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Photograph: (thesootr)
विपक्ष ने चुनाव आयोग पर निशाना साधा है। उनका आरोप है कि मतदाता सूची में हेराफेरी हुई है। विपक्षी दल के लोग मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) ज्ञानेश कुमार को हटाने की सोच रहे हैं। इसके लिए वे संसद में महाभियोग का प्रस्ताव ला सकते हैं।
हालांकि, कुछ राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह एक दबाव की रणनीति है। वे चुनाव के इस मुद्दे को गरमाए रखना चाहते हैं। कांग्रेस ने भी पुष्टि की है कि मुख्य चुनाव आयुक्त के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव लाने पर विचार किया जा रहा है।
सोमवार सुबह इस विषय पर संसद भवन में चर्चा हुई। भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त को महाभियोग प्रस्ताव द्वारा पद से हटाया जा सकता है।
सबसे पहले जानें कैसे होती है CEC की नियुक्ति...
भारत में चुनाव आयोग के प्रमुख (मुख्य चुनाव आयुक्त) और उनके सहायक चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति एक विशेष प्रक्रिया के तहत होती है। इसके लिए केंद्र सरकार ने "सेवा की शर्तों और कार्यकाल अधिनियम 2023" लागू किया है। इस अधिनियम के अनुसार, चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए एक तीन सदस्यीय समिति बनाई जाती है, जिसमें प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त एक केंद्रीय मंत्री शामिल होते हैं। यह समिति चुनाव आयुक्तों और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए सिफारिश करती है।
1. समिति का गठन:तीन सदस्यीय समिति (प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और एक केंद्रीय मंत्री) मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त की नियुक्ति की सिफारिश करेगी। 2. सर्च कमेटी:सर्च कमेटी पांच नामों को शॉर्टलिस्ट करती है। 3. चयन समिति:
4. राष्ट्रपति की मंजूरी:
5. नोटिफिकेशन और शपथ:
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मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) को पद से हटाने की प्रक्रिया
भारत में चुनाव आयोग (Election Commission of India) एक स्वायत्त और स्वतंत्र संवैधानिक निकाय है, जो देश में निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव कराने के लिए जिम्मेदार है। इस निकाय की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए, भारतीय संविधान ने इसके प्रमुख, मुख्य चुनाव आयुक्त (Chief Election Commissioner) को पद से हटाने की एक बेहद कठोर और जटिल प्रक्रिया निर्धारित की है।
हाल ही में, बिहार में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) और 'वोट चोरी' के आरोपों के बाद उठे सियासी घमासान में, मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाने का प्रस्ताव लाने की चर्चा जोरों पर है, जिसने इस विषय को फिर से सुर्खियों में ला दिया है।
हटाने की प्रक्रिया: जानें चरण-दर-चरण
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 324 (Article 324 of Indian Constitution) चुनाव आयोग की स्थापना और उसकी शक्तियों से संबंधित है। इस अनुच्छेद में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि मुख्य चुनाव आयुक्त को उनके पद से उसी तरह हटाया जा सकता है, जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश को हटाया जाता है।
यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) को सरकार या किसी राजनीतिक दल के दबाव से बचाया जा सके, ताकि वह बिना किसी डर या पक्षपात के अपना काम कर सकें। यही कारण है कि यह प्रक्रिया साधारण नहीं है, बल्कि 'सिद्ध दुर्व्यवहार' (Proven Misbehaviour) या 'अक्षमता' (Incapacity) जैसे गंभीर आरोपों पर आधारित होती है। आज तक, भारत के इतिहास में किसी भी मुख्य चुनाव आयुक्त को इस प्रक्रिया के माध्यम से हटाया नहीं गया है, जो इस पद की गरिमा और सुरक्षा को दर्शाती है।
मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाने की प्रक्रिया संसद के किसी भी सदन में शुरू हो सकती है, चाहे वह लोकसभा हो या राज्यसभा। यह प्रक्रिया महाभियोग (Impeachment) जैसी ही होती है, लेकिन इसे 'हटाने की प्रक्रिया' (Removal Process) कहा जाता है।
6 चरणों में जानें महाभियोग की प्रक्रिया...
