बॉम्बे हाईकोर्ट ( Bombay High Court ) ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि पत्नी द्वारा सेक्स संबंध से इनकार और पति को अपमानित करना क्रूरता (Cruelty) है। यह तलाक (Divorce) का उचित आधार बनता है। कोर्ट ने महिला की अपील खारिज करते हुए भरण-पोषण की मांग भी अस्वीकार कर दी।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि अगर पत्नी अपने पति को दोस्तों के सामने अपमानित करती है, सेक्स संबंध से इनकार करती है और बेबुनियाद एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के आरोप लगाती है, तो यह क्रूरता है। हिंदू विवाह अधिनियम के तहत यह तलाक का उचित आधार बनता है।
न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति डॉ. नीला गोकले की खंडपीठ ने गुरुवार को यह निर्णय सुनाया। यह फैसला एक महिला की याचिका पर दिया गया, जिसमें उसने पुणे पारिवारिक न्यायालय के 2019 के फैसले को चुनौती दी थी। पुणे न्यायालय ने पति को तलाक देने की अनुमति दी थी।
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विवाह के एक साल बाद ही अलग
यह दंपति दिसंबर 2013 में विवाह बंधन में बंधा था, लेकिन एक साल के भीतर ही आपसी मतभेदों के कारण दोनों अलग हो गए। जुलाई 2015 में महिला ने अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज की थी, जिसमें मानसिक प्रताड़ना, स्त्रीधन रखने और घर से निकालने के आरोप लगाए थे।
फिर भी, महिला ने पारिवारिक न्यायालय में 'वैवाहिक अधिकारों की पुनर्स्थापना' की याचिका दायर की, जिसमें उसने कहा कि वह शादी को खत्म नहीं करना चाहती। इसके विपरीत, पति ने क्रूरता और परित्याग के आधार पर तलाक की अर्जी दी।
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पति के गंभीर आरोप
पति ने अदालत में कहा कि पत्नी न केवल सेक्स संबंध बनाने से इनकार करती थी, बल्कि दोस्तों के सामने उसका अपमान भी करती थी और उस पर झूठे एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के आरोप लगाती थी।
पति ने अदालत में यह भी आरोप लगाया कि पत्नी उसकी दिव्यांग बहन के साथ अमानवीय व्यवहार करती थी, जिससे उसकी सेहत बिगड़ी। इसके अलावा, पत्नी ने कार्यालय के कर्मचारियों के साथ भी दुर्व्यवहार किया, जिससे पति को मानसिक पीड़ा हुई।
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हाईकोर्ट ने पत्नी की अपील खारिज की
पुणे पारिवारिक न्यायालय ने 2019 में पत्नी की याचिका खारिज कर दी और पति को तलाक दे दिया। महिला ने 2021 में बॉम्बे हाईकोर्ट में अपील की और 10,000 रुपए प्रति माह के भरण-पोषण की मांग की। हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों को समझौते के लिए कई बार मध्यस्थता के जरिए सुलह कराने की कोशिश की, लेकिन बात नहीं बनी।
अदालत ने स्पष्ट किया कि दोनों के बीच सुलह की कोई संभावना नहीं है और पत्नी के आरोपों को अदालत में प्रस्तुत साक्ष्यों के आधार पर झूठा पाया। इसके बाद, अदालत ने पारिवारिक न्यायालय के फैसले को सही ठहराते हुए महिला की अपील खारिज कर दी और भरण-पोषण की मांग को अस्वीकार कर दिया।
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अदालत ने ये कहा
अदालत ने कहा, "पति के कर्मचारियों के साथ पत्नी का व्यवहार, दोस्तों के सामने पति का अपमान और झूठे एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के आरोप निश्चित रूप से मानसिक पीड़ा पहुंचाने वाले हैं और क्रूरता की श्रेणी में आते हैं। पति के साथ सेक्स संबंध से इनकार करना और दिव्यांग बहन के प्रति उदासीनता भी मानसिक यंत्रणा का कारण है।"
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बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला