जापान ( Japan ) में कोरोना के बाद अब एक नई खतरनाक बीमारी सामने आई है। इसमें बैक्टीरिया मरीज के शरीर का मांस खाने लगता है। बीमारी का नाम स्ट्रेप्टोकॉकल टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम ( streptococcal toxic shock syndrome ) है। इस बीमारी से 48 घंटे में मरीज की मौत हो जाती है। जापान में अब तक इसके 977 केस सामने आ चुके हैं। यह बीमारी ग्रुप ए स्ट्रेप्टोकॉकस (GAS) बैक्टीरिया की वजह से होती है। यह बच्चों और बुजुर्गों के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक है। इससे संक्रमित लोगों में सबसे पहले सूजन और गले में खराश होती है।
कुछ घंटे में मौत हो सकती है मौत
शरीर में दर्द, बुखार, लो बीपी, नेक्रोसिस ( शरीर के टिशू मर जाते हैं), सांस लेने में समस्या, ऑर्गन फेलियर जैसी समस्याएं भी होती हैं। इसके कुछ ही घंटों बाद मौत हो जाती है। स्ट्रेप्टोकोकस बीमारी अब यूरोप के 5 देशों तक फैल चुकी है। इनमें ब्रिटेन, फ्रांस, आयरलैंड, नीदरलैंड और स्वीडन शामिल है। यहां इस बैक्टीरिया ने सबसे ज्यादा बच्चों को अटैक किया है।
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2500 मरीज, मृत्यु दर 30% सालभर में आ सकते हैं
टोक्यो की महिला डॉक्टर केन किकुची के मुताबिक पहले मरीज के शरीर खासकर पैर में सूजन दिखती है। फिर कुछ घंटों बाद यह पूरे शरीर में फैल जाती है। इसके बाद 48 घंटों के भीतर मरीज की मौत हो जाती है। किकुची ने लोगों से बार-बार हाथ धोने और खुले घावों का तुरंत इलाज करने की अपील की है।
यह बीमारी जिस दर से बढ़ रही है, उसके बाद अंदाज लगाया गया है कि आने वाले समय में जापान में हर साल इस बीमारी के 2500 मामले आ सकते हैं। वहीं इससे मृत्यु दर 30% तक पहुंच सकती है।
बाजार में वैक्सीन मौजूद
डॉक्टरों के मुताबिक बीमारी से बचने के लिए इसकी जल्दी पहचान, देखभाल और तुरंत इलाज जरूरी है। STSS से निपटने के लिए बाजार में J8 नाम की वैक्सीन भी मौजूद है, जो शरीर में एंटीबायोटिक्स बनाती है। यह बीमारी एक व्यक्ति से दूसरे में फैलती है।
पब्लिक हेल्थ इंटेलेक्चुअल डॉ. जगदीश हीरेमठ का कहना है कि यह बैक्टीरिया शरीर में जहरीला पदार्थ पैदा करता, जिससे जलन होने लगती है। फिर यह शरीर में टिशू को डैमेज करते हैं, जिससे सूजन फैलने लगती है। इसके बाद टिशू मरीज के मांस को खाने लगते है, जिससे तेज दर्द होने लगता है।
जापान के डॉक्टर हायरमैथ ने बताया कि देश में इस बीमारी से लड़ने के लिए हेल्थ अथॉरिटीज लगातार हालात का जायजा ले रही है। लोगों को जागरूक करने के लिए कैंपेन चलाए जा रहे हैं। इसमें इस बीमारी की गंभीरता और खतरों के बारे में जागरुक किया जा रहा है।