NEW DELHI. 18 से 22 सितंबर तक बुलाए गए संसद के विशेष सत्र का जो एजेंडा लोकसभा सचिवालय की तरफ से बताया गया है, उसके मुताबिक इस विशेष सत्र में देश की संसद के 75 साल के सफर, उपलब्धियों, अनुभवों, स्मृतियों और सीख पर चर्चा की जाएगी। हालांकि, विपक्षी दलों का कहना है कि इस एजेंडे पर कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन विशेष सत्र बुलाया जाना पर्दे के पीछे सरकार का कुछ और खेल लगता है। कुल मिलाकर विपक्ष को सरकार पर भरोसा नहीं है। इस विशेष सत्र की शुरुआत से एक दिन पहले 17 सितंबर को सरकार ने सर्वदलीय बैठक भी बुलाई है।
विशेष सत्र की खास बात
संसद के इस विशेष सत्र की विशेषता यह है कि यह सत्र पहले दिन यानी 18 सितंबर को पुराने संसद भवन में शुरू होगा और दूसरे दिन 19 सितंबर से नई संसद में आयोजित किया जाएगा। यानी गणेश चतुर्थी से देश की नई संसद में आधिकारिक रूप से कामकाज शुरू हो जाएगा।
ये बिल पेश होंगे
- विशेष सत्र में एडवोकेट संशोधन विधेयक 2023
- प्रेस और पत्रिका पंजीकरण विधेयक 2023
- डाकघर विधेयक 2023
- मुख्य निर्वाचन आयुक्त,अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति,सेवा शर्त विधेयक 2023
यह है कांग्रेस का तर्क
कांग्रेस नेता जयराम रमेश का कहना है कि केंद्र सरकार की ओर से विशेष सत्र के एजेंडे में जो विषय शामिल किए गए हैं उनके लिए शीतकालीन सत्र का भी इंतजार किया जा सकता था। जयराम रमेश ने दावा किया कि विधायी हथगोले हमेशा की तरह आखिरी समय में फूटने के लिए तैयार हैं। यानी परदे के पीछे कुछ और है।
ये चर्चाएं जोरों पर
संसद के विशेष सत्र को लेकर जो चर्चाएं जोरों पर हैं, उनमें महिला आरक्षण संबंधी कानून पर विचार किया जाना, पिछड़ी जाति कोटा पर रोहिणी आयोग की रिपोर्ट को लेकर भी अहम निर्णय, जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करना शामिल हैं। ज्यादा चर्चा इस बात की है कि देश का नाम आधिकारिक तौर पर इंडिया से बदलकर भारत करने पर विचार किया जा सकता है।
संसद का विशेष सत्र बुलाने की प्रक्रिया
देश में आमतौर पर संसद के तीन सत्र- बजट सत्र, मानसून सत्र और शीतकालीन सत्र बुलाने की परंपरा रही है। हमारे यहां संसद का सत्र बुलाए जाने को लेकर कोई संसदीय कैलेंडर मौजूद नहीं है, यह सिर्फ परंपरा का मामला है। वैसे ही हमारे संविधान में कहीं भी संसद के विशेष सत्र शब्द का उल्लेख नहीं है, लेकिन संसद का विशेष सत्र बुलाने का अधिकार संविधान का अनुच्छेद 85 (1) देता है। संसदीय मामलों की कैबिनेट समिति की सलाह और औपचारिक निवेदन के बाद राष्ट्रपति इसकी मंजूरी देते हैं। देश में अभी तक संसद के सात विशेष सत्र बुलाए जा चुके हैं।
अभी तक ये 7 विशेष सत्र बुलाए जा चुके हैं
- 1977 में पहला विशेष सत्र: तमिलनाडु और नगालैंड में राष्ट्रपति शासन को बढ़ाने के लिए फरवरी 1977 में दो दिन के लिए राज्यसभा का विशेष सत्र हुआ था।
- 1991 में दूसरा विशेष सत्र: हरियाणा में राष्ट्रपति शासन की मंजूरी के लिए जून 1991 में दो दिवसीय विशेष सत्र हुआ था।
- 1992 में तीसरा विशेष सत्र: भारत छोड़ो आंदोलन की 50वीं वर्षगांठ मनाने के लिए यह विशेष सत्र हुआ था।
- 1997 में चौथा विशेष सत्र: देश की आजादी की स्वर्ण जयंती का उत्सव मनाने के लिए 26 सितंबर 1997 को विशेष सत्र हुआ था।
- 2008 में पांचवा विशेष सत्र: 2008 में लेफ्ट ने मनमोहन सिंह नीत सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। इस वजह से जुलाई में बहुमत साबित करने के लिए लोकसभा का विशेष सत्र हुआ था।
- 2015 में छठा विशेष सत्र: 26 नवंबर 2015 में डॉ. बीआर अंबेडकर की 125वीं जयंती मनाने के लिए केंद्र की मोदी सरकार ने विशेष सत्र आयोजित किया था।
- 2017 में सातवां विशेष सत्र: अप्रत्यक्ष कर (जीएसटी) में सुधार के लिए मोदी सरकार ने 30 जून 2017 को मध्यरात्रि में संसद का विशेष सत्र आयोजित किया था।