Raipur. छत्तीसगढ़ के वैज्ञानिकों ने देश के सामने एक गंभीर विषय पर रिसर्च की है। इस रिसर्च में बादलों के फटने का कारण और कार्बन कण से नुकसान के बारे में सटीक विश्लेषण किया गया है। यह रिसर्च छत्तीसगढ़ के वैज्ञानिक प्रोफेसर शम्स परवेज के नेतृत्व में किया है। वहीं यह रिपोर्ट भी केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय भारत सरकार को सौंप दी है। द सूत्र ने प्रोफेसर शम्स ने खास बातचीत की है।
द सूत्र का सवाल- कार्बन कैसे निकलता है और सबसे ज्यादा इसके निकलने के कारण क्या है?
प्रोफेसर शम्स परवेज का जवाब- लोकल एक्टिविटी बहुत ज्यादा बर्निंग एक्टिविटी है। वहां पर गाड़ियों का चलन भी ज्यादा है और आयल की बर्निंग भी बहुत है। जिससे कार्बन पार्टिकल इकट्ठे हो रहे हैं जिससे ब्लैक कार्बन और ब्राउन कार्बन वहां पहुँच रहा है जो सीधा सेंट्रल हिमालय को हिट करता है। कश्मीर की तरफ पाकिस्तान और चाइना के द्वारा कराकोलम में डेवलपमेंट में ऑफरोडिंग व्हीकल चल रहे हैं। जिससे ब्लैक कार्बन बहुत तेजी से निकलता है। जो सीधा हिमालय के ग्लेशियर को प्रभावित करता है।
द सूत्र का सवाल- कार्बन के इकट्ठा होने से क्या प्रभाव पड़ता है?
प्रोफेसर शम्स परवेज का जवाब- कार्बन के इकट्ठा होने से पानी की बड़ी बड़ी बूंदे गिरती है। जिससे पहाड़ों की मिट्टी के नीचे मौजूद चट्टान में सरांध्रता पैदा करता है। जो पहाड़ ढहने का मुख्य कारण बनता है। विकास डेवलपमेंट का एक फैक्टर हो सकता है। लेकिन पूरा कारण नहीं हो सकता हर विकास को डेवलपमेंट के साथ नहीं जोड़ सकते हैं। यदि कार्बन कंट्रोल कर लेंगे तो बादल फटने के चांस कम हो सकते हैं।
द सूत्र का सवाल- छत्तीसगढ़ में पीएम मानक की क्या स्थिति है इसमें क्या उतार चढ़ाव अभी तक आया है?
प्रोफेसर शम्स परवेज का जवाब- छत्तीसगढ़ जब नया राज्य बना था तो इसका पीएम 2.5 मानक 50-60 माइक्रोग्राम था और 2018 में बढ़कर 145 माइक्रोग्राम और उद्योगित क्षेत्रों में 220 माइक्रोग्राम तक मिला था। कोरोना आने की वजह से इसमें कमी आई और अब 55-60 के बीच हो गया है। फैक्ट्रियों में ब्लैक फिल्टर हाउस लगाया गया है इसकी पुष्टि की जानी चाहिए। हर विभाग में इंवायरमेंटलिस्ट की नियुक्ति की जानी चाहिए। जिससे जो भी नीतियां बनती है। उसमें प्रकृति का ख़्याल रखा जाए। पब्लिक को जागरूक होने की ज़रूरत है आग लगाने से बचना चाहिए क्योंकि इससे सबसे ज़्यादा कार्बन पार्टिकल बनते हैं।