डॉ. रामेश्वर दयाल @ DELHI
भारत के सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) ने जनप्रतिनिधियों की कार्यप्रणाली को लेकर एक कड़ा फैसला सुनाया है। नए आदेश के अनुसार जो सांसद रकम लेकर सदन (संसद) ( Parliament ) में भाषण ( Speech ) या वोट ( Vote ) देते हैं तो उनके खिलाफ मुकदमा चलाया जाएगा। अभी तक सांसदों को ऐसे आरोपों से मुक्ति मिलती रही है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने इस मसले पर एक पुराने आदेश को पलटते हुए जनप्रतिनिधियों को भ्रष्टाचार ( Curreption ) के दायरे में ला दिया है।
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ऐसे समझें पूरे मामले को
इस महत्वपूर्ण खबर को समझने से पहले थोड़ा सा पुराने आदेश को समझ लें। असल में वर्ष 1998 को केंद्र की नरसिम्हा राव सरकार के समय संसद में ऐसा ही मामला आया था। तब आरोप लगे थे कि सरकार बचाने के लिए सांसदों को मोटी रकम दी गई। बात सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने 3:2 के बहुमत से यह निर्णय दिया था कि इस मामले पर जनप्रतिनिधियों पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। तब कहा गया था कि संसद को विशेषाधिकार प्राप्त है इसलिए न्यायपालिका वहां हुए मसलों पर दखल नहीं दे सकती है। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने पुराने फैसले को पलट दिया है और कहा है कि अब सांसद के अलावा विधायक भी सदन में मतदान के लिए रिश्वत लेकर मुकदमे से बच नहीं सकते हैं। भारत के मुख्य न्यायाधीश ( CJI ) की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस मसले पर सहमति से फैसला दिया और कहा कि विधायिका का कोई सदस्य अगर भ्रष्टाचार या रिश्वतखोरी में पाया जाता है तो इससे सार्वजनिक जीवन में उसकी ईमानदारी पर सवाल खड़े होंगे। चूंकि मसला विशेष था, इसलिए चीफ जस्टिस के बैंच ने इस पर विस्तार से विचार-विमर्श करने के बाद कहा कि उसने विवाद के सभी पहलुओं पर स्वतंत्र व निष्पक्ष रूप से निर्णय लिया है कि क्या सांसदों को ऐसे मसले पर छूट मिलनी चाहिए।
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रिश्वतखोरी में किसी प्रकार की छूट नहीं
बेंच ने बहुमत से इस तरह की छूट पर असहमति जताई और कहा कि बेंच इसे बहुमत से खारिज करती है। बेंच के अनुसार नरसिम्हा राव सरकार के मसले में बहुमत से जो निर्णय लिया गया था, उससे सावर्जनिक जीवन में लोगों को रिश्वत लेने से छूट मिलती है, जिसका असर सार्वजनिक जीवन पर पड़ता है। बेंच के अनुसार संविधान की धारा 105 के तहत रिश्वतखोरी में किसी भी प्रकार की छूट का प्रावधान नहीं है।
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