आपने हिंदी फिल्म का एक गाना सुना होगा, 'यह बता दे मुझे जिंदगी, प्यार की राह के हमसफर किसलिए बन गए अजनबी।' यानी प्रेम के घनिष्ठ संबंधों में दरार पैदा होने लगी है और अगर आप अलग न हुए तो इनके बिगड़ने की और गंभीर संभावना है। संबंध पति-पत्नी या प्रेमी-प्रेमिका तक ही सीमित नहीं है। यह भाई-बहन, पिता-बेटी या बेटा, माता-बेटी या बेटा के साथ ही हो सकता है। मित्रों के बीच में भी संबंध बेहद प्रगाढ़ होते हैं और सवाल यह है कि इन सभी संबंधों में टूटन या बिखराव शुरू हो जाए तो अलगाव ही एकमात्र रास्ता है? हम कह सकते हैं कि नहीं। अब इसका इलाज भी संभव है और वह है फैमिली थेरेपी या जॉइंट फैमिली। आप हैरान होंगे कि फिल्म अभिनेता आमिर खान ( aamir khan ) ने खुद माना है कि वह और उनकी बेटी इरा ( IRA ) यह थेरेपी ले रहे हैं।
आखिर क्या है यह फैमिली थेरेपी ( Family Therapy ) या जॉइंट फैमिली, जिसे अब विशेषज्ञ भी जरूरी मानने लगे हैं ताकि छितराते संबंधों को जोड़ा जा सके। इस मसले को लेकर बीबीसी ने एक रिपोर्ट जारी की है। उस रिपोर्ट को लेकर द सूत्र ने एक विशेष स्टोरी तैयार की है, जिसमें बताया जा रहा है कि भारत जैसे देश में यह थेरेपी क्यों जरूरी है। उसका कारण यह है कि भारत में संयुक्त परिवारों की अवधारणा अभी भी चल रही है लेकिन आपसी बातचीत का दायरा सिमटने लगा है, दूसरे एकल परिवारों का चलन बढ़ने लगा है, जहां अगर बातचीत में तनाव शुरू हो जाए तो उन्हें सुलझाने वाला कोई नहीं है और ये लगातार खटास बढ़ाते रहते हैं।
क्या है फैमिली थेरेपी या जॉइंट थेरेपी?
फैमिली थेरेपी, टॉक थेरेपी का एक हिस्सा है। इसमें विशेषज्ञ एक परिवार या परिवार के कुछ व्यक्तियों को एक-दूसरे को समझने और उनकी समस्याओं को हल करने में मदद करते हैं। इस थेरेपी का उद्देश्य दो या दो से अधिक परिवार के सदस्यों के बीच संवाद में सुधार करना, उनके रिश्ते में सुधार करना और एक-दूसरे के प्रति उनके गुस्से या नफरत को कम करना है। अक्सर इस थेरेपी का उपयोग तब किया जाता है, जब या तो कोई व्यक्ति अपने जीवन में होने वाली हर चीज के लिए परिवार या परिवार की कुछ चीजों को जिम्मेदार ठहराता है। या फिर परिवार के कुछ सदस्यों का व्यवहार उस व्यक्ति को परेशान कर रहा होता है, या पूरा परिवार उस व्यक्ति के व्यवहार से परेशान होता है। ऐसे में सभी को मिल-बैठकर समस्याओं का समाधान निकालना जरूरी है, लेकिन रिश्ते इतने तनावपूर्ण हो जाते हैं कि बात भी करें तो सार्थक संवाद कम और आरोप-प्रत्यारोप ज्यादा होते हैं। इसलिए इस तरह की थेरेपी की आवश्यकता होने लगी है।
क्या भारत जैसे देश में जरूरी है यह थेरेपी
याद कीजिए आज से कुछ साल पहले भारतीय परिवारों का माहौल। अगर फैमिली में भाई-बहन में किसी बात पर बोलचाल बंद हो गई है या भाई-भाई के संबंधों में कड़वाहट घुलने लगी है और तो और अगर परिवार के बेटे-बहू एक दूसरे से नाराज हो गए हैं, तो परिवार का मुखिया खुद में एक थेरेपी बन जाता है। ऐसे परिवारों में आप चुप नहीं रह सकते। मुखिया की बातों का जवाब देना होगा। दोस्तों से बातचीत करनी होगी, दूर-पास के रिश्तदारों से बातचीत करना होगा। सब यही बतकही संबंधों को दरकने से बचाती है और कड़वाहट खुद-ब-खुद पिघलने लगती है। संयुक्त परिवार अब भी कायम है, साथ ही न्यूक्लियर फैमिली भी बढ़ने लगी है। लेकिन संबंधों को जोड़ने वाली कड़ी गायब होने लगी है। टीवी, मोबाइल फोन, सोशल मीडिया ने इसे और बढ़ाया है इसलिए फैमिली थेरेपी या जॉइंट थेरेपी का चलन बढ़ने लगा है।
ऑस्कर 2025 की रेस में किरण राव की फिल्म लापता लेडीज, क्या आमिर खान का सपना होगा साकार?
