मोदी की आयुष्मान योजना: खुद ही बीमार है, लोगों का इलाज कैसे हो पाएगा?

सरकारी जानकारी के अनुसार देश के 14 राज्यों में एक लाख लोगों पर 10 या उससे भी कम अस्पताल हैं। मध्य प्रदेश में एक लाख लोगों पर केवल दो ही आयुष्मान के अस्पताल हैं। राजस्थान का हाल और बुरा है। वहां 1,935 अस्पतालों में से 1,934 अस्पताल कोई लाभ नहीं दे रहे हैं।

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Dr Rameshwar Dayal
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NEW DELHI: देश के गरीब परिवारों ( poor families ) का सरकारी व प्राइवेट अस्पतालों ( hospitals ) में मुफ्त इलाज करने की आयुष्मान भारत- प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (AB- PMJAY) लागू है। लेकिन ‘जांच’ में तो यह योजना खुद ही बीमार नजर आ रही है। इस योजना के लिए देशभर में जितने अस्पतालों को चिन्हित किया गया है, आबादी के हिसाब से उनकी संख्या बहुत कम है। हैरानी की बात यह है कि चिन्हित अस्पतालों में से 38 प्रतिशत अस्पताल इलाज ही नहीं दे रहे हैं। उदाहरण से समझा जा सकता है कि मध्य प्रदेश में एक लाख लोगों पर दो ही इस इस योजना के अस्पताल हैं। इस योजना के तहत अनेकों फर्जीवाड़े की रिपोर्ट भी पता चली हैं, तो अनेकों अस्पताल ने इस योजना के तहत इलाज से इनकार कर रहे हैं। 

पहले AB- PMJAY को समझ लें

इस योजना को मोदी सरकार ने सितंबर 2018 में शुरू किया था। सरकार का कहना है कि इस योजना के तहत इस साल मार्च तक 34 करोड़ से ज्यादा लोगों को कार्ड जारी किए जा चुके हैं। इस योजना का लाभ उसी परिवार को मिलेगा जो गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) श्रेणी के हैं या उनकी आय निम्न स्तर की है। उम्मीदवारों की वार्षिक आय 2.4 लाख रुपए से कम होनी चाहिए। पात्रता मुख्य रूप से सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (SECC) डेटाबेस पर आधारित है। इस योजना के तहत देश में कुल 55 करोड़ लोगों को इस योजना का लाभ दिया जाना है। इनकी पहचान 2011 की जनसंख्या के आधार पर की गई है। 

WHO ने भी भारत की इस योजना को सराहा है

भारत में स्वास्थ्य से जुड़ा इन्फ्रास्ट्रक्चर आज भी बेहद लचर है। ऐसी कई बीमारियां हैं, जिसके कारण देश के बहुत से लोग बिना इलाज के मर रहे हैं। उसका एक कारण यह है कि स्वास्थ्य बीमा सिस्टम मध्य या अमीर वर्ग तक ही सीमित है, जबकि धनाभाव के चलते गरीब लोग इस बीमे को ले नहीं पाते हैं। इसीलिए जब यह योजना शुरू की गई तो विश्व स्वास्थ्य संगठन ( WHO ) ने भी इसकी सराहना की थी। इस योजना का 60 प्रतिशत खर्च केंद्र सरकार और 40 प्रतिशत खर्च राज्य सरकार वहन करती हैं। वैसे हिमाचल, उत्तराखंड, जम्मू कश्मीर और भारत के सात उत्तर पूर्वी राज्यों में केंद्र सरकार इस योजना के लिए 90 राशि देती है। एक सरकारी जानकारी के अनुसार इस योजना के तहत वर्ष 2018 से अब तक कुल 72,817 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं।

चिन्हित अस्पतालों की यह है असलियत

यह योजना बीमार क्यों है, इसकी जानकारी आपको विस्तार से बताते हैं। इस योजना के तहत सरकार ने देशभर में 29,220 हजार अस्पतालों को इलाज के लिए चिन्हित किया है। इनमें से 17,242 सरकारी और 12,765 अस्पताल प्राइवेट हैं। इन अस्पतालों के खुद ही ‘बीमार’ होने की पोल आयुष्मान भारत की वेबसाइट खोल रही है। उसके अनुसार इन सभी अस्पतालों में से 6,703 अस्पताल आयुष्मान योजना के लागू होने से ही इनएक्टिव हैं, यानी इन अस्पतालों में शुरू से ही इलाज नहीं किया जा रहा है। वेबसाइट का यह भी कहना है कि पिछले छह माह से 4,487 अस्पताल भी इनएक्टिव हो गए हैं। यानी वर्तमान में 29,220 अस्पतालों में से 11,190 अस्पताल (करीब 38 प्रतिशत) तो आयुष्मान योजना के तहत कोई लाभ नहीं दे रहे हैं। 

