Hathras Stampede : हाथरस में भगदड़ मचने से 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई है। इतनी बड़ी संख्या में हुई मौत की खबर सुनकर हर किसी दहल गया है। चारों तरफ लाशें और चीत्कार के अलावा कुछ सुनाई नहीं दे रहा है। सत्संग में हुई भगदड़ के बाद अब लोगों के मन में एक ही सवाल उठने लगा है कि आखिर वो भोले बाबा कौन हैं, जिनका प्रवचन सुनने के लिए इतनी भारी संख्या में श्रद्धालु हाथरस आए थे।
भोले बाबा के लाखों भक्त
भोले बाबा का ये सत्संग पश्चिमी यूपी के लोगों में ज्यादा विख्यात है। भोले बाबा का सत्संग अक्सर पश्चिम के जिलों में देखने को मिल जाता है, जिसमें बड़ी तादाद में श्रद्धालु पहुंचते हैं। भोले बाबा के आज लाखों की संख्या में अनुयायी हैं।
18 साल पहले छोड़ी थी पुलिस की नौकरी
भोले बाबा के नाम से प्रसिद्ध संत का असली नाम सुरज पाल है। अब उन्हें उनके अनुयायी विश्व हरि भोले बाबा के नाम से जानते हैं। भोले बाबा मूल रूप से कासगंज के पटियाली गांव के रहने वाले हैं। इन्होंने पटियाली में अपना आश्रम बनाया है। संत बनने से पहले भोले बाबा यूपी पुलिस की नौकरी करते थे। 18 साल पहले इन्होंने नौकरी करने के बाद वीआरएस ले लिया था। इसके बाद अपने गांव में झोपड़ी बनाकर रहने लगे।
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उत्तर प्रदेश के हाथरस में भोले बाबा के सत्संग में भगदड़, 100 से ज्यादा लोगों की मौत
भोले बाबा ने गांव-गांव जाकर भगवान की भक्ति का प्रचार-प्रसार शुरू कर दिया। इस दौरान उसे खासा चंदा भी मिलने लगा, जिसके बाद जगह-जगह सत्संग का आयोजन करने लगा। देखते ही देखते भोले बाबा की पूरी लाइफ स्टाइल ही बदल गई। आज भोले बाबा के लाखों की संख्या में अनुयायी हैं। इनके जगह-जगह सत्संग के आयोजन होते रहते हैं, जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु प्रवचन सुनने के लिए पहुंचते हैं।
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पैंट सूट पहनकर देते हैं प्रवचन
नारायाण साकार हरि के नाम से प्रसिद्ध सूरज पाल उर्फ भोले दूसरे संतों से दिखते है। दुसरे बाबाओं की तरह नहीं दिखते हैं। उनकी लाइफ स्टाइल भी दूसरे संतों से मिलती। आमतौर पर संत धोती कुर्ता पहने नजर आते हैं लेकिन ये ऐसे संत हैं जो हमेशा सफेद रंग के पैंट शर्ट में ही दिखते हैं। सिंहासन पर बैठकर प्रवचन सुनाते हैं। भोले बाबा के अनुयायी ज्यादातर गुलाबी शर्ट-पैंट और सफेद टोपी पहनते हैं। भोले बाबा भक्तों को मोहमाया से ऊपर उठकर भगवान की भक्ति में लीन होने का ज्ञान देते हैं।
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वीआरएस लेने के बाद भगवान से साक्षात्कार
भोले बाबा का कहना है कि वीआरएस लेने के बाद भगवान से साक्षात्कार हुआ, इसके बाद इन्होंने अपना जीवन मानव कल्याण में लगाने का फैसला कर लिया। वो भक्तों फरियाद पर अलग-अलग स्थानों पर घूमकर सत्संग करते हैं।
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ज्यादा लोग सत्संग में पहुंचे
आयोजकों ने इस कार्यक्रम के लिए अनुमति ली थी पर जितने लोगों की संख्या बताई गई थी, उससे कहीं ज्यादा लोग सत्संग में पहुंचे गए थे।