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KORBA. कोरबा के कुसमुंडा खदान के भूविस्थापितों द्वारा शुरू किए गए आंदोलन में मंगलवार को सभा का आयोजन किया गया। इसमें शामिल होने आए किसान नेता राकेश टिकैत ने सभा में हुंकार भरी। राकेश टिकैत ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकार दोनों ही यहां गरीबों की जमीन छीनकर उद्योगपतियों को देने पर आमादा हैं। उधर केंद्र सरकार उद्योगपतियों की तिजोरी भरने के लिए जी-जान से जुटी है। जब तक अंतिम भूविस्थापित को न्याय नहीं मिल जाता, हम तब तक लड़ेंगे।
गंगानगर में विस्थापन पीड़ितों की संघर्ष सभा
छत्तीसगढ़ किसान सभा द्वारा गंगानगर में विस्थापन पीड़ितों की संघर्ष सभा का आयोजन किया गया। इसमें किसान मोर्चा के अध्यक्ष राकेश टिकैत ने केंद्र और राज्य सरकार को जमकर घेरा। उन्होंने कहा कि यदि केंद्र और राज्य की सरकार जनता की आवाज नहीं सुनतीं तो आंदोलनों की धमक से इन बहरी सरकारों को अपनी आवाज सुनाने देश की जनता तैयार है। ये भूमि-विस्थापन के खिलाफ आम जनता के संघर्ष का प्रतीक है और इस लड़ाई में वे कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं। उनके साथ मिलकर लड़ेंगे। हसदेव हो या कोरबा या हो बस्तर, केंद्र और राज्य दोनों सरकार मिलकर उद्योगपतियों को जमीन देना चाहती हैं और इसके लिए गरीबों से जमीन छीनना चाहती हैं।
बातचीत करें सरकार या गुस्से का करें सामना
टिकैत ने आगे कहा कि छत्तीसगढ़ में जमीन बचाने की लड़ाई ही सबसे बड़ी लड़ाई है और पूरे छत्तीसगढ़ में 22 जगहों पर आंदोलन चल रहे हैं। इस संघर्ष को सभी संगठनों की पहल से साझा मोर्चा बनाकर और मजबूत करना होगा। मजदूर-किसानों की एकजुटता का यही संदेश लेकर आज संयुक्त किसान मोर्चा के 40 नेता पूरे देश का दौरा कर रहे हैं। इसी उद्देश्य से वे छत्तीसगढ़ आए हैं। सरकार को चेतावनी देते हुए उन्होंने कहा कि किसासों से सरकार बातचीत करें या फिर उनके गुस्से का सामना करें।
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बादल ने कहा- लड़ाई को अंत तक लड़ेगा मोर्चा
किसान मोर्चा प्रमुख राकेश टिकैत ने एमएसपी को लेकर भी अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के आधार पर सकल लागत का डेढ़ गुना समर्थन मूल्य देने का कानून बनाने के लिए फिर से देशव्यापी संघर्ष छेड़ा गया है। वहीं अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव बादल सरोज ने कहा कि देशव्यापी किसान आंदोलन ने सरकार के बर्बर दमन के बावजूद बिना डरे, बिना झुके संघर्ष की जो मशाल जलाई है, कोरबा के भू-विस्थापित उसे मजबूती से थामे हुए हैं और अपनी आजीविका और पुनर्वास के लिए कुसमुंडा के भू-विस्थापित 470 दिनों से लगातार लड़ाई लड़ रहे हैं। इस लड़ाई को किसान सभा अंत तक लड़ेगी, जब तक अंतिम भू-विस्थापित को न्याय नहीं मिल जाता।