मध्य प्रदेश की सियासत में इन दिनों मुरली की तान सुनाई दे रही है। तुरंत दान, महाकल्याण हो रहा है। लोकसभा चुनाव के नतीजों से भाईसाहब भी गदगद हैं, पर थोड़े अनमने से दिखाई पड़ते हैं। पता नहीं क्या हुआ? भिया अलग राह पर हैं। छप्पन वाले शहर में इक्यावन लाख की चर्चा है।
मंत्रालय में फुसफुस हमेशा की तरह चालू आहे। एक पानी वाले साहब के हनी-बनी की चर्चा आम है। साहब के मिजाज ने उन्हें मुसीबत में डाल दिया है। शामें रंज-ओ-गम के बीच गुजर रही हैं। एक फाइनेंस अफसर अपने मंत्री दोस्त के कंधे पर बंदूक रखकर जमकर 'फायर' कर रहा है। दूसरा, एक साहब इन दिनों चैतन्य नहीं हैं।
खैर, देश-प्रदेश में खबरें तो और भी हैं, पर आप तो सीधे नीचे उतर आईए और बोल हरि बोल (Bol hari bol ) के रोचक किस्सों का आनंद लीजिए।
नारायण- नारायण... मंत्री जी और विकास कार्य!
महाराज लौटे थे दिल्ली से। मजमा सजा था। डॉक्टर साहब सहित तमाम वीवीआईपी थे। तभी नारायण- नारायण हो गया। क्या है कि एक मंत्री महोदय का दर्द छलक उठा। मंत्री जी अपने विधानसभा क्षेत्र में विकास कार्य न होने से नाराज हैं। उनकी पीड़ा इस भव्य आयोजन में सामने आ गई। जैसे ही ठाकुर साहब ने अपना भाषण पूरा किया तो मंत्री जी ने कलई खोल दी। उनकी बात से सनाका खिंच गया। अब कोई क्या कहता। यह खबर आज के अखबारों में भी दमक रही है।
मामा गए दिल्ली, दिल्ली से लाए...?
मामा गए दिल्ली, दिल्ली से लाए… अरे रुकिए तो साहब। मामा दिल्ली तो गए हैं, पर आज यानी 16 जून को वे भोपाल आ रहे हैं। माननीय मामा के स्वागत में नेताओं ने पलक पांवड़े बिछा दिए हैं। राजधानी में मेगा शो होगा। 65 जगह भैरंट सत्कार किया जाएगा। मामा की टीम ने सभी 65 जगहों की सूची जारी की है, जहां उन्हें फूल-मालाएं पहनाई जाएंगी। दिल्ली दरबार में अहम जिम्मेदारी मिलने के बाद मामा सरपट दौड़ रहे हैं। हमारी ओर से भी उन्हें बधाई एवं शुभकामनाएं...।
कौन जाएगा, कौन नहीं… महीनेभर रुकिए बस!
सभी 29 सीटें बीजेपी की झोली में डालने वाले मध्य प्रदेश की धमक दिल्ली दरबार में भी बढ़ी है। जनता ही नहीं, अफसरान की उम्मीदें भी कम नहीं हैं। क्या है कि अब सूबे के कोटे से छह मंत्री हैं। अब मुरुगन साहब को भी तो गिनिए न, वे भी एमपी के कोटे से ही मंत्री बने हैं। लिहाजा, सबकी नजरें तख्त-ओ-ताज की तरफ हैं। पुराने सरकार के वक्त पॉवरफुल रहे कई अफसर फिलहाल लूप लाइन में हैं। वे भी अब दिल्ली जाना चाहते हैं। लिहाजा, अभी उनकी पूरी दौड़ धूप इसी में चल रही है। कौन दिल्ली जाएगा और कौन नहीं… महीनेभर में सब साफ हो जाएगा। हम नाम नहीं बताएंगे, क्योंकि जो जाना चाहते हैं, उन्हें तो पता ही है। जिन्हें नहीं पता, फिर मानो उन्हें कुछ नहीं पता।
मोहन का कमाल, विरोधी पस्त
ऊपर आपने मुरली और डमरू की डम-डम के बारे में पढ़ा था। अब इसका विस्तार भी जान लीजिए। क्या है कि डॉक्टर साहब ने अपनी स्टाइल से सबको चौंका दिया है। पड़ोसी राज्य से उन्होंने 24 घंटे में पानी मंगवाकर अपने विरोधियों को मानो पानी पिला दिया। मामला बुंदेलखंड से जुड़ा है। मोहन ने ऐसी तान छेड़ी कि योगी भी रीझ गए। डॉक्टर साहब की चिट्ठी पर तुरत-फुरत एक्शन हुआ और टीकमगढ़ की जलसंकट की समस्या दूर हो ली। फिर पीएमश्री हेली सेवा का इनोवेशन भी सकल देश में सराहा जा रहा है।
चैतन्य नहीं हो का भैया...?