MP में एक लाख लोगों पर केवल दो अस्पताल

हेल्थ से जुड़े एक्सपर्ट मानते हैं कि देश की बढ़ती आबादी को देखते हुए इन अस्पतालों की संख्या बेहद कम है। अस्पतालों की संख्या लाखों में होगी तभी सभी गरीबों को इस योजना का इलाज मिल सकेगा। अब आपको कुछ राज्यवार अस्पतालों की संख्या बताते हैं। सरकारी जानकारी के अनुसार देश के 14 राज्यों में एक लाख लोगों पर 10 या उससे भी कम अस्पताल हैं। मध्य प्रदेश में एक लाख लोगों पर केवल दो ही आयुष्मान के अस्पताल काम कर रहे हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार राजस्थान का हाल और बुरा है। वहां इस योजना से जुड़े 1,935 अस्पतालों में से 1,934 अस्पताल कोई लाभ नहीं दे रहे हैं। उत्तर प्रदेश में चिन्हित 5,506 अस्पतालों में 2,500 निष्क्रिय हैं। बिहार में 956 अस्पतालों में 234 इस योजना के तहत इलाज नहीं कर रहे हैं।  

प्राइवेट अस्पताल दुखी हैं इस योजना से 

इस योजना को लेकर प्राइवेट अस्पताल सरकार पर खर्च की गई राशि न देने का आरोप लगा रहे हैं। उनका कहना है कि सरकार की इस योजना को गरीब हितैषी मानकर वे गरीबों का पांच लाख रुपए तक मुफ्त इलाज कर रहे हैं, लेकिन सरकार बकाया राशि अदा नहीं कर रही है। हालात इतने गंभीर हो गए हैं कि गुजरात व हरियाणा के प्राइवेट अस्पतालों ने इस योजना के तहत विरोध-स्वरूप 26-29 फरवरी के बीच आयुष्मान कार्ड को स्वीकार ही नहीं किया। गुजरात के प्राइवेट अस्पतालों के संचालकों का कहना है कि सरकार पर उनका करोड़ों रुपए बकाया है, लेकिन सरकार न यह राशि दे रही है और न ही कोई जवाब देती है। सूत्र बताते हैं कि अधिकतर राज्यों के कई अस्पताल सरकार पर लगातार इसी तरह का आरोप लगा रहे हैं। 

सरकारी संस्थान CAG ने ही गंभीर सवाल खड़े किए

विशेष बात यह है कि इस योजना की कार्यप्रणाली और भ्रष्टाचार पर सरकारी संस्थान ही सवाल खड़े कर रहे हैं। सरकारी योजनाओं पर होने वाले खर्च की जांच करने वाले संस्थान नियंत्रक-महालेखापरीक्षक ( CAG  ) ने ही इस योजना की खाट खड़ी कर दी है। उसके अनुसार इस योजना के तहत सरकार जितने कार्ड जारी करने का दावा करती है, उनकी संख्या 20 प्रतिशत कम है। करीब 7,50 लाख लाभार्थियों को एक ही मोबाइल नंबर 9999999999 पर रजिस्टर किया गया। 4,761 लाभार्थी केवल 7 आधार कार्ड पर रजिस्टर पाए गए। संस्थान के अनुसार फर्जीवाड़े का हाल यह है कि मध्यप्रदेश में कुछ अस्पतालों को एक करोड़ रुपए ऐसे 403 मरीजों के नाम पर दिए गए, जो जीवित नहीं है। इतना ही नहीं हजारों मृतकों के नाम पर करीब सात करोड़ रुपए दे दिए गए। संस्थान को डुप्लीकेट आयुष्मान कार्ड की भी जानकारी मिली। अमीर लोगों को इस योजना का लाभ दिया गया और उन पर 22 कराड़ रुपए अदा कर दिए गए। इस योजना के तहत 37,903 शिकायतें दर्ज हुईं हैं, जिनमें केवल 3,718 शिकायतों का ही निपटारा किया गया।  

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