बोल हरि बोल : बड़े साहब का बंगला, चौधरी साहब का जोश और ठाकुर साहब की भक्ति...

सूबे के बिजली महकमे वाले मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर जी का क्या ही कहना है। सुर्खियों में रहने का उनका हुनर बस तारीफ-ए-काबिल है। कभी नाली में कूदकर सफाई का ड्रामा, तो कभी...

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Harish Divekar
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सिस्टम अब सिस्टम नहीं रहा, ये अब कला बन चुका है...जहां निर्णय तर्क से नहीं, मन से लिए जाते हैं। अब देखिए न अफसरों ने मंत्री महोदया से ऐसे पोर्टल और कॉल सेंटर का उद्घाटन करा दिया, जिनका पता ही नहीं है। 

उधर, बड़े साहब को आने वाले वक्त का कुछ आभास हो गया है, यही वजह है कि वे भविष्य की तैयारी में बंगला तलाशने में जुटे हैं। इधर, बाल संरक्षण करने वालों को "संरक्षण" की दरकार है। अब बात खाकी वालों की... तो इनकी तो लीला ही निराली है। पुलिस महकमा व्याख्या में ऐसा उलझा है कि सैल्यूट से ट्रांसफर तक, हर आदेश नई कॉमेडी स्क्रिप्ट बन रहा है। और मंत्रीजी? भक्ति में लीन हैं...फेसबुक लाइव पर, रोज राम नाम का नया एपिसोड। 

खैर, देश प्रदेश में खबरें तो और भी हैं, पर आप तो सीधे नीचे उतर आईए और बोल हरि बोल के रोचक किस्सों का आनंद लीजिए। 

5-7 दिन में काम हो जाएगा!


अफसरशाही रहस्यमयी कला है, जहां कई बार फैसले लॉजिक से नहीं, बस मूड से लिए जाते हैं। अफसर कब किसका उद्घाटन करवा दें, ये या तो त्रिकालदर्शी जान सकता है या खुद अफसर। अब हाल ही का नमूना देखिए। पानी वाले महकमे ने मंत्री महोदया से ऐसे पोर्टल और कॉल सेंटर का फीता कटवा लिया, जिनका अस्तित्व फिलहाल 'कल्पना लोक' में कहना ही ठीक होगा। ना कॉल सेंटर है, ना पोर्टल... पर उद्घाटन हो गया। बाकायदा लाल फीता, कैंची, मुस्कान और फोटो खिंचाई के साथ। मंत्री महोदया भी बिना सवाल पूछे, झट से रिबन काट गईं। अब अफसर अपने इस अदृश्य उपक्रम की पोल खुलने से बचाने में जुटे हैं। उनका कहना है कि कॉल सेंटर के नंबर और पोर्टल की लिंक के लिए अप्लाई कर दिया है, 5-7 दिन में काम हो जाएगा। जनता हैरान है कि अफसर अब सपनों का उद्घाटन भी करवाने लगे हैं। 

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वाह रे, राम भक्ति का डिजिटल दौर...

सूबे के बिजली महकमे वाले मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर जी का क्या ही कहना है। सुर्खियों में रहने का उनका हुनर बस तारीफ-ए-काबिल है। कभी नाली में कूदकर सफाई का ड्रामा, तो कभी बिजली के खंभे पर चढ़कर ‘करंट’ मारने का तमाशा। अब भई, मंत्रीजी को राम नाम की ऐसी लत लगी कि बस पूछो मत। राम नाम जपना तो पुण्य का काम है, भगवान की कृपा बरसती है, सुबुद्धि भी आती है। मगर हमारे ठाकुर साहब का जप मंदिर की घंटियों तले नहीं, फेसबुक लाइव के कैमरे के सामने होता है। हर दूसरे दिन, कभी गाड़ी में हिलते-डुलते, कभी ऑफिस की कुर्सी पर अकड़ते तो कभी घर में पालथी मारकर लाइव चालू... वे राम नाम का राग छेड़ देते हैं। अब ये भक्ति है या सुर्खियों की भूख, ये तो वही जानें। जनता बस स्क्रॉल करती रहती है और मंत्रीजी लाइव पर लाइक्स बटोरते रहते हैं। 

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बड़े साहब की प्लानिंग कुछ और है! 

बड़े साहब के लिए एक अदद बंगला तलाशने गृह विभाग के अफसर हलाकान हो गए हैं। जैसे—तैसे बंगला मिला भी तो वहां माननीय पहले से जमे हुए थे। बड़े साहब के लिए बंगला खाली करने के लिए कहा गया तो माननीय ने मामाजी का नाम ले लिया। सब जानते हैं माननीय और मामाजी के कितने प्रगाड़ संबंध हैं। पहले तो अफसर पीछे हट गए, लेकिन मामला बड़े साहब से जुड़ा होने के कारण अधिकारी लगातार माननीय को मनाने में लगे हुए हैं। अंदरखाने की खबर है कि माननीय मान गए हैं। बड़ा सवाल ये है कि अधिकृत रूप से बड़े साहब को 4 माह बचे हैं। इसके बाद भी बंगले की दरकार इस बात के संकेत दे रही है कि उन्हें एक्सटेंशन मिलना तय है। हालांकि राह बड़ी कठिन है पनघट की।

बच्चों का संरक्षण करने वाले खुद परेशान 

बच्चों के संरक्षण के लिए काम करने वाले खुद 'संरक्षण' की उम्मीद में सरकारी सिस्टम की ओर टकटकी लगाए बैठे हैं। खबर है कि बाल कल्याण समिति (CWC) और किशोर न्याय बोर्ड (JJB) के करीब 350 सदस्यों को दो महीने से मानदेय नहीं मिला है। दरअसल, भारत सरकार के प्रोजेक्ट एप्रूवल बोर्ड की बैठक समय पर नहीं हुई है।  इससे बजट अटक गया और बच्चों की देखभाल के लिए राशि भी। अब ये वही राशि है, जिसमें 60% केंद्र और 40% प्रदेश सरकार डालती है। कुल मिलाकर कहें तो जो लोग 0-18 साल के बच्चों के लिए दिन-रात खप रहे हैं, उनकी जेब खाली है। 

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चौधरी साहब और मैराथन बैठकें 

चौधरी साहब पार्टी में नई स्फूर्ति भरने के लिए जी-जान से जुटे हैं। पीसीसी में प्रेजेंटेशन का ऐसा दौर चल रहा है, मानो कोई कॉरपोरेट बोर्ड मीटिंग हो। बड़े नेता भी शामिल हो रहे हैं। अब ताजा मामला दिलचस्प है। चुनाव प्रबंधन की बैठक में विभाग ने ऐसा प्रेजेंटेशन ठोका कि चौधरी साहब चकरा गए। बोले, ये क्या... तुमने तो सारा 'आसमान' ही मांग लिया। दरअसल, चुनाव प्रबंधन वाले ट्रेनिंग, वोटर आईडी, ब्लॉक अध्यक्षों की नियुक्तियां, सब कुछ अपने जिम्मे करना चाहते थे। इसी हिसाब से उन्होंने प्रेजेंटेशन बनाया था। अरे भाई, इसके लिए अलग-अलग विभाग हैं। जलने वाले कह रहे हैं कि अब देखना है, चौधरी साहब पार्टी को कितना संवार पाते हैं, क्योंकि सात साल में आठ प्रभारी बदल चुके हैं।

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