दिल्ली. देश के 5 राज्यों में चुनाव प्रचार जोरों पर है, लेकिन क्या गारंटी है कि आज जिस पार्टी के उम्मीदवार को आप चुन रहे हैं, वो चुनाव जीतने के बाद भी उसी पार्टी में रहेगा। चुनाव के पहले और बाद में नेता तेजी से पार्टी बदलते हैं। आम आदमी पार्टी ( Aam Aadmi Party) ने गोवा (Goa) के चुनाव में इस दल-बदल (defection) को रोकने के लिए एक नया प्रयोग किया है। आम आदमी पार्टी ने गोवा में अपने उम्मीदवारों (candidates) के नामों का ऐलान किया। पार्टी ने अपने सभी उम्मीदवारों से एक शपथ पत्र (Affidavit) भरवाया है। इसमें लिखवाया गया है कि वो चुनाव जीतने के बाद ना तो भ्रष्टाचार करेंगे, ना ही रिश्वत लेंगे और ना ही दलबदल करेंगे। पार्टी प्रदेश की सभी सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
शपथ पत्र पर दस्तखत : आम आदमी पार्टी (AAP) के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने दल-बदलुओं को लेकर बड़ा फैसला किया है। उन्होंने चुनावी राज्य गोवा (Goa) में शपथ पत्र पर दस्तखत करवाए हैं, जिसमें कहा गया है कि चुनाव जीतने के बाद अगर कोई पार्टी बदलता है तो उसके खिलाफ FIR की जा सकती है। गोवा में 14 फरवरी को मतदान होना है। 10 मार्च को नतीजे आएंगे।
पार्टी बदलना है धोखेबाजी : गोवा में केजरीवाल ने चुनाव जीतने के बाद पार्टी बदलने को धोखेबाजी बताया। उन्होंने कहा कि किसी भी पार्टी के टिकट से नेता चुनाव लड़ते है और फिर जीतने के बाद पार्टी बदल लेते हैं। ये मतदाताओं के साथ धोखा है। इसलिए हम आज एक शपथ पत्र साइन कर रहे हैं, जिसमें ये कहा गया है कि उम्मीदवार जीतने के बाद किसी दूसरी पार्टी में नहीं जाएंगे।
जनता FIR कर सकती है : केजरीवाल ने ये भी कहा है कि इस शपथ पत्र की कॉपी जनता को भी मिलेगी। इसमें ये भी लिखा होगा कि अगर जीतने के बाद हम अपनी पार्टी बदलें और काम ना करें तो आप हम पर FIR कर सकते हैं। खास बात है कि 2017 में पंजाब में मजबूत उपस्थिति दर्ज करा चुकी आप तटीय राज्य गोवा में भी सियासी जमीन तलाश रही है।
आप ने ऐसा फैसला क्यों लिया: दरअसल, गोवा दलबदल के लिए कुख्यात है। पिछले चुनाव के बाद कांग्रेस के 10 विधायक पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए थे। इस वजह से कांग्रेस (congress) की बजाय बीजेपी की सरकार बन गई थी। अब आम आदमी पार्टी गोवा में कितनी सीटें जीतेगी, जनता को ये फॉर्मूला कितना पसंद आएगा, ये सब चुनाव के नतीजे तय करेंगे। मगर इस पहल से आम आदमी पार्टी ने एक नई राजनीति की शुरूआत की है।
अन्य राज्यों में नई शुरुआत क्यों नहीं?: अब सवाल ये भी उठता है कि आम आदमी पार्टी ने पंजाब और उत्तराखंड में ये फैसला नहीं लिया। दरअसल आप एक नई तरह की राजनीति कर रही है। पंजाब में सीएम कैंडिडेट आम आदमी पार्टी ने वोटिंग के द्वारा चुना। जनता के बीच मैसेज देने की कोशिश की कि उन्होंने ही इस उम्मीदवार का चुनाव किया है। राजनीति में ऐसे प्रयोग बरसों पुरानी पार्टियां बीजेपी और कांग्रेस नहीं कर रही है।
दल-बदल का इतिहास : देश में 1957 से 1967 तक दस सालों में 542 बार सांसद-विधायकों ने अपने दल बदले। 1967 में चौथे आम चुनाव के पहले साल में भारत में 430 बार सांसद-विधायक ने दल बदलने का रिकॉर्ड बनाया। 1967 के बाद एक और रिकॉर्ड बना, जिसमें दल बदलुओं के कारण 16 महीने के भीतर 16 राज्यों की सरकारें गिर गई। उसी दौर में हरियाणा के विधायक गयालाल ने 15 दिन में ही तीन बार दल-बदल किया था। इसके बाद कहावत बनी आया राम, गया राम। साल 1998-99 में गोवा दल-बदल और बदलती सरकारों के कारण सुर्खियों में रहा था। जब 17 महीने में गोवा में पांच मुख्यमंत्री बदल गए थे। मौजूदा पांच राज्यों में हो रहे चुनावों को देखें तो यूपी में 16 दिन में 36 विधायक पार्टियां बदल चुके हैं लेकिन क्या दल बदलने वाले चुनाव जीतने में भी कामयाब हो जाते हैं। ये बड़ा सवाल है।
एक रिसर्च के मुताबिक यूपी में 2017 में 14.6 प्रतिशत दल बदलने वाले ही चुनाव जीत पाए। 2012 में 8.4 फीसदी दल बदलू चुनाव जीत पाए थे। 2007 में 14.4 प्रतिशत दल बदलने वालों ने विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की थी। 2002 में भी इतने ही नेता दल बदलने के बावजूद जीत हासिल करने में कामयाब रहे थे। इसी आधार पर दावा है कि 100 दल बदलने वाले नेताओं में करीब 15 ही इलेक्शन जीत पाते हैं।
एडीआर की रिसर्च : चुनावी राजनीति पर नजर रखने वाली संस्था ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ यानि एडीआर ने 2014 से 2021 तक चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के चुनावी हलफनामें से रिसर्च की कि 7 साल में कुल 1133 उम्मीदवारों और 500 सांसदों-विधायकों ने पार्टियां बदलीं। इसमें 222 उम्मीदवार कांग्रेस छोड़कर दूसरी पार्टियों में शामिल हुए। 117 सांसद और विधायकों ने कांग्रेस को छोड़ा, तो दूसरे दलों के 115 उम्मीदवार हैं। 61 सांसद-विधायक कांग्रेस में शामिल भी हुए। इन सात सालों में बीजेपी छोड़ने वाले 111 उम्मीदवार और 33 विधायक-सांसद थे। लेकिन बीजेपी में शामिल हुए 253 उम्मीदवार और 173 सांसद-विधायक हैं। इससे साफ है कि कानून कुछ भी हो दल बदलना ट्रैंड हो चुका है।
मध्यप्रदेश का दल-बदल : मप्र में इसी दल-बदलने के कारण 2018 में बनी कांग्रेस की सरकार गिर गई। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने 21 समर्थकों के साथ कांग्रेस छोड़ी। सभी बीजेपी में शामिल हो गए और अब सरकार में मंत्री है। हाल ही में इनमें से कई लोगों को निगम मंडल में शामिल कर लिया गया है। लेकिन इस दलबदल को एमपी की जनता ने सहमति दी, क्योंकि ज्यादातर दल बदलने वाले चुनाव जीत गए।
अब गोवा में आम आदमी पार्टी ने जो प्रयोग किया है। यदि गोवा की जनता इस प्रयोग पर मुहर लगा देती है, तो संभव है कि आने वाले दिनों में राजनीति में दल बदल का ट्रेंड बदले।