बोल हरि बोल : खाकी का कमाल, जैन साहब की जय जयकार और माननीयों की भिड़ंत!

मध्यप्रदेश के प्रशासनिक गलियारों में इन दिनों कई दिलचस्प घटनाएं सुर्खियों में हैं। इंदौर के सुपर कॉरिडोर में जैन साहब का जादू चर्चा में है, जहां मंत्रालय के अफसर निवेश के सपने देख रहे हैं और....

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Harish Divekar
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Bol hari bol 27 april 2025 harish divekar journalist bhopal
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मध्यप्रदेश अजब है, सबसे गजब है। अब देखिए न, इन दिनों जैन साहब के चमत्कारों पर मंत्रालय के चंद अफसर झूम रहे हैं। वहीं, मास्टर प्लान की मृगतृष्णा ने सबको परेशान कर रखा है। खाकी वर्दी वालों की तो बात ही निराली है। कंधे पर सितारे सजाए रखने वाले साहबों ने आईएएस अफसरों के बीच आयोजन में कुत्ता घुमाकर साबित कर दिया कि उनके लिए सुरक्षा पहले, संस्कार बाद में हैं। 

उधर, इंजीनियर को लेकर दो माननीय आपस में उलझ गए। हालांकि अच्छी बात यह है कि इसका सुखद पटाक्षेप हो गया। रही-सही कसर सलाम ठोकने वाले फरमान ने पूरी कर दी है। अब खाकी वाले उलझन में हैं कि किसे देख कर सीना चौड़ा करें और किसे देख कर सलामी ठोकें। कुल मिलाकर प्रदेश का प्रशासन फिलहाल सेवा से ज्यादा 'सीन' बनाने में व्यस्त है। इस बीच आप तो सीधे नीचे उतर आइए और बोल हरि बोल के रोचक किस्सों का आनंद लीजिए। 

जैन साहब की जय! 

मंत्रालय के गलियारों में इन दिनों फुसफुसाहट है कि "भाई, ये जैन साहब आखिर हैं कौन?" दरअसल, इंदौर में पदस्थ जितने भी अफसर भोपाल लौटते हैं, सब जैन साहब के मुरीद होकर लौटते हैं। कहते हैं, जैन साहब वो जादूगर हैं, जो काले को सफेद और फिर उसे चमकदार भी बना देते हैं। चर्चा है कि इंदौर के सुपर कॉरिडोर में जैन साहब ने ऐसी फसल बोई है, जिसमें मंत्रालय के कई साहबों का काला, पीला और कुछ का तो सुनहरा माल भी लहलहा रहा है। अब आलम ये है कि मंत्रालय के अफसर इंदौर के सुपर कॉरिडोर को विकसित करने में पूरा जोर लगा रहे हैं। अफसरों की आंखों में सपने हैं, जेबों में गणित और जुबान पर विकास का एजेंडा। आखिर मंत्रालय भी जानता है कि जहां निवेश में हरियाली है, वहीं सच्चा विकास छिपा है... बाकी तो ठीकई है। 

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मास्टर प्लान या मृगतृष्णा?

भोपाल-इंदौर का मास्टर प्लान अब ऐसा यक्ष प्रश्न बन चुका है, जिसका किसी के पास नहीं है। पहले तो मंत्री जी ने दिसंबर 2024 की समय सीमा तय की थी। लगा कि अब तो मास्टर प्लान घोड़े पर सवार हो ही जाएगा, लेकिन दिसंबर बीता, साल बदल गया, पर मास्टर प्लान नदारद। फिर बड़े साहब ने दिलासा दी कि 31 मार्च तक प्लान आ जाएगा। बिल्डर भाइयों ने भी इंतजार शुरू कर दिया, पर अब अप्रैल भी बीतने को है और मास्टर प्लान अभी भी गुमशुदा है। हालात ये हैं कि अब बिल्डर आपस में फुसफुसा रहे हैं कि भाई, बड़े साहब ने 31 मार्च 2025 कहा था या 2026? इधर, विभाग में भी मास्टर प्लान की खोज किसी रहस्यमयी खजाने की तरह चल रही है। सच तो ये है कि इस मास्टर प्लान का आना अब सपनों के राजकुमार के आने जैसा हो गया है, जिसका सबको इंतजार है, पर किसी को पता नहीं कब आएगा। 

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खाकी का कमाल, मंच पर धमाल!