विशेषज्ञों की इस थेरेपी पर क्या राय है?
मुंबई में क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट के रूप में काम कर रहीं निकिता मुले कहती हैं कि भारतीय परिवारों में भावनात्मक, वित्तीय और बहुत ही करीबी रिश्ता होता है। आजकल हमारे पास भावनाओं को जाहिर करने और उन भावनाओं की कश्मकश की अभिव्यक्ति का कोई खास तरीका नहीं होता है। हम घर में आमतौर पर खाना क्या बनेगा, टीवी पर क्या चल रहा है, रोजमर्रा की चीजों के बारे में बात करते हैं। लेकिन अक्सर वो बातें पारिवारिक बातचीत का हिस्सा नहीं होती हैं, जिसे कोई दिल ही दिल में कोई महसूस कर रहा होता है, परेशान हो रहा होता है, वो इसे साझा नहीं कर पाते हैं। चीजें बातचीत से सुलझ सकती हैं, लेकिन लोग इस तरह की बातचीत करने से अक्सर बचते हैं। वैसे इस थेरेपी को लेकर समाज में जागरूकता उतनी नहीं है, जितनी होनी चाहिए। निकिता के अनुसार हमें यह सोच किनारे रखनी होगी कि हम घरेलू मामलों के बारे में बाहरी दुनिया से क्यों बात करें। जिन लोगों के पास आप थेरेपी के लिए जाते हैं, वे विशेषज्ञ होते हैं। वे आपकी बातें सुनने के बाद, आपको लेकर कोई धारणा नहीं बनाते हैं, बल्कि वे आपको रास्ता ढूंढने में मदद करते हैं। लेकिन आप बिना किसी सहायता के अपने मन में घुसपैठ करते रहेंगे, तो बहस और झगड़े बढ़ जाते हैं।
पीड़ितों को इस थेरेपी के लिए कैसे तैयार करें?
इस मसले पर शिरडी में मनोचिकित्सक के रूप में कार्यरत डॉ. ओंकार जोशी कहते हैं कि मान लीजिए कि घर में कोई अवसादग्रस्त सदस्य है या सिजफ्रेनिया से पीड़ित कोई सदस्य है, तो ऐसे समय में वह अक्सर काउंसलिंग के लिए तैयार नहीं होता। ऐसी स्थिति में हम यह काम परिवार के साथ मिलकर करते हैं कि पीड़ित व्यक्ति को कैसे संभालना है। दरअसल, परिवार को अपनी बीमारी के बारे में बताना भी फैमिली थेरेपी का एक हिस्सा है। विशेषज्ञ उसी से शुरुआत करते हैं, जो पहले थेरेपी के लिए आता है। सबसे पहले कुछ क्लिनिकल परीक्षण होते हैं, जिन्हें साइकोमेट्रिक परीक्षण भी कहा जाता है, जिसके बाद व्यक्ति की मानसिक स्थिति की पूरी तस्वीर प्राप्त की जाती है। यानी मरीज का इलाज कैसे करना है। इस परीक्षण के बाद उस व्यक्ति के गुण-दोष सामने आ जाते हैं। फिर इस तरह की थेरेपी में हम मरीज से पहले उसके आसपास रहने वालों को बताते-सिखाते हैं कि आपके क्या करने से, पीड़ित व्यक्ति को मदद मिल सकती है।
आमिर खान की बेटी इरा के प्री वेडिंग फंक्शन शुरू, महाराष्ट्रीयन रीति-रिवाज से होगी शादी....
वंशानुगत आदतों को तोड़ना जरूरी
पुणे की साइकोलॉजिस्ट श्रुतकीर्ति फडणवीस कहती हैं कि वंशानुगत आदतों (पीढ़ीगत आघात) की अवधारणा को भी तोड़ना जरूरी है। उदाहरण के तौर पर सास अपनी बहू के साथ जैसा व्यवहार करती थी, वैसा ही व्यवहार वह सास बनने के बाद अपनी बहू के साथ करेगी या फिर अगर पिता छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करते थे और मारते थे तो बेटा भी पिता बनने पर ऐसा ही करेगा। मतलब यह कि एक पीढ़ी को यदि आघात पहुंचाया जाता है, तो उसके जवाब खोजने के बजाए वही आघात दूसरी पीढ़ी तक पहुंच जाता है। इस आघात का एकमात्र जवाब फैमिली थेरेपी है। इसे एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचने से रोकने के लिए फैमिली थेरेपी अहम है, क्योंकि व्यवहार करने का तरीका, उसके पीछे के विचार हमारे पिछले अनुभवों से बनते हैं। किसी को हमें यह बताने की जरूरत है कि हमारे सोचने का तरीका गलत है और सही प्रक्रिया क्या है। इस थेरेपी के माध्यम से हम सीखते हैं कि हम पीढ़ीगत आघात को कैसे ठीक करें और अगली पीढ़ी से कैसे जुड़ें।
FAQ
thesootr links
- मध्य प्रदेश की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- छत्तीसगढ़ की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- रोचक वेब स्टोरीज देखने के लिए करें क्लिक