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राजनीति का मैदान भले ही लोकतंत्र का प्रतीक माना जाता हो, पर असल में यह एक ऐसे अखाड़े जैसा है जहां हर पहलवान सिर्फ अपने को बड़ा साबित करने में जुटा रहता है। मुद्दे, विचारधारा और जनता की भलाई सब हाशिये पर धकेल दिए जाते हैं। असली खेल है होता है वर्चस्व की राजनीति!
मध्य प्रदेश में चारों तरफ इन दिनों यही खेल जारी है। पक्ष हो या विपक्ष... हर कोई किसी न किसी से रार ठाने बैठा है। बात चाहे बुंदेलखंड की हो... अथवा मालवा की। विंध्य की हो या भोपाल की। सत्तारूढ़ दल के नेता भिड़े पड़े हैं।
वर्चस्व अफसरशाही में भी कम नहीं। अब इसी मामले को देख लीजिए। खाकी वाले महकमे में वर्चस्व कायम करने की कोशिश है। 'अपनों' को उपकृत किया जा रहा है। इधर, नेतानगरी में अलग कहानी है। एक अफसर बैठक से नदारद क्या हुए, मंत्रीजी का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया। उन्होंने उसके ट्रांसफर का फरमान सुना दिया। उधर, मंत्रालय से खबर निकली है कि बड़ी मैडम ने हेल्थ डिपार्टमेंट वाले साहब को नोटिस देने की ठान ली थी। ये सारा बवाल एक महिला स्वास्थ्य अधिकारी की नियुक्ति से जुड़ा था। साहब के लिए बुरा हो सकता था, मगर पांचवें माले वाले साहब ने मामले को शांत किया।
खैर, देश प्रदेश में खबरें तो और भी हैं, पर आप तो सीधे नीचे उतर आईए और बोल हरि बोल के रोचक किस्सों का आनंद लीजिए।
इत्ता गुस्सा नहीं होते मंत्रीजी!
एक प्रभारी मंत्रीजी पहली ही समीक्षा बैठक में नाराज हो गए। कलेक्ट्रेट में हुई बैठक में स्मार्ट सिटी के सीईओ के नहीं पहुंचने पर पहले तो मंत्रीजी ने कलेक्टर से नाराजगी जताई। फिर सीईओ का तबादला करने के निर्देश दे डाले। कुल मिलाकर पूरी बैठक चर्चाओं में है। हुआ कुछ यूं भी था कि समीक्षा बैठक में बीजेपी संगठन के लोग भी पहुंच गए। इस पर कांग्रेस के विधायक ने अपना कड़ा विरोध दर्ज कराया। वे बोले, बैठक प्रशासनिक व्यवस्थाओं की समीक्षा के लिए बुलाई गई और इसे बीजेपी की व्यक्तिगत बैठक बना दिया गया। विधानसभा अध्यक्ष से शिकायत करूंगा।
May I Have Your Attention Please
May I Have Your Attention Please... मुख्य सचिव की ट्रेन आउटर पर खड़ी है। कुछ ही दिन में साहब चौथे माले पर पहुंच जाएंगे। ट्रेन की देरी के लिए किसी को खेद नहीं है। हां, सीएस के लिए डॉक्टर साहब बिल्कुल फिट पाए गए हैं। भोपाल स्तर पर सत्ता और संगठन ने उनके नाम को हरी झंडी दे दी है। दिल्ली से उनके नाम पर फिलहाल मुहर भले नहीं लगी हो, पर वहां से रेड लाइट भी नहीं है। मतलब, साफ है कि डॉक्टर साहब अब पांचवें माले से उतरकर चौथी मंजिल पर आने के लिए तैयार हैं। उधर, पंडित जी भी ढीले पड़ गए हैं। हां, यह जरूर है कि उनका रिटायरमेंट सम्मानजनक होगा। वहीं, अभी वाली मैडम ने हाथ पैर तो खूब मारे, पर बात नहीं बनी। लिहाजा, उन्होंने अपने पुनर्वास की तैयारी कर ली है। मैडम चुनाव वाला महकमा संभालेंगी।
खाकी वाले साहब मुसीबत में...
