कभी संसद की कैंटीन में 50 पैसे में मिलती थी थाली, अब इतने हो गए दाम

संसद में जब से कैंटीन चलना शुरू हुई, तब से ही उसमें लगातार बदलाव आते रहे। एक समय था जब कैंटीन में थाली की कीमत मात्र 50 पैसे थी लेकिन, अब यहां मिलने वाले भोजन की कीमतें कई गुना ज्यादा बढ़ गई है।

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Dr Rameshwar Dayal
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काफी पुरानी बात है। भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC) के पत्रकारिता के छात्रों को संसद की कार्यवाही दिखाने के लिए भेजा गया। इन छात्रों में मैं भी था। हमने लोकसभा का सेशन देखा और रिपोर्टिंग का कुछ आइडिया सीखा। लेकिन हमारा मन तो संसद की कैंटीन पर लगा हुआ था। ब्रेक में हम पांच छात्रों ने भरपूर भोजन निपटाया। वेज-नॉनवेज खूब लपेटा लेकिन बिल आया मात्र 25 रुपए। संसद के पिछले सेशन में मैं फिर से कैंटीन में गया था। वहां खाना एक बार फिर खाया, खूब आनंद आया लेकिन बिल कई गुना ज्यादा देना पड़ा। कारण यह है कि वर्तमान सरकार ने सस्ती कैंटीन की अवधारणा ही खत्म कर दी है। हर खाने के दाम बढ़ा दिए गए हैं, लेकिन क्वालिटी शानदार है। सरकार ने कैंटीन को दी जाने वाली सब्सिडी बंद कर दी है, जिसके कारण संसद की कैंटीन अब सस्ती नहीं रही। 

कैंटीन की सब्सिडी को लेकर काफी लानत-मलामत हुई थी

असल में केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार आने के बाद देशवासियों के टारगेट पर संसद की कैंटीन आ गई थी। लोगों ने सोशल मीडिया पर संसद की कैंटीन के खिलाफ जबरदस्त अभियान छेड़ा था और पूछा था कि जब सांसदों को बेहिसाब सुविधाएं दी जा रही हैं तो फिर उन्हें भोजन सस्ता क्यों मिले। जिसके बाद कैंटीन को दी जाने वाली सब्सिडी में कुछ कटौती कर दी गई। वैसे वहां मिलने वाला भोजन अभी भी आम रेस्तरां से सस्ता है। लेकिन सब्सिडी खत्म करने का एक साइड इफेक्ट यह पड़ा है कि संसद के स्टाफ, सुरक्षा कर्मियों, पत्रकारों आदि को भी बढ़े दामों पर खाना मिलता है। आइए हम आपको बताते हैं भारतीय संसद के कैंटीन का इतिहास और नए-पुराने मेन्यू की जानकारी। 

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आजादी के बाद से ही संचालित है संसद की कैंटीन 

देश की आजादी के बाद जब पहली संसद बैठी तो तभी से ही वहां छोटी और परंपरागत कैंटीन चला करती थी। तब संसद का स्टाफ ही कैंटीन को चलाता था। कहा जाता है कि पुराने दौर में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी कैंटीन में जब-तब खाना खाने आ जाते थे। प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव भी इस कैंटीन में आते थे।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस कैंटीन के भोजन का स्वाद चख चुके हैं। लोकसभा सूत्रों के अनुसार 1950 और 1960 के दशक में संसद कैंटीन में भोजन की कीमतें बहुत कम थीं। तब एक शाकाहारी थाली की कीमत मात्र 50 पैसे थी। इसके अलावा चाय, नाश्ते और दूसरे खाने की कीमतें भी बहुत कम थीं। सांसदों, विजिटर्स, संसद के कर्मचारियों के अलावा पत्रकारों को भी सस्ता भोजन उपलब्ध था। सत्तर और अस्सी के दशक में कैंटीन की सब्सिडी कुछ कम की गई, लेकिन भोजन बहुत महंगा तब भी नहीं हुआ था। तब शाकाहारी थाली करीब 30 रुपए तो चिकन करी 50 रुपए में उपलब्ध थी। दो रुपए में एक रोटी मिल जाती थी। 

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लगातार बदलाव होते रहे कैंटीन और मेन्यू के 

