जानें किस शहर में बना है गोरैया का स्मारक, जहां पुलिस की गोली से हुई थी मौत, क्यों इनकी आबादी हो रही कम?

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Jitendra Shrivastava
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जानें किस शहर में बना है गोरैया का स्मारक, जहां पुलिस की गोली से हुई थी मौत, क्यों इनकी आबादी हो रही कम?

BHOPAL. विश्वभर में गौरैया दिवस आज 20 फरवरी को मनाया जा रहा है। यह दिवस लोगों में गौरेया के प्रति जागरुकता बढ़ाने और उसके संरक्षण के लिए मनाया जाता है। बढ़ते प्रदूषण सहित कई कारणों से गौरैया की संख्या में काफी कमी आई है और इनके अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। यहां जानें इस खास दिवस का इतिहास और क्या है इस दिन का महत्व...



विश्व गौरैया दिवस 2023 की थीम



इस साल विश्व गौरैया दिवस 2023 की थीम है 'आई लव स्पैरो।' विश्व गौरैया दिवस की स्थापना द नेचर फॉरएवर सोसाइटी के संस्थापक मोहम्मद दिलावर ने की थी। उन्होंने जैव विविधता फोटो प्रतियोगिता, वार्षिक स्पैरो अवार्ड्स, प्रोजेक्ट सेव अवर स्पैरो और कॉमन बर्ड मॉनिटरिंग ऑफ इंडिया कार्यक्रम सहित कई परियोजनाएं शुरू कीं। पहला विश्व गौरैया दिवस वर्ष 2010 में आयोजित किया गया था। 2011 में, वर्ल्ड स्पैरो अवार्ड्स की स्थापना की गई थी। यह पुरस्कार उन व्यक्तियों को मान्यता देता है जिन्होंने पर्यावरण संरक्षण और सामान्य प्रजातियों के संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।



वो गौरैया जो दंगों में पुलिस की गोली का शिकार हुई थी



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बात 1974 की है। उन दिनों गुजरात में नवनिर्माण आंदोलन जोरों पर था। आर्थिक संकट और भ्रष्टाचार के खिलाफ ये छात्रों और मध्य वर्ग का सामाजिक आंदोलन था। इस आंदोलन में हिंसा भी हुई और हालात इतने बिगड़ गए कि इसमें 100 लोग मारे गए थे। अहमदाबाद के पुराने शहर में लोग उस वाकये को अपनी तरह से याद करते हैं। उन्होंने एक गौरैया की याद में एक स्मारक बनवाया। ये वही गौरैया थी जो दंगों में पुलिस की गोली का शिकार हुई थी। गौरैया का ये स्मारक अहमदाबाद के पुराने शहर के 'ढल नी पोल' इलाके में देखा जा सकता है। स्मारक के बाहर लगे पत्थर पर लिखा है, '1974 के दंगों के दौरान दो मार्च, शाम 5:25 बजे एक भूखी गौरैया पुलिस फायरिंग का शिकार हो गई थी।' 'ढल नी पोल' इलाके के लोग इस स्मारक की आज भी देखभाल करते हैं।



लोगों की बदलती जीवन शैली से गौरैया के जीवन में आई दिक्कतें 



गौरैया एक ऐसी चिड़िया है, जो इंसान के घर आंगन में घोंसला बनाकर उसके सबसे करीब रहती है, लेकिन शहरों के विस्तार और हमारी बदलती जीवन शैली से अब गौरैया के रहन सहन और भोजन में कई दिक्कतें आ रही हैं। यही वजह है कि शहरों में अब गौरैया की आबादी कम होती जा रही है।




  • पुराने गांवों के खेत खलिहान, तालाब और बाग बगीचे कंक्रीट के जंगल बन गए।


  • बची-खुची हरियाली जमीन और सड़कों के चौड़ीकरण, पक्की टाइल्स और पत्थर के पार्कों में बदल गई।

  • पेड़ों की जगह बिजली, टेलीफोन के खम्भों, मोबाइल टावर्स, बहुमंज़िली इमारतों ने ले ली।

  • इंसान ने बढ़ती आबादी के लिए तो जगह बनाई, लेकिन इसके चलते पशु-पक्षी बेघर हो गए और उनका दाना-पानी छिन गया।

  • गौरैया आबादी के अंदर रहने वाली चिड़िया है, जो अक्सर पुराने घरों के अंदर, छप्पर या खपरैल अथवा झाड़ियों में घोंसला बनाकर रहती हैं।

  • घास के बीज, दाना और कीड़े-मकोड़े गौरैया का मुख्य भोजन हैं, जो पहले उसे घरों में ही मिल जाता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है।



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    कीटनाशक और प्रदूषण



    शहरी विस्तार की योजना बनाने वाले लोग पेड़-पौधे, घास-फूस और वनस्पति खत्म करते जा रहे हैं। जो नए पेड़ लग रहे हैं न उनमें छाया है, न फल हैं। ये दूरदर्शिता वाली योजनाएं नहीं हैं। हमारी जीवन शैली में बदलाव ने गौरैया के अस्तित्व को खतरे में डाल दिया है। पहले घरों में चिड़ियों को जो खाना मिलता था, वह अब उस तरह से नहीं मिल पाता है। ''पहले गांव में आंगन होता था। आंगन में अनाज धुलते-सूखते थे। जो शहरी घर हैं, उनमें न आंगन हैं, न अनाज धुलते-सूखते हैं। आटा बाजार से पैकेट में ले आते हैं। ‘आजकल केमिकल्स और कीटनाशक दवाओं के बढ़ते प्रयोग और प्रदूषण भी प्रभाव डाल रहे हैं। कई अन्य जानकार लोग कहते हैं कि गौरैया चिड़िया बहुत संवेदनशील पक्षी हैं और मोबाइल फोन तथा उनके टावर्स से निकलने वाले इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन से भी उसकी आबादी पर असर पड़ रहा है।



    गौरैया से जुड़े कुछ रोचक तथ्य



    गौरैया का वैज्ञानिक नाम पासर डोमेस्टिकस और सामान्य नाम हाउस स्पैरो है। इसकी ऊंचाई 16 सेंटीमीटर और विंगस्पैन 21 सेंटीमीटर होते हैं। गौरैया का वजन 25 से 40 ग्राम होता है। गौरैया अनाज और कीड़े खाकर जीवनयापन करती है। शहरों की तुलना में गांवों में रहना इसे ज्यादा पसंद है।



    कौन है गौरैया?



    गौरैया का वैज्ञानिक नाम पासर डोमेस्टिकस है। यह पासेराडेई परिवार का हिस्सा है। विश्व के विभिन्न देशों में यह पाई जाती है। यह लगभग 15 सेंटीमीटर के होती है मतलब बहुत ही छोटी होती है। शहरों के मुकाबलों गांवों में रहना इसे अधिक सुहाता है। इसका अधिकतम वजन 32 ग्राम तक होता है। यह कीड़े और अनाज खाकर अपना जीवनयापन करती है।


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