खाकी वाले एक साहब इन दिनों बुरे फंसे हैं। उन्हें पत्रकार से विवाद मोल लेना महंगा पड़ता नजर आ रहा है। साहब नर्मदा किनारे वाले शहर में पदस्थ हैं। उनका पहले एक कलमकार से विवाद हुआ था। अब पीड़ित पत्रकार ने खाकी पर दाग लगाए हैं। उनका कहना है कि पुलिस ने ही उनके परिवार को गायब कराया है। इस मामले में हाईकोर्ट का आदेश है कि पुलिस सोमवार दोपहर 12 बजे तक पत्रकार के परिवार को चीफ जस्टिस के सामने पेश करे, वरना...। अब वरना क्या होगा... ये तो सोमवार को ही पता चलेगा। हमनें तो अपनी बात रखी दी है। फिलहाल आला अफसरों के हाथ पांव फूल गए हैं।
जाति न पूछो साहब की...
एक कहावत है, जाति ना पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान...। अब हमारा यह किस्सा तनिक अलग है। सो हमारे हिसाब से कहावत है... 'जाति ना पूछो साहब की, पूछ लीजिए ज्ञान...। नहीं समझे न। दरअसल, इन दिनों अफसरशाही में एक बात की बड़ी चर्चा है। क्या है कि प्रदेश के पुलिस महकमे में शीर्ष पदों पर 'लालाजी' विराजमान हैं। हालांकि आप ये भी कह सकते हैं कि ये अफसर अपनी योग्यता से इन पदों पर बैठे हैं, मगर ये अजब संयोग दूसरे साहबों को खटक रहा है। पूरा मामला कुछ अलहदा है। 'बड़े साहब' अपने रिटायरमेंट से पहले सबकुछ सेट करना चाहते हैं। कई ज़ोन और जिलों में 'लालाजी' तैनात हैं। अब खबर है कि एक 'लालाजी' को ही पुलिस कमिश्नर बनाने के लिए भारी जोर लगाया जा रहा है।
जब मैडम ने भरी मीटिंग में कहा...
अपनी रंगीन मिजाजी के लिए मशहूर एक आईएएस अधिकारी ने पिछले दिनों मंत्रालय में आमद दी है। साहब पहले कलेक्टर थे। अब मामला ऐसा है कि 'बड़ी मैडम' ने वीसी बुलाई। सब अफसर पहुंचे। ये साहब आए और अगली पंक्ति में बैठ गए। यह देख मैडम गुस्सा हो गईं।
उन्होंने भरी मीटिंग में हिदायत देते हुए कह दिया कि थोड़ा प्रोटोकॉल का ध्यान रखें, अब आप कलेक्टर नहीं हैं। साहब भी बेचारे क्या करते। चुपचाप पीछे की सीट पर बैठ गए। इस पूरे वाक्ये को बाद में मंत्रालय में खूब चटखारे लेकर कहा-सुना गया। हमारी भी साहब को यही सलाह है कि मंत्रालय में 'मंजिल' का अहम रोल है। उनके लिए यही अच्छा है कि जल्द यहां के कायदे सीख-समझ जाएं।
मैडम! ये क्या करने वाली थीं आप?
बड़ी मैडम जिससे खुन्नस पाल लेती हैं, मान लीजिए किसी भी तरह से उसका काम लगना तय है। अब यही किस्सा देख लीजिए। नीचे के अफसरों की मामूली गलती की सजा वे साहब को देना चाहती थीं। वो तो भला हो, पांचवें माले वाले साहब का... जो उन्होंने हस्तक्षेप किया और मामला किसी तरह से रफा-दफा किया, वरना मैडम ने तो हेल्थ में अपर मुख्य सचिव रहे साहब को कारण बताओ नोटिस देने की तैयार कर ही ली थी। दरअसल, यह कहानी एक महिला स्वास्थ्य अधिकारी की नियुक्ति से जुड़ी है। जब बात हाईकोर्ट तक पहुंची तो बड़ी मैडम ने इसमें हेल्थ वाले साहब को आड़े हाथ लेने की कोशिश की थी। अब समझने वाले तो समझ ही गए होंगे कि पहले हेल्थ में कौन साहब कौन थे और पूरा माजरा क्या है?
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