चरण 1: प्रस्ताव का प्रस्तुतीकरण
- लोकसभा में प्रस्ताव पेश करने के लिए कम से कम 100 सांसदों के हस्ताक्षर आवश्यक हैं।
- राज्यसभा में प्रस्ताव पेश करने के लिए कम से कम 50 सांसदों के हस्ताक्षर आवश्यक हैं।
- प्रस्ताव में मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) पर लगे आरोपों का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए, जैसे कि 'सिद्ध दुर्व्यवहार' (Proven Misbehaviour) या 'अक्षमता' (Incapacity)।
चरण 2: स्पीकर/चेयरमैन की भूमिका
प्रस्ताव पेश होने के बाद, लोकसभा के स्पीकर या राज्यसभा के चेयरमैन को इस पर विचार करना होता है। उनके पास यह अधिकार है कि वे प्रस्ताव को स्वीकार या अस्वीकार कर दें। यदि वे प्रस्ताव को स्वीकार करते हैं, तो अगले चरण की कार्रवाई शुरू होती है।
चरण 3: आरोपों की जांच के लिए समिति का गठन
प्रस्ताव स्वीकार होने पर, आरोपों की गहन जांच के लिए एक तीन-सदस्यीय समिति का गठन किया जाता है। इस समिति में आम तौर पर-
- सुप्रीम कोर्ट के एक मौजूदा या सेवानिवृत्त न्यायाधीश (अध्यक्ष)।
- किसी भी हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश।
- एक प्रतिष्ठित न्यायविद् (Jurist)।
यह समिति मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) को अपना पक्ष रखने का मौका देती है और आरोपों की विस्तृत जांच करती है। जांच पूरी होने के बाद, समिति अपनी रिपोर्ट स्पीकर या चेयरमैन को सौंपती है।
चरण 4: संसद में 'विशेष बहुमत' से मतदान
- यदि जांच समिति अपनी रिपोर्ट में आरोपों को सही पाती है, तो हटाने का प्रस्ताव फिर से संबंधित सदन में लाया जाता है।
- प्रस्ताव को पारित करने के लिए 'विशेष बहुमत' (Special Majority) की आवश्यकता होती है। इसका मतलब है कि इसे सदन के कुल सदस्यों के बहुमत (50% से अधिक) और उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत (Two-thirds majority) से पारित होना चाहिए।
चरण 5: दोनों सदनों में प्रक्रिया का दोहराव
एक सदन से प्रस्ताव पारित होने के बाद, इसे दूसरे सदन में भेजा जाता है। दूसरे सदन में भी उसी 'विशेष बहुमत' से इसे पारित होना जरूरी है। यह पूरी प्रक्रिया एक ही संसदीय सत्र में पूरी होनी चाहिए।
चरण 6: राष्ट्रपति का आदेश
दोनों सदनों से प्रस्ताव पारित होने के बाद, इसे अंतिम स्वीकृति के लिए भारत के राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है। संसद की सिफारिश पर राष्ट्रपति, मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) को उनके पद से हटाने का आदेश जारी कर सकते हैं। यह प्रक्रिया बेहद लंबी और जटिल होती है, जो यह सुनिश्चित करती है कि पद का दुरुपयोग न हो।
पहले भी हुई है cec के खिलाफ महाभियोग की कोशिश
भारत में अब तक किसी भी मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) को हटाया नहीं गया है, लेकिन कुछ ऐसे मामले सामने आए हैं, जब उन्हें हटाने के प्रयास किए गए थे।
एन. गोपालस्वामी बनाम नवीन चावला मामला (2009)
वर्ष 2009 में, तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त एन. गोपालस्वामी ने चुनाव आयुक्त नवीन चावला को पद से हटाने की सिफारिश की थी। उन्होंने नवीन चावला पर पक्षपाती होने का आरोप लगाया था।
यह मामला तब बहुत चर्चा में रहा था, क्योंकि विपक्ष (उस समय बीजेपी) ने नवीन चावला को हटाने के लिए प्रस्ताव लाने की कोशिश की थी। हालांकि, लोकसभा स्पीकर ने इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया था और अंततः यह प्रयास सफल नहीं हो सका था। यह मामला दर्शाता है कि किसी भी मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) या चुनाव आयुक्त को हटाना कितना मुश्किल होता है।
मुख्य चुनाव आयुक्त के पद की सुरक्षा...
- संवैधानिक प्रावधान: अनुच्छेद 324 के तहत सुप्रीम कोर्ट के जज के समान सुरक्षा।
- हटाने का आधार: केवल 'सिद्ध दुर्व्यवहार' (Proven Misbehaviour) या 'अक्षमता' (Incapacity) के आधार पर हटाया जा सकता है।
- विशेष बहुमत: संसद के दोनों सदनों में 'विशेष बहुमत' (Special Majority) से प्रस्ताव पारित होना अनिवार्य है।
- स्वतंत्रता का प्रतीक: यह प्रक्रिया सीईसी को राजनीतिक दबाव से मुक्त रखती है।
इन सब के अलावा, चुनाव सुधार (Electoral Reforms) और लोकतंत्र की मजबूती (Strengthening Democracy) सुनिश्चित करने के लिए, मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) को पद से हटाने की प्रक्रिया को इतना सख्त बनाया गया है।
यह दिखाता है कि भारत का संविधान मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) के पद की स्वतंत्रता को कितनी गंभीरता से लेता है। हाल ही में हुई चर्चाएं भी इस बात का संकेत देती हैं कि भले ही सियासी घमासान क्यों न हो, संवैधानिक प्रक्रियाओं का पालन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
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