इग नोबेल पुरस्कार 2025: भारतीय वैज्ञानिकों ने रचा इतिहास, जूते की बदबू से मिला अवार्ड!

भारतीय वैज्ञानिकों ने इग नोबेल पुरस्कार 2025 जीता। जूते की बदबू पर रिसर्च से मिली यह उपलब्धि। जानें क्या है इग नोबेल और कैसे बना यह दुनिया का सबसे मजेदार साइंस अवार्ड।

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Amresh Kushwaha
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जब साइंस हास्य के साथ मिलकर दुनिया को चौंकाता है तो कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिलता है। उत्तर प्रदेश के दो वैज्ञानिकों विकाश कुमार और सार्थक मित्तल ने विश्व प्रसिद्ध इग नोबेल पुरस्कार 2025 जीतकर भारत का नाम रोशन किया है। मगर इनका अनुसंधान किसी आम विषय पर नहीं, बल्कि जूते की रैक में बदबूदार जूतों के प्रभाव पर था!

आखिर क्या है ये इग नोबेल?

इग नोबेल पुरस्कार दुनिया का सबसे मजेदार और अनोखा साइंस अवार्ड है। 1991 से हर साल दिया जाने वाला यह पुरस्कार उन अनुसंधानों को सम्मानित करता है जो पहले आपको हंसाते हैं, फिर सोचने पर मजबूर करते हैं।

इग शब्द दरअसल इग्नोबल (अपमानजनक) का छोटा रूप है, जो असली नोबेल पुरस्कार के साथ मजाकिया विपरीतता दिखाता है। जहां नोबेल विजेता को स्वर्ण पदक और 11 मिलियन स्वीडिश क्रोनर मिलते हैं, वहीं इग नोबेल विजेता को सिर्फ 10 ट्रिलियन जिम्बाब्वेयन डॉलर का एक नोट मिलता है- जिसकी कीमत महज 40 अमेरिकी सेंट है!

भारतीय वैज्ञानिकों की विजय का सफर

इंजीनियरिंग डिज़ाइन कैटेगरी में पुरस्कृत हुए भारतीय वैज्ञानिकों ने साबित किया कि जूते की रैक में रखे बदबूदार जूते उस रैक के पूरे अनुभव को कैसे प्रभावित करते हैं। यह अनुसंधान (जूते की बदबू रिसर्च ) सुनने में हास्यास्पद लगे, मगर एर्गोनॉमिक्स और यूजर एक्सपीरियंस की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है।

समारोह में सिर्फ एक मिनट!

जहां नोबेल विजेता को स्टॉकहोम की स्वीडिश एकेडमी में विस्तृत व्याख्यान देने का मौका मिलता है, वहीं इग नोबेल का समारोह बोस्टन, मैसाचुसेट्स में होता है और विजेताओं को अपनी उपलब्धि बताने के लिए केवल 60 सेकंड मिलते हैं!

2025 के अन्य दिलचस्प विजेता

इस साल के इग नोबेल पुरस्कार में कई रोचक अनुसंधान शामिल हुए:

  • जीव विज्ञान में सबसे अनोखी खोज: जापानी वैज्ञानिक तोमोकी कोजिमा और उनकी टीम ने दिखाया कि जेब्रा जैसी धारियों से पेंट की गई गायों को मक्खियां कम काटती हैं।

  • मनोविज्ञान की चौंकाने वाली रिसर्च: पोलैंड और ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने पाया कि नार्सिसिस्ट लोग जब सुनते हैं कि वे बुद्धिमान हैं तो उनका आत्म-सम्मान और भी बढ़ जाता है।

  • शांति पुरस्कार में शराब की भूमिका: नीदरलैंड्स, यूके और जर्मनी के शोधकर्ताओं ने साबित किया कि मध्यम मात्रा में शराब पीने से विदेशी भाषा बोलने की क्षमता में सुधार होता है।

  • पोषण विज्ञान में छिपकली का पिज्जा प्रेम: चार देशों के वैज्ञानिकों ने दिखाया कि इंद्रधनुषी छिपकलियां अलग-अलग तरह के पिज्जा का स्वाद लेना सीख जाती हैं।

दुनिया में अकेला ऐसा वैज्ञानिक

साइंस की दुनिया में एक अनूठा रिकॉर्ड यूके के मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी के आंद्रे गीम के नाम दर्ज है। वे एकमात्र व्यक्ति हैं जिन्होंने इग नोबेल और नोबेल दोनों पुरस्कार जीते हैं।
2000 में उन्हें मेंढक को चुंबकीय क्षेत्र में तैराने के लिए इग नोबेल मिला था। दस साल बाद, 2010 में ग्राफीन पर महत्वपूर्ण खोजों के लिए उन्हें असली नोबेल पुरस्कार मिला।

विज्ञान में हास्य की जरूरत

एनल्स ऑफ इंप्रोबबल रिसर्च मैगजीन द्वारा आयोजित ये पुरस्कार दिखाते हैं कि विज्ञान सिर्फ गंभीर विषय नहीं है। छोटे-छोटे, रोजमर्रा के विषयों पर अनुसंधान भी नवाचार और जिज्ञासा को बढ़ावा देते हैं।

भारतीय वैज्ञानिकों की यह जीत साबित करती है कि देसी जुगाड़ और वैज्ञानिक सोच का मेल कमाल का होता है। जूते की बदबू जैसे आम मुद्दे भी एर्गोनॉमिक्स और डिज़ाइन की नई दिशाएं खोल सकते हैं।

स्रोत संदर्भ:

Science Magazine: Official Ig Nobel Prize Website

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