मंत्रालय से इतर एक दूसरी नई बिल्डिंग के चौथे माले पर बैठने वाले आईएस अलग टशन में रहते हैं। आधी हिन्दी, आधी अंग्रेजी में बातें करने वाले ये महाशय कब- क्या कर बैठें, किसी को पता नहीं। अव्वल तो वे अपने यहां आने वाले आगंतुकों के सामने ही सरकार की माली हालत की पोल खोलते थे, अब इन्होंने सार्वजनिक आदेश जारी कर डॉक्टर साहब की किरकिरी सी करा दी है। नियम-कायदों का पाठ पढ़ाने वाले इन साहब ने अब कहा है कि प्रशासनिक मद में रुपए नहीं हैं। इसलिए युवाओं को 'रोजगार' से दूर रखा जाए। गजब है बॉस...। तेज चलना अच्छी बात है, पर डॉक्टर साहब तर्रा गए तो मुश्किल में पड़ जाएंगे। हमारी तो यही सलाह है कि साहब अपनी 'सेहत' का ध्यान रखें।
हैलो फ्रेंड्स...खाना खा लो जी!
बचपन में आप और हममें से कई ने डॉक्टर- डॉक्टर खेला होगा। यह मामला ऐसे ही दो डॉक्टरों से जुड़ा है। क्या है कि पहले दोनों पक्के दोस्त थे। फिर कट्टी हो गए।
बशीद्र बद्र साहब ने कहा है न कि...
दुश्मनी जम कर करो, लेकिन ये गुंजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त हो जाएं तो शर्मिंदा न हों।
बस ऐसा हुआ मानो। एक नेताजी ने दोनों में सुलह कराई। पक्की दोस्ती हो गई। दोनों में से कोई शर्मिंदा नहीं हुआ। एक डॉक्टर साहब दूसरे के घर पहुंचे और भोजन प्रसादी हुई। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि दोनों डॉक्टर एक ही वर्ग से आते हैं। पहले पक्के दोस्त थे। फिर एक डॉक्टर साब नेतागिरी में उतरे और माननीय बन गए थे, दूसरे डॉक्टरी ही कर रहे थे।
जाके पांव न फटे बिवाई,
सो क्या जाने पीर पराई।
यानी जिस को कभी दु:ख नहीं हुआ, वो दूसरों का कष्ट क्या जाने। ऐसा ही एक मामला रिटायर्ड आईएएस की पत्नी का है। मैडम एक यूनिवर्सिटी से रिटायर हुई हैं। मगर… 7 बरस से उनकी पेंशन नहीं बन पा रही थी। मामला हाईप्रोफाइल था तो ब्यूरोक्रेसी के बड़े साहबों ने जोर लगाया, लेकिन बाबू तो बाबू ठहरे। हर बार कोई न कोई कागज का पेंच फंसा देते। इसके बाद वरिष्ठ अफसरों ने पूरी ताकत लगा दी, तब जाकर मैडम की पेंशन हो पाई। इस केस के बाद मंत्रालय में आला अफसर ही कहते फिर रहे हैं कि जब ये हालात हमारे अफसर की पत्नी के साथ हो सकते हैं, तो तो बेचारे छोटे- मोटे कर्मचारी का क्या ही हाल होता होगा।
मंत्री की दलाली में अफसर के हाथ काले
पहली बार मंत्री बने साहब ने अपने पुराने दोस्त को दलाली में लगा दिया है। दरअसल, मंत्री जी का दोस्त फाइनेंस डिपार्टमेंट में अधिकारी है। मंत्री जी के पास दूसरा विभाग है। ऐसे में वे अपने दोस्त को चाहकर भी ओएसडी नहीं बना पा रहे। लिहाजा, मंत्री और अफसर ने बीच का रास्ता निकाल लिया है। अब फाइनेंस अधिकारी देर रात बंगले पर जाकर सारा हिसाब- किताब जमाते हैं। विभाग के अधिकारियों को भी समझ आ गया है कि काम के लिए मंत्री से नहीं, उनके फाइनेंस अधिकारी दोस्त से मिलना है।
हनी के फेर में पत्नी से भी टूटा नाता
पानी वाले विभाग के अफसर हनी के फेर में ऐसा लिपटे कि अपनी धर्मपत्नी को भूल बैठे। प्रेम प्रसंग की भनक मैडम को लगी तो बात तलाक तक जा पहुंची। हनी की चाशनी में डूबे साहब को पत्नी के दूर होने का रंज होने के बजाए खुशी थी, लेकिन अचानक हनी ने डंक मार दिया और 2 करोड़ की डिमांड करके सारा प्रेम का भूत उतार दिया। साहब ने थाने में मामला दर्ज करके हनी से तो छुटकारा पा लिया, लेकिन दूसरी तरफ पत्नी का साथ भी छूट गया। इन साहब पर ये लाइन फिट बैठ रही है कि
न खुदा दा ही मिला न विसाल-ए-सनम,
न इधर के हुए न उधर के हुए हम।
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