नितिन मिश्रा, RAIPUR. श्रमिक दिवस के अवसर पर बोरे-बासी को भोजन के रुप में शामिल करने की सीएम भूपेश बघेल की पिछले साल शुरू की गई परंपरा का अनुपालन राज्य के सभी प्रशासनिक अधिकारियों ने अनुशासित रूप से किया। छत्तीसगढ़ सीएमओ के ट्विटर हैंडल से लगातार जिला स्तरीय अधिकारियों के बासी खाते फ़ोटो ट्विट किए गए। अधिकृत रुप से ऐसा किए जाने के कोई निर्देश जारी होने की सूचना नहीं है, पिछली बार भी जबकि ऐसा हुआ तब भी आधिकारिक रूप से ऐसा हर ज़िला अधिकारी करें और तस्वीर पोस्ट करें के निर्देश जारी नहीं थे।
सीएम भूपेश मानते हैं बासी को श्रम का सम्मान
सीएम भूपेश बघेल ने बोरे बासी को श्रम का सम्मान निरुपित किया है। बोरे बासी दरअसल गर्मी के मौसम में शरीर को ठंडा रखता है। सीएम भूपेश का मानना है कि पोषक तत्वों से भरपूर इस भोजन को श्रम दिवस के दिन खाने से श्रम का सम्मान होता है।
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क्या है बोरे बासी
बोरे शब्द छत्तीसगढ़ी के बोरना से आया है जिसका अर्थ है डुबाना।और बासी का अर्थ वही है जो हिंदी में है, बचा हुआ पुराना। खाने पीने से जुडे पदार्थों के लिए इन शब्दों का उपयोग किया जाता है,तो इस तरह बासी मतलब रात का बचा हुआ खाना तो एक बोरे होता है एक बोरे बासी होता है। सुबह के पके चावल या कुछ देर पहले पके चांवल को पानी में भीगा दें (बोर दें) और फिर स्वादानुसार दही/ मठा, नमक डालकर प्याज, मिर्च की चटनी, अथान (अचार) आदि के साथ खाया जाये तो ये बोरे खाना हुआ जबकि बोरेबासी सामान्यतः रात के पके हुए चांवल को पानी डालकर (बोर के) रख दिया जाता है, अगली सुबह इसमें हल्की सी खटास आ गई होती है, इसे ही बोरेबासी कहते हैं। यदि इच्छा हो तो इसमें भी दही मठा आदि डालकर इसे और खट्टा किया जा सकता है। नमक डालकर प्याज, मिर्च की चटनी, अथान (अचार) आदि के साथ खाया जाता है। अधिक इच्छा हो तो छत्तीसगढ़ का ही एक और व्यंजन 'बिजौरी' पापड़ भी इसके साथ खाया जा सकता है। इससे शरीर हल्का होता है, ये आसानी से पचता है। गर्मी, लू आदि से बचाता है। आंत में मित्र सूक्ष्मजीवों की पर्याप्त वृद्धि करता है जिससे पाचन संस्थान बेहतर होता है,पेट के पाचन संबंधी रोगों में लाभप्रद है।कब्ज आदि नहीं होने देता।रक्तचाप नियंत्रण में प्रभावी भूमिका निभाता है। शाकाहारी लोगों के लिए यह विटामिन बी12 का सबसे समृद्ध स्रोत है।
कहां से आया प्रचलन में
उड़ीसा और छत्तीसगढ़ बिलकुल सटे हुए हैं। उड़ीसा में पखाल भात के नाम से इसी का प्रचलन है, बल्कि उड़ीसा में पखाल दिवस के रूप में एक दिन विशेष तय है। यह गर्मी के मौसम में श्रमिक जो कि खेतों में काम करते हैं उनके लिए अस्तित्व में आया था। चुंकि उड़ीसा में छत्तीसगढ़ का श्रमिक संबंध है इसलिए यह भोजन व्यवस्था छत्तीसगढ़ में भी लोकप्रिय हो गई।