खाकी वर्दी वालों का स्वभाव भी बड़ा निराला है...। कब, क्या, कैसे कर दें, खुदा भी नहीं जानते। अब देखिए ना, सिविल सेवा दिवस का गरिमामय कार्यक्रम चल रहा था। मंच पर संबोधन चल रहा था। मुख्य सचिव साहब भी कुर्सी पर तनकर बैठे थे और सबको डॉक्टर साहब के आने का इंतजार था। तभी खाकी के सिपाही डॉग स्क्वॉड समेत धड़धड़ाते हुए मंच पर चढ़ आए। फिर क्या था, कुर्सियों के इर्द-गिर्द जांच शुरू हो गई। मुख्य सचिव साहब थोड़ा असहज दिखे, पर खामोश रहे। उधर, सभागृह में मौजूद सीनियर अफसरों के बीच फुसफुसाहट शुरू हो गई कि भाई, खाकी तो खाकी है, जो काम पहले करना था, वो अब याद आया। आयोजन का अनुशासन कुत्ते के सूंघने की रफ्तार के आगे हवा हो गया। 

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इंजीनियर बना मंत्री युद्ध का कारण!

सरकारी महकमों में इंजीनियरों का रुतबा कोई कम नहीं, साहब। अब देखिए, एक डेपुटेशन वाले इंजीनियर को लेकर दो मंत्री आपस में ही भिड़ गए। छोटे मंत्री जी ने ठान लिया था कि इंजीनियर को उसके मूल विभाग में वापस भेजकर ही दम लेंगे। नोटशीट भी चला दी, पर अफसरशाही ने मोर्चा साध लिया। मामला इतना गरमाया कि बड़े कैबिनेट मंत्री को ढाल बनानी पड़ी। छोटे मंत्री जी को जब भनक लगी तो सीधे बड़े मंत्री के बंगले पर जा पहुंचे। बोले— स्वाभिमान पर चोट हुई है भाईसाहब। आप अफसरों के कहने पर हमें ही दरकिनार कर रहे हो। छोटे मंत्री के इमोशनल पंच का असर ऐसा हुआ कि बड़े मंत्री ने अफसरों का साथ छोड़, मंत्रीधर्म निभाया और इंजीनियर साहब को तत्काल मूल विभाग की राह दिखा दी। कह सकते हैं, इस बार भी राजनीति में जीत दिल से हुई, दिमाग से नहीं। 

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क्या-क्या रंग दिखाएगा आदेश 


सांसद, विधायकों को सलाम ठोकने वाले आदेश से सूबे की सियासत गरमा गई है। खाकी वाले बड़े साहब की मंशा तो अच्छी थी, लेकिन इसके राजनीतिक मायनों ने काम बिगाड़ दिया है। मैदानी अफसर भी पशोपेश में हैं। सत्ताधीशों को सलाम ठोकने तक तो ठीक है, पर विपक्ष के माननीयों को... उनकी परेशानी यह है कि किसे खुश करें और किसे नाराज। उधर, विपक्ष ने इस आदेश को खाकी के आत्मसम्मान से जोड़ दिया है। एक नेताजी कह रहे हैं कि एक तरफ प्रदेश में पुलिस पर हमले की खबरें आ रही हैं, सत्ताधारी दल के नेता रुआब दिखा रहे हैं और दूसरी तरफ हेडक्वॉर्टर से ऐसे सलाम ठोकने के आदेश जारी हो रहे हैं। देखते हैं, आगे चलकर ये आदेश क्या क्या रंग दिखाता है। 

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