संसद में जब से कैंटीन चलना शुरू हुई, तब से ही उसमें लगातार बदलाव आते रहे। ईंधन के तौर पर पहले कोयले की अंगीठी प्रयोग में लाई जाती थी। साठ के दशक में एलपीजी से खाना बनाया जाने लगो। कैंटीन को पेशेवर तरीके से चलाने के लिए इसकी व्यवस्था में बदलाव हुए वर्ष 1968 से भारतीय रेलवे के उत्तरी जोन के आईआरसीटीसी ने कैंटीन का काम संभाल लिया। ये वो दौर था जब कैंटीन बहुत सस्ती थी और खानपान के लिए तमाम आइटम वेजीटेरियन से लेकर नॉन वेज तक उपलब्ध रहते थे। अब नई संसद में शिफ्ट होने से मैन्यू में भी काफी बदलाव कर दिए गए हैं। नई इमारत में आधुनिक कैंटीन है, जिसमें बेहतर सुविधाओं के साथ गुणवत्ता वाला भोजन उपलब्ध है। इस नई कैंटीन में विभिन्न प्रकार के व्यंजन, जैसे उत्तर भारतीय, दक्षिण भारतीय कॉन्टिनेंटल भोजन की सुविधा उपलब्ध है। अब इसे चलाने की जिम्मेदारी भारतीय पर्यटन विकास निगम (ITDC) और अन्य सरकारी एजेंसियों के पास है। 

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कब खत्म की गई सब्सिडी 

जब वर्ष 2021 में कैंटीन चलाने की जिम्मेदारी आईटीडीसी को सौंपी गई, तब से सस्ते भोजन के लिए दी जाने वाली सब्सिडी को रोकने की प्रक्रिया भी शुरू हो गई। फिलहाल जो नए रेट हैं, उनमें समोसा 10 रुपए, आलू बोंडा 10 रुपए, दही 10 रुपए, कचौरी 15 रुपए, ऑमलेट 20 रुपए, उपमा 25 रुपए, सूप 25 रुपए, खीर 30 रुपए, डोसा 30 रुपए, लेमन राइस 30 रुपए, पनीर पकोड़ा 50 रुपए, मटन करी 125 रुपए, मटन बिरयानी 150 रुपए में मिलती है। हालांकि बाजार की तुलना में अब भी यह भोजन अपेक्षाकृत सस्ता है। सूत्र बताते है कि सब्सिडी खत्म होने के बाद लोकसभा सचिवालय को हर साल करीब 8 करोड़ रुपए की बचत होने का अनुमान है। वैसे कैंटीन का हर साल करीब 20 करोड़ रुपए का बिल आता है। इस कैंटीन के तीन किचन हैं, एक पार्लियामेंट बिल्डिंग में, एक लाइब्रेरी में और एक एनेक्सी में संचालित है। सरकार जो सब्सिडी देती है, इसमें से कैंटीन स्टाफ को भी वेतन दिया जाता है। 

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नए मेन्यू में मिलेट व्यंजन भी और नई व्यवस्था भी 

सूत्र बताते हैं कि कुछ साल पहले इस कैंटीन का मैन्यू बहुत छोटा था। अधिकतर भोजन उत्तर भारतीय ही परोसा जाता था। जब राज्यों के विशेष व्यंजन भी मेन्यू में शामिल किए गए हैं। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर मेन्यू में मिलेट व्यंजन भी जोड़े गए हैं। अब संसद में एक मुख्य किचन है। यहां खाना बनकर तैयार होता है और संसद परिसर में बनाई गई पांच कैंटीनों में उन्हें ले जाया जाता है। जहां खाना गर्म करने की पूरी व्यवस्था है। संसद की कैंटीन में भोजन की प्रक्रिया सुबह से ही शुरू हो जाती है। सुबह से पर्याप्त मात्रा में सब्जियां, दूध, मीट और अन्य जरूरी सामान कैंटीन में पहुंच जाते हैं। कैंटीन स्टाफ अपना काम शुरू कर देता है। कैंटीन में कंप्यूटर प्रिंटर से लेकर फर्नीचर और चूल्हे से लेकर खाने और परोसने से जुड़ा हर सामान लोकसभा सचिवालय द्वारा उपलब्ध कराया जाता है। भोजन की क्वालिटी कंट्रोल की जिम्मेदार खास शेफों को दी गई है। 

कैंटीन चलाने की व्यवस्था कैसी है

कैंटीन में भोजन बनाने के लिए जरूरी खाद्य सामग्री जैसे अनाज, दलहन, तेल, घी, मसाले आदि की खरीद केंद्रीय भंडार से की जाती है तो सब्जी, फल संसद परिसर के करीब स्थित मदर डेयरी से आते हैं। मीट के लिए कैंटीन का तय वेंडर होता है। वहीं दूध दिल्ली दूध स्कीम के जरिए रोज वहां आता है। बाहर से आने वाली खाद्य सामानों की संसद परिसर के गेट पर कड़ी चेकिंग होती है। उसे एक्सरे मशीनों की जांच से निकलना होता है। जब संसद का सत्र चल रहा होता है तो कैंटीन में करीब 5000 लोगों का खाना पकता है। खाने को आमतौर पर 11 बजे तक तैयार कर दिया जाता है। आम दिनों यहां एक चौथाई लोगों के लिए भोजन तैयार किया जाता है।

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