Kolkata. पश्चिम बंगाल की मालदा जेल से चौंकाने वाली खबर सामने आई है। 104 साल के रसिक चंद्र मंडल को जेल से रिहा कर दिया गया है। वे 36 साल से जेल में बंद थे। रसिक चंद्र पर आरोप है कि उन्होंने 1988 में अपने भाई सुरेश मंडल की हत्या की थी। मामला जमीन विवाद से जुड़ा था। रसिक का अपने भाई से उपजाऊ जमीन के हिस्से को लेकर झगड़ा हुआ था। विवाद इतना बढ़ा कि रसिक ने अपने भाई सुरेश को गोली मार दी। यह हत्या उस समय एक विधवा की शिकायत पर सामने आई, जिसके बाद रसिक को गिरफ्तार किया गया और उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी।
क्यों मिली थी सजा?
1994 में ट्रायल कोर्ट ने रसिक और उनके पड़ोसी जतिन मंडल को दोषी ठहराते हुए उम्र कैद की सजा सुनाई थी। रसिक तब 68 साल के थे। बाद में उन्हें एक साल की पैरोल मिल गई, लेकिन इसके बाद जतिन की मौत हो गई। इस तरह रसिक को वापस जेल लौटना पड़ा। हालांकि, यह कहानी यहीं खत्म नहीं होती। इसके बाद इस दास्तां में कई उतार-चढ़ाव आए।
रिहाई की राह में कैसे बदल गई किस्मत?
रसिक की रिहाई के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी गई। शुरुआत में सत्र अदालत और कोलकाता हाईकोर्ट में उनकी जमानत याचिका खारिज हो गई। अंततः रसिक ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। शीर्ष अदालत ने बंगाल सरकार से रसिक की मानसिक और शारीरिक हालत के बारे में पूछा। इस पर राज्य सरकार ने रसिक को स्वस्थ करार दिया। इसके बाद 29 नवंबर 2024 को उन्हें जमानत मिल गई।
अब क्या करेंगे रसिक?
रसिक ने जेल से बाहर आने के बाद कहा, अब मैं बागवानी करूंगा। अपने नाती-पोतों के साथ समय बिताऊंगा। जेल की दिनचर्या मेरी आदत बन चुकी है। जेल में सभी परिवार की तरह थे, अब बाहर आकर सबकी याद आएगी। अब जब रसिक जेल से बाहर आ गए हैं तो सवाल उठता है कि क्या ऐसी ही और भी मामले होंगे, जिनमें न्याय की प्रक्रिया में समय व समझ की जरूरत हो ?
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