थी? बाकी मुद्दे कम हैं क्या? बयान वीरों से बस यही गुजारिश है कि सेना को छोड़िए, राजनीति पर ध्यान दीजिए।
मंत्रीजी! जवाब तो देना पड़ेगा?
देश की वीरांगना बेटी कर्नल सोफिया कुरैशी पर बयान देकर फंसे मंत्री विजय शाह जैसे तैसे इस्तीफे के फंदे से बाहर निकल आए हैं, लेकिन अब राजनीतिक गलियारों में उन पर व्यक्तिगत हमले होना शुरू हो गए हैं। लोग पूछ रहे हैं कि मंत्री ने हमारे देश की गौरव बेटी को तो आतंकियों की बहन बता दिया, पर पहले मंत्री जी ये बताएं कि आखिर तहसीन कौन है, जो मंत्रीजी के बंगले से लेकर उनके हर महत्वूर्ण काम देखता है। वैसे बात भी सही है। मंत्रीजी को बताना चाहिए कि आखिर तहसीन है कौन? मंत्रीजी को यहां कटे फटे नजर नहीं आ रहे। अरे भैया! आएंगे भी कैसे? यहां तो रिश्ता हिसाब किताब का है।
चार इमली में छोटे मियां का किला!
चार इमली के एक बंगले पर इन दिनों सबकी नजरें टिकी हैं। बंगले में रहते हैं एक युवा आईएएस अफसर, जिनके अब्बा भी कभी हॉट सीट पर रह चुके हैं, इसलिए नाम पड़ गया, छोटे मियां। छोटे मियां ने बंगले को पूरी तरह प्लास्टिक की हरी चादरों से ढकवा रखा है, ताकि कोई झांक न सके। पड़ोसी चुटकी ले रहे हैंकि अब ये बंगला नहीं, छोटे मियां का किला हो गया है। सवाल ये है कि आखिर ऐसा क्या खास है बंगले के भीतर, जो इतनी परदेदारी की जरूरत पड़ रही है? क्या है ये हाई सिक्योरिटी 'किला' और कौन देखना चाह रहा है इसकी अंदरूनी हकीकत? जवाब शायद सिर्फ छोटे मियां के पास है।
पंडित जी कहां हैं?
भारत पाकिस्तान के बीच चल रहे तनाव के दौरान सबको 'पंडित जी' की खूब याद आई। दरअसल, ये पंडित जी जब सत्ता में थे तो हर दिन उनके बंगले पर मीडिया की भीड़ लगती थी, विषय चाहे देश का हो या प्रदेश का, बॉलीवुड का हो या विंध्य का...भाईसाहब हर सवाल पर भैरंट जवाब देते थे, लेकिन जब वे सत्ता से उतरे हैं, मानो अब कोप भवन में चले गए हैं। न तो मीडिया उन्हेंं भाव दे रही है और ना ही पंडित जी स्वयं कुछ इनिशिएटिव ले रहे हैं। पंडित जी के समर्थक कह रहे हैं कि उन्हें कुछ बड़ा पद मिलने वाला है, लिहाजा, वे कोई बयान देकर अपने नंबर कम नहीं कराना चाहते हैं।
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ठाकुर साहब चाहते क्या हैं?
ठाकुर साहब आखिर क्या चाहते हैं किसी को समझ नहीं आ रहा। पहले तो वे एक बयान देकर संगठन से उलझ गए थे, अब वे कह रहे हैं कि पार्टी और विपक्ष के लोग एक साथ बैठकर रात में उनके खिलाफ साजिशें रच रहे हैं। अचानक सामने आए ठाकुर साहब के इस बयान ने सियासी पारा चढ़ा दिया है। दरअसल, जब से ठाकुर साहब सत्ता से बाहर हुए हैं, तब उसे ऐन केन प्रकारेण की उनकी टीस बाहर आ ही जाती है। अब सत्ता और संगठन के लोगों को ही समझ नहीं आ रहा कि उनके 'साजिश' वाले बयान के क्या मायने हैं? और आखिर वे कौन नेता हैं, जो उनके खिलाफ साजिश रच रहे हैं।
सीनियर विधायकों की बांछें खिल गईं!
सत्ता की कुर्सी भी कितनी अजीब होती है। अब देखिए न, शहशांह के बयान के बाद उनके इस्तीफे की बातें हुईं तो कुछ सीनियर विधायकों की बांछें खिल गईं। वे दुआ कर रहे हैं कि इस बार तो कम से कम विजय हो जाए। उधर, सत्ता, संगठन ने कुछ मंत्रियों के प्रभार वाले जिलों में भी फेरबदल किया है। इसके भी कई मायने निकाले जा रहे हैं। कोई कह रहे हैं कि स्थानीय नेता संबंधित मंत्री से खुश नहीं थे, कोई कह रहा है कि मंत्रीजी अपने प्रभार वाले जिले में टाइम नहीं दे पा रहे थे। अब इसके पीछे असल वजह क्या है, ये तो डॉक्टर साहब ही जानें। हमने तो अपना काम कर दिया है।
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