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Constitution of India
भारत का संविधान (Constitution of India) न केवल दुनिया का सबसे विस्तृत संविधान है, बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र की आत्मा भी है। इसे बनाने की प्रक्रिया ऐतिहासिक, क्रांतिकारी और दूरदर्शी थी। भारतीय संविधान देश की आत्मा है। इसे बनाने में 2 साल, 11 महीने और 18 दिन लगे।
यह दस्तावेज न केवल भारत को एक मजबूत लोकतंत्र के रूप में स्थापित करता है, बल्कि इसके नागरिकों को उनके अधिकार और कर्तव्य भी सिखाता है। भारतीय संविधान की संरचना और निर्माण प्रक्रिया अपने आप में एक अद्वितीय उपलब्धि है, जो भारत की विविधता और संस्कृति का सम्मान करती है।
इसे भारतीय समाज की विविधता, संस्कृति और आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया। इसकी संरचना और निर्माण में लगभग तीन साल का समय लगा। तो आइए इस महान दस्तावेज की रचना की प्रक्रिया को थोड़ा विस्तार से समझें...
संविधान निर्माण का ऐतिहासिक बैकग्राउंड
भारतीय संविधान का निर्माण अचानक नहीं हुआ, बल्कि इसके पीछे दशकों की गुलामी, संघर्ष और स्वतंत्रता संग्राम की कहानी है। 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद, भारत को एक ऐसे दस्तावेज की आवश्यकता थी, जो देश को एकजुट रख सके और एक प्रगतिशील समाज का निर्माण कर सके।
इस संविधान का उद्देश्य एक संप्रभु, धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी और लोकतांत्रिक गणराज्य (Sovereign, secular, socialist and democratic republic) की स्थापना करना था।
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पहला प्रयास
ब्रिटिश शासन के दौरान ही संविधान निर्माण की नींव रखी गई थी। कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं जो इस प्रक्रिया का हिस्सा थीं वो हैं-
- 1909 का मार्ले-मिंटो सुधार अधिनियम (Morley-Minto Reform Act): इसने भारतीयों को पहली बार सीमित स्तर पर राजनीतिक भागीदारी का मौका दिया गया।
- 1919 का मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार (Montagu-Chelmsford Reforms): इसने प्रांतीय स्वशासन (provincial self-government) का आधार रखा।
- 1935 का भारत सरकार अधिनियम (Government of India Act): यह स्वतंत्र भारत के संविधान का प्रारंभिक ढांचा बना।
संविधान सभा की स्थापना
संविधान निर्माण के लिए संविधान सभा (Constituent Assembly) का गठन किया गया। यह एक ऐसी संस्था थी जिसमें भारत के विभिन्न क्षेत्रों, जातियों और वर्गों के प्रतिनिधि शामिल थे। संविधान सभा के गठन की प्रक्रिया 1946 में शुरू हुई।
संविधान सभा की संरचना
- संविधान सभा में कुल 389 सदस्य थे। जिसमें से 292 सदस्य ब्रिटिश भारत से चुने गए थे, 93 देशी रियासतों से और 4 चीफ कमिश्नरी से।
- भारत की स्वतंत्रता के बाद, पाकिस्तान के गठन के कारण संविधान सभा के सदस्यों की संख्या घटकर 299 रह गई।
संविधान सभा की कार्यप्रणाली
- 9 दिसंबर 1946 को संविधान सभा की पहली बैठक हुई।
- डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा को अंतरिम अध्यक्ष चुना गया।
- इसके बाद, 11 दिसंबर 1946 को डॉ. राजेंद्र प्रसाद को स्थायी अध्यक्ष चुना गया।
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ड्राफ्टिंग कमेटी (Drafting Committee)
संविधान का फार्मेट तैयार करने के लिए एक ड्राफ्टिंग कमेटी का गठन किया गया। इस समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव अंबेडकर थे। उन्होंने संविधान को एक वैज्ञानिक और दूरदर्शी दृष्टिकोण के साथ तैयार किया।
ड्राफ्टिंग कमेटी के अन्य प्रमुख सदस्य:
- एन. गोपालस्वामी आयंगर
- के. एम. मुंशी
- सैय्यद मोहम्मद सादुल्लाह
- बी. एल. मित्तर
- डी. पी. खेतान
संविधान निर्माण की प्रक्रिया
संविधान सभा ने विभिन्न चरणों में संविधान के निर्माण की प्रक्रिया को पूरा किया। इस प्रक्रिया को तीन मुख्य चरणों में बांटा जा सकता है:
- संविधान का प्रारंभिक मसौदा (Drafting of the Constitution)
ड्राफ्टिंग कमेटी ने विभिन्न देशों के संविधानों का अध्ययन किया। अमेरिकी संविधान, ब्रिटिश संविधान, आयरिश संविधान और कनाडाई संविधान जैसे कई प्रमुख दस्तावेजों से प्रेरणा ली गई। - बहस और संशोधन (Debates and Amendments)
संविधान सभा में कुल 11 सत्र आयोजित किए गए। इन सत्रों में 165 दिनों तक गहन बहस हुई। सदस्यों ने विभिन्न नियमों पर चर्चा की और लगभग 2000 संशोधन प्रस्तावित किए। इनमें से कई प्रस्तावों को स्वीकार कर संविधान का हिस्सा बनाया गया। - संविधान को अपनाना (Adoption of the Constitution)
26 नवंबर 1949 को भारतीय संविधान को अंतिम रूप से अपनाया गया। इस दिन को 'संविधान दिवस' के रूप में मनाया जाता है। संविधान के कुछ नियमों, जैसे नागरिकता, चुनाव और अस्थायी प्रावधान, तुरंत लागू हो गए। पूरा संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ और भारत एक गणराज्य (republic) बना।
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संविधान की विशेषताएं
भारतीय संविधान की कुछ प्रमुख विशेषताएं इसे स्पेशल बनाती हैं:
- लिखित और विस्तृत संविधान
भारतीय संविधान दुनिया का सबसे विस्तृत लिखित संविधान है।
इसमें 448 अनुच्छेद, 12 अनुसूचियां, और 25 भाग हैं। - समावेशिता
यह विभिन्न जातियों, धर्मों, और भाषाओं के लोगों को समान अधिकार देता है। - लचीलापन और कठोरता का संतुलन
संविधान संशोधन की प्रक्रिया लचीली है, लेकिन इसकी मूल संरचना को बदलना कठिन है। - मूल अधिकार और कर्तव्य
यह सभी नागरिकों को 6 मौलिक अधिकार देता है, जैसे समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार आदि।
नागरिकों के कर्तव्यों को भी शामिल किया गया है। - संघीय व्यवस्था
भारतीय संविधान संघीय ढांचे को अपनाता है, लेकिन केंद्र को अधिक शक्ति प्रदान करता है। - न्यायपालिका की स्वतंत्रता
भारत में न्यायपालिका पूरी तरह स्वतंत्र और निष्पक्ष है।
संविधान निर्माण के दौरान चुनौतियां
- विविधता का प्रबंधन
भारत की सांस्कृतिक और भाषाई विविधता को ध्यान में रखते हुए संविधान बनाना चुनौतीपूर्ण था। - विभाजन का प्रभाव
भारत और पाकिस्तान के विभाजन के कारण राजनीतिक और सामाजिक समस्याएं पैदा हुईं। - गरीबी और अशिक्षा
स्वतंत्रता के समय अधिकांश भारतीय अशिक्षित और गरीब थे, जिन्हें लोकतंत्र में सक्रिय भागीदार बनाना कठिन था। - समाज सुधार और समानता
जातिवाद, लिंगभेद और धार्मिक भेदभाव जैसी सामाजिक बुराइयों को खत्म करने के उपाय संविधान में शामिल करना चुनौतीपूर्ण था। - संविधान निर्माण का महत्व
भारतीय संविधान केवल एक कानूनी दस्तावेज नहीं है। यह भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों, स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे के आदर्शों का प्रतीक है। यह देश को स्थिरता, प्रगति और एकता की ओर ले जाने वाला मार्गदर्शक है।
संविधान के बाद के बदलाव
संविधान को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए समय-समय पर इसमें संशोधन किए गए। अब तक भारतीय संविधान में 100 से अधिक संशोधन (Amendment) हो चुके हैं। यह दिखाता है कि संविधान लचीला है और बदलती परिस्थितियों के मुताबिक खुद को ढाल सकता है।
आज, यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपने संविधान के आदर्शों का पालन करें और इसे एक सशक्त, समावेशी और प्रगतिशील राष्ट्र बनाने में योगदान दें।
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