सरदार सरोवर बांध : डूब प्रभावित हजारों परिवारों का मुआवजा नहीं वसूल पा रही सरकार

गुजरात में नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बांध बनने के बाद 2017 में इसकी ऊंचाई बढ़ाकर 139 मीटर कर दी। इससे जल भराव क्षेत्र बढ़ने से प्रदेश के धार और बड़वानी जिले में कई गांव और आदिवासी अंचल के मजरे-टोले डूब में आ गए... 

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Jitendra Shrivastava
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संजय शर्मा, BHOPAL. 7 साल बाद भी सरदार सरोवर बांध के डूब प्रभावित हजारों लोग मुआवजे का इंतजार कर रहे हैं। बांध से गुजरात तो भरपूर फायदा ले रहा है और प्रदेश के सैंकड़ों परिवार भटक रहे हैं। गुजरात के सामने बेबस मध्यप्रदेश की बीजेपी सरकार मुआवजे के 1200 करोड़ वसूल नहीं पा रही। कहने को तो दोनों राज्यों में बीजेपी की सरकारें हैं। उनके बीच कई बैठक और पत्राचार भी हो चुका है, लेकिन गुजरात राशि देने में अड़ंगे डाल रहा है। वहीं पीएम मोदी का राज्य होने से मध्यप्रदेश सरकार गुजरात पर इसके लिए दबाव भी नहीं बना पा रही है। इसका खामियाजा वे परिवार भुगत रहे हैं जो मुआवजा न मिलने की वजह से घर भी नहीं बना पाए हैं। 

पर्यटन पर बेहिसाब खर्च, जरूरतमंदों का क्या

गुजरात में नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बांध बनाने के बाद साल 2017 में इसकी ऊंचाई बढ़ाकर 139 मीटर कर दी गई है। इस वजह से जल भराव क्षेत्र बढ़ने से प्रदेश के धार और बड़वानी जिले में कई गांव और आदिवासी अंचल के मजरे-टोले डूब में आ गए। इनमें रहने वाले परिवारों को डूब प्रभावित घोषित कर उन्हें हटा दिया गया। इन परिवारों को उनके खेत और मकानों के बदले में मुआवजा देने का भी प्रावधान किया गया था। हजारों लोग बेघर हो गए और उन्हें अपने गांव-मकान छोड़कर दूसरे स्थानों पर बसना पड़ा तो सैंकड़ों परिवार खेती छिन जाने के बाद अब शहरों में जाकर किसान से मजदूर की भूमिका में आ चुके हैं।

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मुआवजा राशि बढ़कर 12 हजार करोड़ हो गई

गुजरात सरकार को 7 हजार करोड़ रुपया देना था ताकि डूब प्रभावितों को भुगतान किया जा सके, लेकिन गुजरात सरकार कभी डूब प्रभावितों का सर्वे करने तो कभी डूब क्षेत्र के आकलन की रिपोर्ट को लेकर टालती रही। अब मुआवजा की राशि बढ़कर 12 हजार करोड़ हो गई है लेकिन गुजरात सरकार की मंशा अभी भी साफ नहीं है। वहीं गुजरात सरकार सरदार सरोवर बांध पर सरदार पटेल की प्रतिमा और पर्यटन स्थल विकसित करने पर बेहिसाब खर्च कर रही है। 

डूब प्रभावितों के आकलन में भी किया झोल

सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाने से डूब का एरिया भी काफी फैल गया था। तब गुजरात सरकार के दबाव में मध्यप्रदेश के अधिकारियों ने धार-बड़वानी जिलों के आदिवासी परिवारों के आकलन में भी जमकर गड़बड़ी की। सरकार ने केवल 76 गांव और मजरे-टोले ही डूब प्रभावित बताए थे। इसको लेकर इस अंचल में कई बार ग्रामीणों ने आंदोलन भी चलाया। तब भी सरकार अपने आंकड़ों पर अड़ी रही और डूब के दायरे में आने वाले लोगों की संख्या 6 हजार बताती रही। लगातार हो रहे आंदोलनों को देखते हुए 2018 में कांग्रेस सरकार ने दोबारा सर्वे कराया तो डूब में आने वाले गांवों की संख्या 178 हो गई। तब एनवीडीए यानी नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण ने 178 गांव और 32 हजार से ज्यादा लोगों को डूब प्रभावित माना था। सरकार के ही विभाग के इस डेटा ने पुराने सर्वे को झुठला दिया और अधिकारियों की धांधली सामने आ गई थी। यानी गुजरात सरकार के दबाव में मध्यप्रदेश की पूर्ववर्ती सरकार अपने ही लोगों के हक को दबाने की कोशिश कर रही थी। डूब प्रभावितों के वे परिवार जिन्हें मुआवजा नहीं मिला वे या तो आसपास ही झोंपड़ी बनाकर रह रहे हैं और जरूरी सुविधाओं से भी वंचित हैं।

क्यों सरकार नहीं वसूल पा रही गरीबों का हक

नर्मदा नदी के डूब क्षेत्र में धार और बड़वानी जिलों के 178 गांव, मजरे-टोले डूब चुके हैं। सैंकड़ा भर गांव टापू बनने से उनसे बसाहट विस्थापित हो चुकी हैं। कई गांवों में अब पहुंच मार्ग, स्कूल, पेयजल, बिजली जैसी सुविधाएं भी खत्म हो चुकी हैं। इसके बाद भी लोग इस वजह से दूसरी जगह अपना घर नहीं बसा पा रहे क्योंकि इसके लिए उनके पास रुपया नहीं है। वे सात साल बाद भी मुआवजे की बाट जोह रहे हैं। उधर गुजरात सरकार डूब प्रभावितों के हक का 12 हजार करोड़ दबाए बैठी है। मध्यप्रदेश सरकार 7 साल से मुआवजा के लिए कभी अधिकारी स्तर की वार्ता तो कभी पत्राचार करती रही है। लेकिन एक बार भी गुजरात सरकार पर दबाव नहीं बना पाई है। कमलनाथ सरकार ने मुआवजा राशि की वसूली की पहल की थी, लेकिन सरकार गिरते ही यह मामला फिर दबा दिया गया है। मार्च महीने में भी दोनों राज्यों के बीच अधिकारी स्तर की बैठक हुई लेकिन नतीजा इसमें भी नहीं निकला। गुजरात सरकार ने मध्यप्रदेश के डूब प्रभावितों के सर्वे पर सवाल खड़े किए हैं इसके बाद डूब का मुआवजा मिलने में फिर रोड़ा अटक गया है।

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