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पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा तैयार की गई इनहाउस रिपोर्ट में दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा को गंभीर अनियमितताओं का दोषी ठहराया गया है। उनसे इस्तीफा देने के लिए कहा गया था लेकिन जब उन्होंने इस्तीफा देने से इनकार किया, तो CJI ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर उन्हें पद से हटाने की सिफारिश की थी।
संसद में प्रस्ताव
सूत्रों के अनुसार, केंद्र सरकार मानसून सत्र में उनके खिलाफ संसद में प्रस्ताव ला सकती है। यदि वे स्वेच्छा से इस्तीफा देते हैं, तो उन्हें रिटायर्ड जज के लाभ जैसे पेंशन मिल सकते हैं। लेकिन यदि संसद से हटाया गया, तो कोई लाभ नहीं मिलेगा।
संविधान क्या कहता है?
अनुच्छेद 217 के अनुसार, हाईकोर्ट का जज राष्ट्रपति को साइन किया हुआ त्यागपत्र दे सकता है।वह चाहें तो संसद के किसी भी सदन में मौखिक इस्तीफा भी मान्य होता है।
स्टोर रूम में मिली जली हुई नकदी
14 मार्च 2025 को दिल्ली के लुटियंस स्थित सरकारी बंगले में आग लगी। फायर सर्विस को बोरियों में आधे जले हुए 500 रुपए के नोट मिले। घटना के बाद जस्टिस वर्मा को इलाहाबाद हाईकोर्ट ट्रांसफर कर दिया गया, लेकिन कोई न्यायिक काम नहीं सौंपा गया। स्टोर रूम का उपयोग जस्टिस वर्मा का परिवार कर रहा था।
इनहाउस रिपोर्ट में क्या कहा गया
जस्टिस संजीव खन्ना ने 22 मार्च को तीन न्यायाधीशों का पैनल बनाया जिसमें पंजाब, हिमाचल और कर्नाटक के हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस शामिल थे। 4 मई को सौंपी गई रिपोर्ट में वर्मा को दोषी ठहराया गया। जांच में 50 से ज्यादा गवाहों से पूछताछ की गई। इलेक्ट्रॉनिक सबूत और दिल्ली पुलिस कमिश्नर व फायर चीफ के बयान के बाद रिपोर्ट में कहा गया कि आग लगने के बाद नकदी हटाई गई थी।
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सिंभावली शुगर मिल केस
2018 में न्यायाधीश वर्मा का नाम ₹97.85 करोड़ के सिंभावली शुगर मिल घोटाले में आया था। उस वक्त वे कंपनी के नॉन-एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर थे। CBI ने एफआईआर दर्ज की थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 2024 में जांच बंद करने का आदेश दिया।
जस्टिस वर्मा कैश कांड: टाइमलाइन
14 मार्च – रात करीब 11:35 बजे दिल्ली के लुटियंस इलाके में स्थित जस्टिस वर्मा के सरकारी आवास में आग लगने की सूचना मिली। मौके पर पहुंची फायर ब्रिगेड टीम को स्टोर रूम में 500 रुपए के अधजले नोटों की 4–5 बोरियाँ बरामद हुईं।
22 मार्च – तत्कालीन CJI संजीव खन्ना ने इस गंभीर मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया। इसके साथ ही, दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश द्वारा प्रस्तुत शुरुआती रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर प्रकाशित कर दिया गया।
24 मार्च – सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जस्टिस वर्मा को इलाहाबाद हाईकोर्ट में स्थानांतरित करने की सिफारिश की। इस सिफारिश पर इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने सार्वजनिक रूप से विरोध जताया।
5 अप्रैल – जस्टिस वर्मा ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में बतौर न्यायाधीश पदभार ग्रहण किया, हालाँकि उन्हें कोई न्यायिक कार्य सौंपा नहीं गया।
3–4 मई – जांच समिति ने अपनी अंतिम रिपोर्ट CJI को सौंप दी। इसमें आरोपों को सही ठहराते हुए जस्टिस वर्मा को दोषी घोषित किया गया।
8 मई – तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को पत्र लिखकर जज के ख़िलाफ़ महाभियोग प्रस्ताव की सिफारिश की।
22 मार्च – तत्कालीन CJI संजीव खन्ना ने इस गंभीर मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया। इसके साथ ही, दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश द्वारा प्रस्तुत शुरुआती रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर प्रकाशित कर दिया गया।
24 मार्च – सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जस्टिस वर्मा को इलाहाबाद हाईकोर्ट में स्थानांतरित करने की सिफारिश की। इस सिफारिश पर इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने सार्वजनिक रूप से विरोध जताया।
