बोधगया में बौद्ध भिक्षु क्यों कर रहे विरोध प्रदर्शन, किस कानून को खत्म करने की हो रही है मांग?

बोधगया मंदिर अधिनियम, 1949 के तहत महाबोधि मंदिर का प्रबंधन हिंदू और बौद्ध समुदाय के संयुक्त नियंत्रण में है। इससे बौद्धों का विरोध जारी है। आइए जानें क्या है ये विवाद...

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Kaushiki
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बिहार स्थित महाबोधि मंदिर जो बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यधिक पवित्र स्थल है, उसके नियंत्रण को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा है। इस विवाद की जड़ें 1949 में बने बोधगया मंदिर अधिनियम (BGTA-  Bodh Gaya Temple Act, 1949) में हैं, जो इस मंदिर का संचालन हिंदू और बौद्ध समुदायों के संयुक्त नियंत्रण में करता है।

बौद्धों का कहना है कि इस कानून ने उन्हें केवल आधिकारिक रूप से हिस्सेदारी दी है, जबकि प्रभावी नियंत्रण हिंदू समुदाय के पास ही बना हुआ है।

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महाबोधि मंदिर के नियंत्रण पर बौद्धों का विरोध

महाबोधि मंदिर, जहां भगवान गौतम बुद्ध ने बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति की थी उसका प्रबंधन पहले बौद्धों के हाथ में था, लेकिन तुर्क आक्रमण और अन्य ऐतिहासिक घटनाओं के बाद इसका नियंत्रण हिंदू समुदाय के हाथ में चला गया।

1949 में बिहार विधानसभा द्वारा बोधगया मंदिर कानून पारित किया गया, जिसमें बौद्धों और हिंदुओं दोनों को मंदिर संचालन समिति में शामिल किया गया। हालांकि, समिति में बौद्धों का प्रतिनिधित्व तो है, लेकिन उन्हें मंदिर के संचालन में सीमित भूमिका दी गई है, जिससे वे असंतुष्ट हैं।

बौद्धों का मुख्य मुद्दा

बौद्धों का यह मानना है कि, मंदिर के संचालन में हिंदू अनुष्ठानों का आयोजन बौद्ध धर्म के सिद्धांतों के खिलाफ है। उनका कहना है कि, यदि मंदिर का प्रबंधन पूरी तरह से बौद्धों को सौंपा जाता, तो वे अपने धार्मिक अनुष्ठान पूरी तरह से बौद्ध परंपराओं के मुताबिक करते। इस कारण बौद्धों ने इस कानून को रद्द करने की मांग की है, जिससे वे अपनी धार्मिक स्वतंत्रता का पालन कर सकें।

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सुप्रीम कोर्ट में चल रहा मामला

बता दें कि, इस विवाद को लेकर दो बौद्ध भिक्षुओं ने बोधगया मंदिर कानून, 1949 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। हालांकि, अभी तक इस याचिका पर सुनवाई नहीं हो पाई है।

बौद्धों की इस मांग को कानूनी रूप से जटिल माना जा रहा है। क्योंकि यह मामला उपासना स्थल कानून, 1991 के तहत आता है, जो किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र को 15 अगस्त 1947 के मुताबिक बनाए रखने का प्रावधान करता है।

इस कानून के तहत कोई भी पूजा स्थल अपने धार्मिक स्वरूप में बदलाव नहीं कर सकता, जिससे बौद्धों की याचिका को चुनौती मिल रही है।

कानूनी जटिलता और बौद्धों की चुनौती

बौद्ध धर्म के अनुयायी इस कानून को खत्म करने के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं। यह मुद्दा न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक और कानूनी दृष्टिकोण से भी जटिल हो गया है।

सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई अभी बाकी है और यह तय होना बाकी है कि क्या बौद्धों को पूरी तरह से मंदिर के संचालन का अधिकार मिलेगा या नहीं।

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बोधगया मंदिर कहां है

बोधगया मंदिर भारत के बिहार राज्य में स्थित एक महत्वपूर्ण बौद्ध स्थल है, जहां भगवान गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। यह स्थल वैशाख पूर्णिमा के दिन सिद्धार्थ द्वारा बोधि वृक्ष के नीचे ध्यान लगाने के बाद बौद्ध धर्म की उत्पत्ति का प्रतीक है।

मंदिर का इतिहास तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से जुड़ा है, जब सम्राट अशोक ने यहां एक स्तूप का निर्माण कराया। 2002 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल के रूप में सूचीबद्ध किया। बोधगया में स्थित बोधि वृक्ष के नीचे गौतम बुद्ध ने 'धर्म चक्र प्रवर्तन' किया, जो बौद्ध धर्म का प्रमुख उपदेश है।

बोधगया मंदिर अधिनियम, 1949 क्या है

बोधगया मंदिर अधिनियम, 1949 (Bodh Gaya Temple Act, 1949) महाबोधि मंदिर, बोधगया के प्रबंधन और प्रशासन को नियंत्रित करने वाला एक अधिनियम है, जिसे बिहार सरकार ने पारित किया था। इस अधिनियम के तहत एक समिति का गठन किया गया है, जिसमें आठ सदस्य होते हैं, चार बौद्ध और चार हिंदू, जो मंदिर के प्रबंधन की देखरेख करते हैं।

गया के जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) को समिति का अध्यक्ष बनाया गया है, जो सामान्यतः हिंदू होता है और गैर-हिंदू डीएम के मामले में राज्य सरकार एक हिंदू को अध्यक्ष नियुक्त कर सकती है। यह अधिनियम हिंदू और बौद्धों के बीच विवाद का कारण बना है।

बौद्ध समुदाय का कहना है कि यह अधिनियम महाबोधि मंदिर पर हिंदू नियंत्रण बनाए रखता है, जबकि बौद्ध इसे पूरी तरह से अपने नियंत्रण में देखना चाहते हैं। बौद्ध भिक्षु इस अधिनियम को रद्द करने और मंदिर पर पूर्ण स्वायत्तता की मांग कर रहे हैं।

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