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आज कल मध्यप्रदेश की सत्ता और शासन में ऐसा रियलिटी शो चल रहा है, जिसमें 'नवाचार', 'न्याय', 'ईमानदारी' जैसे शब्द सिर्फ स्क्रिप्ट के डायलॉग बनकर रह गए हैं।
बड़े साहब गुस्से में तमतमा रहे हैं। कुछ साहब लोग बंगलों को ताजमहल बनाने पर उतारू हैं। नेताजी तो थाने में अपना आदमी बिठाकर खुद को शहंशाह समझ रहे हैं।
सरकारी तंत्र अब इतना रचनात्मक हो गया है कि भ्रष्टाचार भी क्रिएटिव तरीके से किया जा रहा है। अब देखिए न इंदौर में साहब लोगों ने टेंडर की शर्तों में तड़का लगा दिया, ताकि चहेती कंपनी को लड्डू मिल जाएं।
देश, प्रदेश में खबरें तो और भी हैं, पर आप तो गर्मी के इस मौसम में सीधे नीचे उतर आईए और बोल हरि बोल के रोचक किस्सों को पढ़कर मिजाज ठंडा कीजिए।
अब गुस्सा क्यों होने लगे बड़े साहब!
मंत्रालय में इन दिनों बड़े साहब को खूब गुस्सा आ रहा है। पहली बार ऐसे नजारे देखने को मिल रहे हैं कि सीनियर आईएएस चिंता में हैं।
बड़े साहब के तेवर इस कदर गरम हैं कि बैठकों में खुलेआम अफसरों की धुलाई हो रही है। दरअसल, हॉट सीट पर बैठने से पहले ये साहब सहज और सरल व्यक्तित्व के धनी माने जाते थे।
साहब की ईमानदारी, योग्यता और दूरदर्शिता पर तो कोई सवाल ही नहीं है, लेकिन साहब के व्यवहार में अचानक आया बदलाव जरूर चर्चा का विषय है। अब हालत यह है कि जूनियर अफसर सकते में हैं।
एक बैठक में तो बड़े साहब ने बिना नाम लिए चेतावनी दे दी कि मैं चाहूं तो दो अपर मुख्य सचिव को सस्पेंड कर दूं। अब कौन वो दो सीनियर अफसर हैं, ये तो खुद साहब जानें, मगर डर सबके माथे पर साफ दिख रहा है।
इन सबका नतीजा ये हुआ है कि इनोवेशन, रिफॉर्म और बड़े कामों से अफसरों ने तौबा कर ली है। अब सब 'रुटीन' का झंडा उठाकर बैठ गए हैं।
न नया करेंगे, न डांट खाएंगे। साहब के डर से मंत्रालय में अब वाइलेंट साइलेंस पसर गया है।
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डायरेक्टेड गया छुट्टी पर!
ई-फाइलिंग सिस्टम क्या लागू हुआ, सीएमओ में विराजमान एक सेक्रेटरी साहब ने डायरेक्टेड जाना ही मानो अधर्म मान लिया है। अब साहब मंत्रालय की ऊंची मीनार में बैठकर डायरेक्टेड की सारी फाइलों पर क्लिक-क्लिक कर रहे हैं।
साहब को न भीड़ की झंझट, न लोगों की फरियादें सुनने का झंझट... सब कुछ डिजिटल हो गया। साहब की इस नीति से सबसे ज्यादा परेशानी छोटे जनप्रतिनिधियों और आम लोगों को हो रही है।
पहले डायरेक्टेड में पहुंचकर साहब से सीधे मिलकर बात कह देते थे, अब सीएमओ की चौखट पार करना किसी तीर्थ से कम नहीं।
जनता सोच रही है, ई-फाइलिंग से सरकार भले स्मार्ट हो गई हो, पर इंसानी संवाद तो मिलकर ही होता है और साहब हैं कि सिस्टम को भगवान मानकर खुद को अवतार समझ बैठे हैं।
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साहबों के बंगले बड़े न्यारे!