5 अप्रैल – जस्टिस वर्मा ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में बतौर न्यायाधीश पदभार ग्रहण किया, हालाँकि उन्हें कोई न्यायिक कार्य सौंपा नहीं गया।
3–4 मई – जांच समिति ने अपनी अंतिम रिपोर्ट CJI को सौंप दी। इसमें आरोपों को सही ठहराते हुए जस्टिस वर्मा को दोषी घोषित किया गया।
8 मई – तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को पत्र लिखकर जज के ख़िलाफ़ महाभियोग प्रस्ताव की सिफारिश की।
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महाभियोग की प्रक्रिया
- भारत में किसी उच्च न्यायालय या सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश को पद से हटाने की प्रक्रिया बेहद कठिन और संविधान द्वारा संरक्षित है। महाभियोग प्रस्ताव संसद के किसी भी सदन — लोकसभा या राज्यसभा — में पेश किया जा सकता है।
- यदि यह प्रस्ताव राज्यसभा में लाया जाता है, तो कम से कम 50 सांसदों के हस्ताक्षर आवश्यक होते हैं। वहीं, लोकसभा में इसे पेश करने के लिए 100 से अधिक सांसदों का समर्थन जरूरी होता है।
- जब यह प्रस्ताव सदन में रखा जाता है और दो-तिहाई बहुमत से पारित हो जाता है, तो लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) से जांच समिति गठित करने का अनुरोध करते हैं।
यह तीन सदस्यीय जांच समिति होती है, जिसमें शामिल होते हैं:
- सुप्रीम कोर्ट के एक सिटिंग जज
- किसी हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश
- सरकार द्वारा नामित एक वरिष्ठ कानूनी विशेषज्ञ या न्यायविद
- यह समिति आरोपों की जांच कर रिपोर्ट तैयार करती है, जिसके आधार पर आगे की कार्रवाई तय होती है।
करियर और प्रोफाइल
जन्म: 6 जनवरी 1969
जन्मस्थान: इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश
शैक्षणिक पृष्ठभूमि:
स्नातक – हंसराज कॉलेज
बी.कॉम (ऑनर्स) – दिल्ली विश्वविद्यालय
विधि स्नातक (LLB) – रीवा विश्वविद्यालय
जन्मस्थान: इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश
शैक्षणिक पृष्ठभूमि:
स्नातक – हंसराज कॉलेज
बी.कॉम (ऑनर्स) – दिल्ली विश्वविद्यालय
विधि स्नातक (LLB) – रीवा विश्वविद्यालय
करियर
8 अगस्त 1992: वकालत की शुरुआत की।
2006: इलाहाबाद हाईकोर्ट में विशेष अधिवक्ता (Special Advocate) नियुक्त हुए।
2012-2013: उत्तर प्रदेश सरकार के लिए मुख्य स्थायी अधिवक्ता (Chief Standing Counsel) के रूप में सेवाएं दीं।
अगस्त 2013: इलाहाबाद हाईकोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता (Senior Advocate) का दर्जा प्राप्त हुआ।
13 अक्टूबर 2014: इलाहाबाद हाईकोर्ट में अतिरिक्त न्यायाधीश (Additional Judge) नियुक्त हुए।
1 फरवरी 2016: स्थायी न्यायाधीश (Permanent Judge) के रूप में नियुक्ति हुई।
11 अक्टूबर 2021: दिल्ली हाईकोर्ट में स्थानांतरित होकर न्यायाधीश बने।
जस्टिस वर्मा के इस्तीफ़े से जुड़ा यह मामला न्यायपालिका की गरिमा और जवाबदेही से जुड़ा है। उच्च न्यायालय के जज पर लगे गंभीर आरोप, CJI की सिफारिश और संसद प्रस्ताव की चर्चा इस बात को दर्शाते हैं कि न्यायपालिका में पारदर्शिता और ईमानदारी सबसे अहम हैं। आने वाले समय में यह मामला कानूनी और राजनीतिक दृष्टिकोण से कई मोड़ ले सकता है।
2006: इलाहाबाद हाईकोर्ट में विशेष अधिवक्ता (Special Advocate) नियुक्त हुए।
2012-2013: उत्तर प्रदेश सरकार के लिए मुख्य स्थायी अधिवक्ता (Chief Standing Counsel) के रूप में सेवाएं दीं।
अगस्त 2013: इलाहाबाद हाईकोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता (Senior Advocate) का दर्जा प्राप्त हुआ।
13 अक्टूबर 2014: इलाहाबाद हाईकोर्ट में अतिरिक्त न्यायाधीश (Additional Judge) नियुक्त हुए।
1 फरवरी 2016: स्थायी न्यायाधीश (Permanent Judge) के रूप में नियुक्ति हुई।
11 अक्टूबर 2021: दिल्ली हाईकोर्ट में स्थानांतरित होकर न्यायाधीश बने।
जस्टिस वर्मा के इस्तीफ़े से जुड़ा यह मामला न्यायपालिका की गरिमा और जवाबदेही से जुड़ा है। उच्च न्यायालय के जज पर लगे गंभीर आरोप, CJI की सिफारिश और संसद प्रस्ताव की चर्चा इस बात को दर्शाते हैं कि न्यायपालिका में पारदर्शिता और ईमानदारी सबसे अहम हैं। आने वाले समय में यह मामला कानूनी और राजनीतिक दृष्टिकोण से कई मोड़ ले सकता है।
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