जैन मुनि आचार्य विद्यासागर: 22 वर्ष की आयु में दीक्षा, संयम और तपस्या की अद्भुत कहानी

आचार्य विद्यासागर जी महाराज का जीवन सत्य, अहिंसा और धर्म का प्रतीक था, जिनकी शिक्षाएं आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करती हैं। उनकी समाधि जैन समाज के लिए एक गहरी क्षति है, लेकिन उनका योगदान अनमोल रहेगा।

author-image
Kaushiki
एडिट
New Update
SAMADHI DIVAS.
Listen to this article
0.75x 1x 1.5x
00:00 / 00:00

आचार्य विद्यासागर महाराज के जीवन के बारे में कई और पहलुएं हैं, जो उनके महान कार्यों और योगदान को और भी विस्तार से दर्शाती हैं। वे न केवल एक महान धार्मिक गुरु थे, बल्कि समाज के लिए एक प्रेरणा स्रोत भी थे। यहां उनके कुछ महत्वपूर्ण बातें हैं, जो आचार्य विद्यासागर के जीवन से जुड़ी हुई हैं...

आचार्य विद्यासागर का जीवन परिचय

जैन मुनि आचार्य विद्यासागर महाराज का जन्म 10 अक्टूबर 1946 को कर्नाटक राज्य के बेलगांव जिले के चिक्कोड़ी गांव में हुआ था। उनका जन्म शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था, जिसे जैन समाज के लिए विशेष महत्व है। उनकी उम्र जब केवल 26 साल थी, तब उन्होंने आचार्य की दीक्षा ली और जैन धर्म के श्रेष्ठ संत के रूप में अपनी पहचान बनाई। 22 नवंबर 1972 को उन्होंने आचार्य की पदवी प्राप्त की, जो उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ था।

खबर ये भी- आचार्य विद्यासागर महाराज की प्रथम समाधि स्मृति दिवस के कार्यक्रम शामिल हुए CM मोहन यादव

धर्म के प्रति गहरी श्रद्धा और प्रेरणा

आचार्य विद्यासागर का धर्म की ओर झुकाव तब हुआ जब वे केवल 9 साल के थे। उस समय उन्होंने धर्म और अहिंसा के प्रति अपने आकर्षण को महसूस किया और इसके बाद पूरी तरह से इस मार्ग को अपनाया। उनकी शिक्षा की शुरुआत 9वीं कक्षा तक हुई थी, और उन्होंने अपनी जीवन यात्रा के दौरान जैन धर्म के सिद्धांतों को न केवल खुद अपनाया, बल्कि दूसरों को भी प्रेरित किया।

खबर ये भी-विद्यासागर महाराज की पहली समाधि स्म‍ृति दिवस, अमित शाह आएंगे छत्तीसगढ़

Acharya Vidyasagar, who left for Dongargaon for Vihar, returned to  Dongargarh. | विहार के लिए डोंगरगांव निकले आचार्य विद्यासागर डोंगरगढ़ लौटे  - Rajnandgaon News | Dainik Bhaskar

आचार्य की दीक्षा यात्रा

आचार्य विद्यासागर ने 1968 में केवल 22 साल की उम्र में आचार्य ज्ञानसागर से दीक्षा प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने ‘दिगंबर साधु’ के रूप में अपनी साधना शुरू की और चार साल बाद उन्हें ‘आचार्य’ का पद प्राप्त हुआ। इस दौरान उन्होंने जैन धर्म के सिद्धांतों को और भी गहराई से समझा और उसे फैलाया। वे जीवनभर जैन धर्म के अनुशासन, तपस्या और अहिंसा के प्रबल समर्थक रहे।

खबर ये भी- आचार्य विद्यासागर महाराज चंद्रगिरि पर्वत पर पंचतत्व में विलीन

गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड और कई भाषाओं का ज्ञान

आचार्य विद्यासागर को 11 फरवरी को गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में ‘ब्रह्मांड के देवता’ के रूप में सम्मानित किया गया। उनका यह सम्मान उनकी महान कार्यशैली और धर्म के प्रति योगदान का प्रतीक था। इसके अलावा, आचार्य विद्यासागर कई भाषाओं के ज्ञाता थे। उन्हें अंग्रेजी, हिंदी, संस्कृत, बांग्ला और कन्नड़ भाषाओं का गहन ज्ञान था और उन्होंने कन्नड़ में ही अपनी शिक्षा प्राप्त की थी।

VIJAY UPADHYAY - Jain Seer Acharya Vidyasagar Maharaj Dies, PM Modi Says  "Irreparable Loss"

समाज में उनके योगदान और जीवनशैली

आचार्य विद्यासागर ने मांस निर्यात के विरोध में एक जन जागरण अभियान भी चलाया, जो आज भी जारी है। उन्होंने जीवन के आखिरी क्षण तक शक्कर, नमक, मिर्च, मसाले और अंग्रेजी दवाइयों का त्याग किया और साधारण जीवन जीने का संदेश दिया। उनका जीवन सादगी और तपस्या का प्रतीक था और वे जीवन के अंधेरे को दूर करके मोक्ष की दिशा में प्रेरित करते थे।

8 अगस्त 2018 खजुराहो (5).jpeg - आचार्य विद्यासागर जी फ़ोटो एल्बम - मेरे  गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

वैज्ञानिक दृष्टिकोण और तर्कसंगत सोच

आचार्य विद्यासागर को धर्म के साथ-साथ वैज्ञानिक दृष्टिकोण और तर्कसंगत सोच में भी गहरी रुचि थी। उन्होंने जैन धर्म के सिद्धांतों को न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से, बल्कि तार्किक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी प्रस्तुत किया। उन्होंने यह सिद्ध किया कि धर्म और विज्ञान एक-दूसरे के पूरक हैं और दोनों का उद्देश्य मानवता की भलाई है।

Photos: ब्रह्मलीन हुए आयार्य विद्यासागर महाराज, सिखा गए जीवन जीने की कला,  लोगों ने नम आंखों से दी विदाई - see photos how acharaya vidyasagar maharaj  brahmaleen people people ...

विद्यासागर महाराज की समाधि

श्री विद्यासागर जी ने 17 फरवरी 2024 की रात 2:35 बजे छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ स्थित चंद्रगिरि तीर्थ में अपनी समाधि ली। इससे पहले आचार्य श्री ने आचार्य पद का त्याग करते हुए तीन दिन का उपवास और मौन व्रत अपनाया था। यह उनकी जीवनभर की तपस्या और आंतरिक शांति का परिणाम था।

तीन दिन के कठोर उपवास और मौन के बाद आचार्य श्री ने शरीर का त्याग किया, जो उनके त्याग, तपस्या और आत्मिक शांति की ओर एक अंतिम कदम था। उनके निधन से जैन समाज और समस्त मानवता ने एक महान संत को खो दिया है, जिनका जीवन सत्य, अहिंसा और करुणा का प्रतीक था। उनका योगदान जैन धर्म और समग्र मानवता के लिए अमूल्य रहेगा।

thesootr links

द सूत्र की खबरें आपको कैसी लगती हैं? Google my Business पर हमें कमेंट के साथ रिव्यू दें। कमेंट करने के लिए इसी लिंक पर क्लिक करें

देश दुनिया न्यूज छत्तीसगढ़ जैन आचार्य विद्यासागर Acharya Vidyasagar Ji Maharaj जैन आचार्य विद्यासागर निधन आचार्य विद्यासागर महाराज Acharya Vidyasagar Maharaj Life