कभी- कभी लगता है कि राजधानी में कुछ साहब लोगों का शाहजहां वाला प्यार जाग गया है। अब देखिए न भोपाल में कुछ अधिकारी अपनी 'मुमताज' की ख्वाहिश पर सरकारी बंगलों का ऐसा रंगरोगन करा रहे हैं कि पूछिए मत।
बेजा पैसा खर्च हो रहा है। सबसे ज्यादा चर्चा 74 बंगला क्षेत्र के एक सरकारी आवास की है। यहां एक संचालनालय के आयुक्त सरकारी बंगले को महलनुमा बना रहे हैं।
जब पीडब्ल्यूडी फण्ड की लिमिट पूरी हुई तो उन्होंने संचालनालय के इंजीनियरों से उगाही शुरू कर दी। एक साल से बंगले का काम जारी है और इस पर डेढ़ करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं।
आपको बता दें कि ये साहब अभी चार इमली में रह रहे हैं। वहीं चार इमली में रहने वाले एक डायरेक्टर साहब के यहां भी लाल बैग की तरह काम चल रहा है।
ये साहब मंत्रालय में ऐसी पोस्ट पर हैं कि इन्हें पीडब्ल्यूडी चाहकर भी फण्ड की लिमिट नहीं बता सकता। वहीं, तीसरे साहब की कहानी और दिलचस्प है।
ये हैं तो इंजीनियर, पर बहुत ऊंचे वाले हैं। इन्होंने सेटिंग जमाकर हाल ही में रिटायर हुए एक एसीएस का बंगला लिया है। बंगला पहले से ही चकाचक था, लेकिन इंजीनियर साहब ने आते ही तोड़ फोड़ शुरू करवा दी है।
साहब खुद पीडब्ल्यूडी से हैं तो इन्हें पता है कि निर्माण के लिए कहां से कितना फंड जुगाड़ा जा सकता है। मजेदार बात ये है कि हर बार विधानसभा में माननीयों के बंगले पर खर्च हुई राशि पर सवाल लगते हैं, लेकिन अफसरों के बंगले पर नहीं...। यदि अफसरों के बंगले पर सवाल लग गए तो चौंकाने वाले खुलासे होंगे।
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अब जांच की आंच भी ठंडी पड़ी
राजधानी में पांच माह पहले इनोवा कार में मिले 52 किलो सोना और नकदी की सनसनीखेज जब्ती हो या सागर में बीजेपी नेता के घर पड़ी आयकर की रेड, इन दोनों चर्चित मामलों की फाइलें अब अलमारियों में धूल फांक रही हैं।
इसकी वजह साहब लोगों के तबादले हैं। दरअसल, बीते महीने इन्वेस्टिगेशन विंग के एडिशनल कमिश्नर आदेश राय, पीसीआईटी भोपाल पीसी मौर्य समेत दो दर्जन अफसरों का तबादला कर दिया गया है।
दिलचस्प बात ये कि इनमें से कई अफसर वही थे, जिन्होंने इन छापों को अंजाम दिया था। हालांकि अब कहा जा रहा है कि जांच की गाड़ी इस महीने के आखिर में दोबारा दौड़ेगी।
जलने वाले सवाल कर रहे हैं कि क्या हर बड़ी जांच की रफ्तार इसी तरह तबादलों की सीढ़ियों पर अटकती रहेगी?
डिप्टी जेलर पर किडनैपिंग का आरोप
मध्यप्रदेश में इन दिनों चल रहे लव जिहाद के मामलों के बीच एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। शहडोल में एक नाबालिग के साथ हुए गैंगरेप के मामले में पता चला है कि उसे कथित तौर पर डिप्टी जेलर द्वारा एक होटल में ले जाया गया था, जहां से पुलिस ने उसे बचाया।
डिप्टी जेलर पर ही नाबालिग की किडनैपिंग का आरोप है। पीड़िता का कहना है कि वह 30 अप्रैल की रात शहडोल स्टेशन की ओर जा रही थी, जब उसे डिप्टी जेलर ने लिफ्ट देने की पेशकश की थी।
अब ये आरोप कितने सच हैं, ये तो जांच के बाद ही पता चलेगा, लेकिन इस केस ने एक नई बहस खड़ी कर दी है।
विधायक जी के नवाचार चालू आहे
ग्वालियर-चंबल के विधायक जी तो जैसे अपने ही नियम-कानून चलाने पर तुले हुए हैं। पार्टी के वरिष्ठों ने अभी दो दिन पहले ही उन्हें अनुशासन-संस्कार का तगड़ा डोज दिया था, लेकिन विधायक जी इस डोज को डकार गए हैं।
अब उनका नया नवाचार सामने आया है। जी हां, विधायक जी ने थाने में अपना प्रतिनिधि तैनात कर दिया है। वैसे ये कोई पहली बार नहीं है।
पहले भी नेताजी ने अपने दरबार से ऐसे कई नियुक्ति-पत्र बांटे हैं। प्रशासन से टकराव की ये कहानी पुरानी हो चली है, लेकिन लगता है विधायक जी का जुझारूपन अभी ताजा है।
अपनों को फायदा ऐसे पहुंचाते हैं!
इंदौर से एक और चमकदार मिसाल आई है कि सत्ता और शासन में बिना सेटिंग के सूरज भी नहीं उगता। अब देखिए न, महिला एवं बाल विकास विभाग ने 14.60 करोड़ की मेडिकल किट का टेंडर निकाला, लेकिन शर्तों में ऐसा तड़का लगाया कि चहेती कंपनी सीधे प्लेट में उतर आए।
शर्त ये रखी कि 5 सर्जिकल आइटम छोड़ बाकी में से कम से कम 4 चीजें वही कंपनी खुद बनाती हो, मतलब इस शर्त से बाकी कंपनियां वैसे ही बाहर हो जानी थीं।
सेटिंग की इस स्क्रिप्ट में हाईकोर्ट बीच में आ गया। कोर्ट ने न सिर्फ टेंडर को कूड़ेदान में फेंका, बल्कि विभाग पर 10 लाख का जुर्माना भी ठोंक दिया।
आदेश में कोर्ट ने दो टूक कहा कि चाहे भेदभाव कितना भी कलात्मक हो, वो भेदभाव ही रहता है। अब अफसर सोच रहे हैं कि अगली बार सेटिंग थोड़ी और साफ-सुथरी करनी पड़ेगी।
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