दीपोत्सव के चौथे दिन गोवर्धन पूजा का विशेष स्थान है। यह पूजा मुख्य रूप से दीपावली के अगले दिन होती है। इसे अन्नकूट पूजा के नाम से भी जाना जाता है। गोवर्धन पूजा भगवान श्रीकृष्ण की कृपा और प्रकृति के प्रति सम्मान का प्रतीक है।
गोवर्धन पूजा का महत्व
गोवर्धन पूजा प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षण का प्रतीक है। इस दिन लोग गोवर्धन पर्वत और गायों की पूजा करते हैं, जो ग्रामीण जीवन और कृषि के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। यह पर्व हमें प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करने और इसे संरक्षित रखने का संदेश देता है। साथ ही, यह भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति और उनके द्वारा दिए गए मार्गदर्शन का सम्मान भी है।
गोवर्धन पूजा की कथा
गोवर्धन पूजा की कथा के अनुसार, एक बार इंद्र देव ने व्रजवासियों पर वर्षा करके कुपित हो गए थे। उस समय भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर पूरे गांव को वर्षा से बचाया। इसके बाद, इंद्र ने अपनी भूल स्वीकार की और व्रजवासियों के साथ भगवान श्रीकृष्ण की महिमा को समझा। तभी से इस दिन गोवर्धन पूजा कर भगवान श्रीकृष्ण का आभार प्रकट किया जाता है।
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गोवर्धन पूजा विधि
गोवर्धन पूजा के दिन विशेष प्रकार से पूजा की जाती है। सबसे पहले गोबर से गोवर्धन पर्वत और भगवान श्रीकृष्ण की आकृति बनाएं। उन्हें फूल, चावल, हल्दी, कुमकुम और वस्त्र अर्पित करें। साथ में गोवर्धन पर्वत के प्रतीक के रूप में अनाज, भोजन और मिठाइयां रखें। इसके बाद, गायों और बैलों को सजाकर उनकी पूजा की जाती है। गोवर्धन पूजा के बाद अन्नकूट का आयोजन किया जाता है जिसमें भगवान को 56 प्रकार के भोग लगाए जाते हैं।
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पूजा की सामग्री
- गोवर्धन पूजा में निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होती है।
- गोबर (गोवर्धन पर्वत बनाने के लिए)
- फूल, रोली, चावल, कुमकुम, हल्दी
- दीपक, धूप, कपूर, गंगाजल
- गायों को सजाने के लिए रंग, फूल माला
- मिठाइयां, 56 प्रकार का भोग (अन्नकूट), ताजे फल और अनाज
पूजा मंत्र
गोवर्धन पूजा में निम्नलिखित मंत्रों का उच्चारण किया जाता है।
- गोवर्धन पूजा मंत्र: "ॐ गोवर्धन धराधाराय नमः।"
- श्रीकृष्ण मंत्र: "ॐ श्रीं कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने।
- प्रणतः क्लेशनाशाय गोवर्धनाय नमो नमः॥"
गोवर्धन पूजा से भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में समृद्धि, सुख और शांति का संचार होता है। साथ ही, इस पूजा से पर्यावरण और कृषि के प्रति आभार व्यक्त किया जाता है।
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