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Independence Day Story:हर साल 15 अगस्त को जब पूरा देश स्वतंत्रता दिवस मनाता है तो आसमान रंग-बिरंगी पतंगों से भर जाता है। दिल्ली की गलियों से लेकर छतों तक हर जगह वो काटा और काई पो छे'जैसे शोर सुनाई देते हैं। यह सिर्फ एक खेल नहीं, बल्कि एक डीप-रूटेड ट्रेडिशन है जिसका सीधा कनेक्शन हमारे स्वतंत्रता संग्राम से है।
स्वतंत्रता दिवस पर पतंग उड़ाने का रिवाज भारत की एक बहुत पुरानी और खूबसूरत परंपरा है। इस दिन पूरा आसमान रंग-बिरंगी पतंगों से भर जाता है, जो इस दिन को और भी खास बना देती हैं।
हालांकि पतंगबाजी भारत में सदियों से चली आ रही है और कई फेस्टिवल्स जैसे मकर संक्रांति और बसंत पंचमी पर इसका स्पेशल इम्पोर्टेंस है लेकिन स्वतंत्रता दिवस पर पतंग उड़ाने की यह परंपरा आजादी के बाद शुरू नहीं हुई, बल्कि आजादी की लड़ाई के दौरान ही इसका बीज बोया गया था।
तो ऐसे में क्या आपने कभी सोचा है कि यह परंपरा कब और कैसे शुरू हुई? इसका इतिहास हमारे देश की आजादी की लड़ाई से गहराई से जुड़ा हुआ है। इस 79वें स्वतंत्रता दिवस पर आइए इस इतिहास के बारे में जानें...
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पतंगबाजी का इतिहासपतंगबाजी का इतिहास काफी पुराना है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि पतंग सबसे पहले चीन में बनी थी और फिर कोरिया, जापान और बाद में भारत पहुंची। भारत में पतंगबाजी की शुरुआत मुगल काल में हुई थी। मुगल बादशाहों को पतंग उड़ाना बहुत पसंद था और यह उनके दरबार में एक शौक और मनोरंजन का जरिया बन गया था। धीरे-धीरे, यह शौक आम लोगों के बीच भी लोकप्रिय हो गया और पतंगबाजी एक त्योहार और खुशी का हिस्सा बन गई। दिल्ली और लखनऊ जैसे शहरों में पतंग उड़ाने के लिए खास मैदान और अड्डे बनाए गए थे, जहां लोग अपने दोस्तों और परिवार के साथ पतंगबाजी का लुत्फ उठाते थे। मकर संक्रांति और बसंत पंचमी जैसे त्योहारों पर भी पतंग उड़ाने की परंपरा शुरू हुई। |
आजादी के आंदोलन में पतंग की भूमिका
इस परंपरा की शुरुआत 1927 में हुई मानी जाती है। उस समय जब भारत ब्रिटिश राज के खिलाफ संघर्ष कर रहा था, अंग्रेजों ने एक कमीशन बनाया जिसे 'साइमन कमीशन' (Simon Commission) कहा जाता था। इसका उद्देश्य भारत में राजनीतिक सुधारों पर चर्चा करना था, लेकिन इसमें कोई भी भारतीय मेंबर नहीं था। इस बात से पूरे देश में गुस्सा फैल गया।
जब भारत में आजादी की लड़ाई शुरू हुई तो पतंग एक सिंपल टॉय से बढ़कर एक पावरफुल सिंबल बन गई। फ्रीडम फिघ्टर्स ने पतंगों का इस्तेमाल ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए किया। उस समय, ब्रिटिश सरकार ने कई तरह की पाबंदियां लगा रखी थीं जिससे लोगों को अपनी बात कहने की आजादी नहीं थी।
