दिवाली के उत्सव से ठीक पहले देश-प्रदेश में गोवंश की दुर्दशा पर मंथन शुरू हो गया है। जंगल, सड़क और खेतों में बेहिसाब लावारिस गौवंश भटक रहे हैं लेकिन गोवर्धन पूजा के लिए जरा सा गोबर मिलना भी मुश्किल हो रहा है। एक दशक पहले तक जहां आंगन-चौबारों में पूजा के लिए आदमकद गोवर्धन विग्रह नजर आते थे। वहां अब इन विग्रहों का आना खिलौने जैसे हो गया है। गोबर भी अब डेरी से खरीदना पड़ रहा है तो कंडे ऑनलाइन मिल रहे हैं। गोवर्धन पूजा की परम्परा और गोवंशपूजक समाज में गोवर्धन विग्रह बनाने के लिए गोबर की कमी संस्कृति की अधोगति की ओर इशारा कर रही है।
देश और प्रदेश में लावारिस गोवंश के कारण हाइवे पर हादसे, खेतों में फसलों की बर्बादी को लेकर खूब चर्चा होती है। गायों को माता का दर्जा और सम्मान के दावों के बावजूद ये अव्यवस्था क्यों हैं। एक ओर गोवंश को ठिकाना नहीं मिल रहा तो दूसरी ओर खास त्योहार पर पूजा-पाठ के लिए गोबर तक उपलब्ध नहीं है। ये अव्यवस्था क्यों हैं, पढ़िए द सूत्र की खास खबर ...
गोवर्धन पूजा की मान्यता?
अवसर दीपोत्सव और गोवर्धन पूजा का है तो पहले इस महापर्व और परम्परा पर बात करते हैं। भारत में आज भी आबादी का बड़ा हिस्सा गांवों में ही रहता है। यानी ग्रामीण परिवार खेती_किसानी पर निर्भर हैं और इसके लिए गोवंश पालते हैं। इसी वजह से गोवंश हमारी संस्कृति और परम्परा का अहम हिस्सा रहे हैं। दिवाली का त्योहार समृद्धि और वैभव का प्रतीक है। किसानों की संपन्नता खेत ओर गोवंश पर आधारित है। इसलिए दीपोत्सव पर गोवंश को भी विशेष रूप से शामिल किया गया है। वहीं इसको लेकर अलग-अलग क्षेत्रों में अपनी-अपनी मान्यताएं और परम्पराएं कहानियां भी हैं।
सबसे पहले कृष्ण ने की थी गोवर्धन पूजा
दिवाली का त्योहार पांच दिवसीय होता है। लक्ष्मी पूजा के अगले दिन गोर्वधन पूजा होती है। गोवर्धन पूजा के प्रसंग को श्रीकृष्ण लीला से जोड़ा जाता है। बताया जाता है इंद्र द्वारा अतिवृष्टि करने से ब्रज के लोग परेशान थे। तब श्रीकृष्ण ने गिरिराज पर्वत को उठा लिया था। इंद्र को भूल समझ आ गई और उसे क्षमा मांगनी पड़ी थी। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने सबसे पहले गोवर्धन गिरि की पूजा की थी। तब से ही दिवाली के अगले दिन गाय के गोबर से गोवर्धन गिरि का विग्रह बनाकर पूजा की जाती है।
गोवंश की रक्षा का संदेश देता है पर्व
गोवर्धन पूजा के पर्व की पारम्परिक मान्यता को लेकर अलग-अलग कहानियां हैं लेकिन उन सभी का संदेश एक ही है। सभी गोवंश और प्रकृति की रक्षा का संदेश देती हैं। भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ने के कारण ये जनश्रुतियां और भी खास हो जाती है लेकिन गोवंश पालक समाज और सनातन संस्कृति में आस्था रखने वाले परिवार ही अब गोवंश की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध नहीं है। यही वजह है कि उपयोगिता खत्म होते ही लोग अपनी गाय और बछड़ों को सड़कों पर छोड़ देते हैं। फिर यही गाय, बैल और बछड़े सड़कों पर समस्या बन जाते हैं।
50 लाख लावारिस गोवंश, एमपी में इनकी संख्या 9 लाख
देश में लावारिस गोवंश चिंता में डालने वाला है। साल 2022 में हुई 20वी पशुधन गणना के अनुसार देश में 50.21 लाख से ज्यादा गाय, बैल और बछड़े सड़कों पर हैं। यानी इतने लावारिस गोवंश की देखरेख करने वाला कोई नहीं है। लावारिस गोवंश के मामले में मध्यप्रदेश देश का तीसरा बड़ा राज्य है। एमपी में 8 लाख 53 हजार से ज्यादा गोवंश सड़कों पर मंडरा रहा है। सबसे ज्यादा 12 लाख 72 हजार लावारिस गोवंश राजस्थान और 11 लाख 84 हजार गाय-बैल और बछड़े उत्तरप्रदेश में लावारिस हैं। गुजरात में भी लावारिस गोवंश की संख्या 3 लाख 44 हजार है। पशुधन गणना के आंकड़े बताते हैं कि राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, उड़ीसा, पंजाब, हरियाणा और पश्चिम बंगाल में लावारिस गोवंश की संख्या 45 लाख से भी ज्यादा है। जबकि देश के बाकी सभी राज्यों में यह आंकड़ा केवल 5 लाख ही है। पशुपालकों के राज्यों में ही गोवंश की हालत ज्यादा खराब है।
मुंह मोड़ा इसलिए दूध-घी, गोबर का संकट
गोवर्धन को भगवान की तरह पूजने की परम्परा निभाने वाले परिवार ही अब गोवंश के पालन से दूर हो चले हैं। गोवंश से मुंह मोड़ने का ही नतीजा है कि अब मिलावटी दूध, घी, मक्खन पर निर्भर हो गए हैं। बार-बार मिलावट के मामले पकड़ में आने के बाद भी उन्हीं उत्पादों का सेवन कर अपनी ही सेहत बिगाड़ रहे हैं। वहीं गोबर भी अब पहुंच से दूर है क्योंकि उसके लिए भी या तो डेरी पर जाना पड़ता है। गोवंश सड़कों पर भले ही सैंकड़ों की संख्या में नजर आते हैं लेकिन उनके गोबर का संकट त्योहार पर जरूर आ जाता है। घरों में गोवंश न होने के कारण अब गोबर से बने गोवर्धन विग्रह का आकार भी सिकुड़ गया है। एक दशक पहले या कुछ साल पहले तक लोग घर के आंगन या दरवाजे पर आदमकद गोवर्धन विग्रह बनाकर पूजते थे । वहां खिलौना के आकार के गोवर्धन बनने लगे हैं।
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लावारिस गोवंश की स्थिति
- राज्य लावारिस गोवंश
- राजस्थान- 12.72 लाख
- उत्तर प्रदेश- 11.84 लाख
- मध्य प्रदेश - 8.53 लाख
- गुजरात - 3.44 लाख
- छत्तीसगढ़- 1.85 लाख
- महाराष्ट्र - 1.52 लाख
- उड़ीसा - 1.51 लाख
- पंजाब - 1.40 लाख
- हरियाणा - 1.28 लाख
- पश्चिम बंगाल- 1 लाख
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