BHOPAL. भारत-चीन के बीच 1962 में यानी 50 साल पहले युद्ध हुआ था। तब चीन ने भारत के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया था। हालांकि तब से अब तक काफी पानी बह चुका है। भारत की स्थिति भी अब काफी बेहतर हुई है। भारत-चीन के सैनिक तमाम बंदिशों के बावजूद अब भी सीमा पर आमने-सामने आ जाते हैं। 1 मई 2020 को पूर्वी लद्दाख, फिर 15 मई 2020 को गलवान में दोनों सेनाओं के बीच झड़प हुई। चीन के सैनिक कंटीले तार और डंडे लेकर भारतीय सैनिकों पर हमला करते हैं। द सूत्र ने इंडियन आर्मी के पूर्व अफसर से इसकी वजह जानी।
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26 साल पहले हुई थी भारत-चीन के बीच संधि
29 नवंबर 1996 को दोनों देशों ने एक संधि पर दस्तखत किए थे। इसके मुताबिक, दोनों ही पक्ष एक-दूसरे के ख़िलाफ़ किसी तरह की ताक़त का इस्तेमाल नहीं करेंगे या इस्तेमाल की धमकी नहीं देंगे या सैन्य श्रेष्ठता हासिल करने की कोशिश नहीं करेंगे। समझौते के पहले अनुच्छेद में लिखा है- दोनों में से कोई भी देश दूसरे के ख़िलाफ सैन्य क्षमता का इस्तेमाल नहीं करेगा। वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के दोनों तरफ पर तैनात कोई भी सेना, अपनी सैन्य क्षमता के तहत दूसरे पक्ष पर हमला नहीं करेगी या किसी तरह की ऐसी सैन्य गतिविधि में हिस्सा नहीं लेगी, ना ही ऐसा करने की धमकी देगी, जिससे भारत-चीन के सीमावर्ती इलाक़ों में शांति और स्थिरता को खतरा हो।
एक संधि है चीनी सैनिकों के हथियार ना लाने की वजह
एक्सपर्ट के मुताबिक, चीन से सीमा विवाद कोई नई बात नहीं है। ये सालों से चला आ रहा है। हर एक देश की एक ट्रीटी होती है, जब भी सैनिक LOC पर होते हैं और पेट्रोलिंग करते हैं तो इसमें 1993 में एग्रीमेंट होता है जिसमें बिना हथियार के पेट्रोलिंग होती है तो वे नए-नए तरीके ढूंढते रहते हैं। कभी वे डंडे कभी पत्थर लेकर आ जाते हैं। LOC की शर्तें नहीं मानने के सवाल पर बोले कि ये लोग लाइन को नहीं मानते हुए ये भी नहीं मानते हैं कि अंग्रेजों की बनाई हुई लाइन सही है। आपका साढ़े 3 हजार किलोमीटर का बॉर्डर है, कोई लड़ाई नहीं है, छोटी-मोटी है ये तो चलती रहती है, लेकिन मुख्य बात ये है कि हमारे रिसोर्स तो लग रहे हैं आपकी मैन पॉवर, फाइनेंस, हेलिकॉप्टर, हवाई जहाज सब लग रहा है। खर्चा बढ़ गया। उदाहरण के लिए एक दिन का 50 करोड़ बढ़ा तो इस हिसाब से सालभर में करीब 600 करोड़ लग गए।
एक्सपर्ट ये भी कहना चाह रहे हैं कि ये यानी चीन हमें मैसेज देना चाहते हैं कि हमसे ज्यादा बराबरी की टक्कर ना लो। टेंशन बढ़ रहा है, बिजनेस वैसा ही चल रहा है। चीन के ऊपर निर्भरता है, दवाइयों का कच्चा मटेरियल आदि। बड़ी मशीनरी, बड़े-बड़े पार्ट्स हैं, सब चीन में बन रहे है। अगर इंडिया में मैन्युफैक्चरिंग की जाती है तो एक तो क्वालिटी नहीं आती और दूसरा महंगा पड़ता है। हमारे बिजनेसमैन वहां से खरीदकर यहां बेचते हैं, उसमें से प्रॉफिट कमा लेते हैं। हम 8 घंटे काम करते हैं वे 15 घंटे काम करते हैं। हम 4 बनाएंगे वो 40 बनाएंगे.. आज आप देखें तो चीन विश्व में सबसे बड़ा सप्लायर है। अमेरिका को भी मिला लिया जाए तो ये कभी भी कम नहीं हो सकता। गलवान के बाद भी भारत में चीन का माल आ रहा है। आज वर्ल्ड एक फैमिली हो गई है, आप ये नहीं कह सकते हम आपको ये नहीं देंगे, वो नहीं देंगे। सब बिजनेस का खेल है, पैसे का खेल है।
26 साल पहले हुई थी भारत-चीन के बीच संधि
29 नवंबर 1996 को दोनों देशों ने एक संधि पर दस्तखत किए थे। इसके मुताबिक, दोनों ही पक्ष एक-दूसरे के ख़िलाफ़ किसी तरह की ताक़त का इस्तेमाल नहीं करेंगे या इस्तेमाल की धमकी नहीं देंगे या सैन्य श्रेष्ठता हासिल करने की कोशिश नहीं करेंगे। समझौते के पहले अनुच्छेद में लिखा है- दोनों में से कोई भी देश दूसरे के ख़िलाफ सैन्य क्षमता का इस्तेमाल नहीं करेगा। वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के दोनों तरफ पर तैनात कोई भी सेना, अपनी सैन्य क्षमता के तहत दूसरे पक्ष पर हमला नहीं करेगी या किसी तरह की ऐसी सैन्य गतिविधि में हिस्सा नहीं लेगी, ना ही ऐसा करने की धमकी देगी, जिससे भारत-चीन के सीमावर्ती इलाक़ों में शांति और स्थिरता को खतरा हो।