ऐसे में, भारतीयों ने इस कमीशन का विरोध करने के लिए एक अनोखा तरीका अपनाया। उन्होंने "साइमन, गो बैक!" ("Simon, Go Back!") और 'भारत छोड़ो' (Quit India) (Quit India movement) जैसे स्लोगन्स लिखकर उन्हें आसमान में उड़ाना शुरू किया।
यह एक शांत लेकिन बहुत पावरफुल प्रोटेस्ट था। ये पतंगें हवा में उड़ते हुए दूर-दूर तक जाती थीं और लोगों तक आजादी का संदेश पहुंचाती थीं। इस तरह, पतंग आजादी के आंदोलन का एक हिस्सा बन गईं और लोगों के बीच राष्ट्रवाद की भावना को जगाने का काम करने लगीं।
15 अगस्त और पतंगबाजी की परंपरा
1947 में जब भारत को आजादी मिली तो लोगों ने इस खुशी को मनाने के लिए पतंगें उड़ाईं। आसमान में उड़ती हुई पतंगें गुलामी से मिली आजादी का प्रतीक बन गईं। यह एक तरह से लोगों की भावनाएं थीं कि अब हम आजाद हैं और आसमान की तरह हमारे सपने भी आजाद हैं।
तब से लेकर आज तक, हर साल 15 अगस्त को पतंग उड़ाने की परंपरा जारी है। यह सिर्फ एक खेल नहीं, बल्कि हमारी आजादी के लिए किए गए संघर्षों को याद करने और शहीदों को श्रद्धांजलि देने का एक तरीका है।
आज भी जब हम आसमान में रंग-बिरंगी पतंगें उड़ती देखते हैं तो हमें उन देशभक्तों की याद आती है जिन्होंने अपनी जान देकर हमें आजादी दिलाई।
पतंगबाजी और हमारी संस्कृति
पतंगबाजी सिर्फ एक खेल नहीं है बल्कि यह हमारी संस्कृति का एक हिस्सा है। यह हमें सिखाती है कि कैसे हमें मुश्किलों का सामना करना चाहिए और अपनी मेहनत से सफलता हासिल करनी चाहिए।
एक अच्छी पतंग उड़ाने के लिए धैर्य, एकाग्रता और सही तकनीक की जरूरत होती है, ठीक वैसे ही जैसे जिंदगी में सफल होने के लिए इन चीजों की जरूरत होती है।
पतंगबाजी एक सोशल एक्टिविटी भी है जहां लोग एक साथ आते हैं, पतंग उड़ाते हैं और एक-दूसरे के साथ अपनी खुशियां बांटते हैं। यह हमें एक-दूसरे के साथ जुड़ने का मौका देती है और हमारे रिश्तों को मजबूत करती है।
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कुछ और इंटरेस्टिंग बातें
- पेच लड़ाना (Kite fighting): पतंगबाजी का सबसे मजेदार हिस्सा होता है पेच लड़ाना। इसमें दो पतंगों को एक-दूसरे से लड़ाया जाता है और जिसकी पतंग कट जाती है, वह हार जाता है।
- मांझा (Manjha): पतंग उड़ाने के लिए जिस धागे का इस्तेमाल होता है, उसे मांझा कहते हैं। इसे बनाने के लिए गिलास पाउडर और ग्लू का इस्तेमाल होता है, ताकि यह मजबूत और धारदार बन सके।
- दिल्ली की पतंगें: दिल्ली में पतंगबाजी बहुत फेमस है। यहां के लोग पुरानी दिल्ली के छतों से पतंग उड़ाते हैं और पूरे शहर में पतंगों का मेला लग जाता है।
तो अगली बार जब आप 15 अगस्त (India Independence Day History) को आसमान में उड़ती हुई रंग-बिरंगी पतंगें देखें, तो याद रखें कि यह सिर्फ एक खेल नहीं है बल्कि हमारे देश की आजादी, संघर्ष और एकता की एक जीवित निशानी है। यह उस आजादी का जश्न है जो हमें बहुत कुर्बानियों के बाद मिली है।
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