MahaShivRatri: बहुत ‘भोले’ हैं भगवान शिव, ऐसे पूजा-अर्चना करेंगे तो बहुत कुछ पा लेंगे

भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अभी से तैयारी में जुट जाएं। हम आपको बताते हैं कि महाशिवरात्रि के दिन आपने क्या करना है और क्या नहीं। भगवान शिव का प्रिय आभूषण है रुद्राक्ष। रुद्राक्ष के जन्मदाता भगवान शिव हैं।

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Dr Rameshwar Dayal
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BHOPAL. भारतीय धर्मग्रंथों ( Indian Religious Books ) के अध्ययन के अलावा धर्म से जुड़े गुरुओं और विद्वानों से बात करेंगे कि किस देव (ईश्वर) की पूजा-अर्चना कर आसानी से सुख-समृद्धि को प्राप्त कर दिया जाता है। उनका एक ही उत्तर होगा, भगवान शिव ( Lord Shiva )। असल में वह एकदम ‘भोले’ हैं और अपने भक्तों पर बहुत जल्द ही कृपा कर देते हैं। तो तैयार हो जाइए, कल महाशिवरात्रि ( Mahashivratri ) है। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अभी से तैयारी में जुट जाएं। हम आपको बताते हैं कि महाशिवरात्रि के दिन आपने क्या करना है और क्या नहीं। और हां-एक बात और, अगर अभी से ही बेलपत्र, भांग के पत्ते के अलावा धतूरे (फल) का इंतजाम भी हो जाए तो मान लीजिए कि आपने कल भगवान शिव के साक्षात कैलाश पर्वत पर ‘दर्शन’ कर लिए। 

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भोले क्यों हैं भगवान शिव

भगवान शिव आखिर ‘भोले’ क्यों हैं। यह जान लेंगे तो महाशिवरात्रि की पूजा-अर्चना का आनंद और बढ़ जाएगा। पुराणों के आख्यान और भगवान शिव से जुड़े भजनों के अनुसार उनकी छवि इतनी उदार है कि ब्रह्मा को प्रथम वेद दे दिया। भगवान विष्णु को चक्र सुदर्शन, लक्ष्मी को सुंदरता व भव्यता प्रदान की। इसके अलावा उन्होंने देव इंद्र को कामधेनु और ऐरावत हाथी दान कर दिया तो धन के देवता कुबेर को वसुधा (पृथ्वी) का अधिकारी बना दिया। इतना ही नहीं, उन्होंने विष को स्वयं पान कर लिया और देवताओं को अमृत सौंप दिया। भगवान शिव ने अपने पास कुछ नहीं रखा और जो मिला, उसे सब कुछ अर्पित करते चले गए। हम भी तो भगवान शिव के भक्त हैं, तो मान लें कि वह हमारा भी उद्धार और उपकार करेंगे। इसके लिए महाशिवरात्रि सबसे उत्तम है, इसलिए कल उनकी पूजा के लिए प्रबंध कर लें।

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इस बार बेहद खास है महाशिवरात्रि

पंचांग के अलावा मंदिरों के पुजारी आने वाले भक्तों को बता रहे हैं कि इस बार शिवरात्रि पर विशेष योग बन रहा है। इस बार त्रयोदशी व चर्तुदशी की संधि पर महाशिवरात्रि का योग है, जब भगवान शिव ने मां आदिशक्ति के साथ विवाह रचाया था। ऐसी भी मान्यता है कि इसी मध्यरात्रि को भगवान शिव का ब्रह्मा से रूद्र के रूप में अवतरण हुआ था। अब कलियुग का यही समय हमारे लिए बेहद शुभ होने जा रहा है। भारतीय कालगणना के चारों प्रहर के अनुसार भगवान शंकर की तरह मन को एकाग्र कर लें। मन में भावनाओं की गंगा बहा लें और पूजा-अर्चना में जुट जाएंगे तो आपका भविष्य जरूर उज्ज्वल हो जाएगा।

इस तरह से करें भगवान शिव का अभिषेक व पूजा-अर्चना

महाशिवरात्रि है तो सबसे पहले ठान लें कि भगवान शिव का व्रत रखना है। सुबह स्नान आदि कर भगवान शंकर के शिवलिंग पर पूजा-अर्चना के लिए पहुंच जाएं। दूध के साथ उनका अभिषेक करेंगे। अगर विशेष पंचामृत (दूध, गंगाजल, केसर, शहद आदि) से करेंगे तो ज्यादा आनंद आएगा। यह पहले पहर की पूजा है। धर्मशास्त्रियों का कहना है दूसरे पहर में दही से शिवलिंग का अभिषेक करें, तीसरे पहर में घी तो चौथे पहर में शहद से शिवलिंग का अभिषेक करना ज्यादा आनंद देगा। चूंकि भगवान मस्तमौला हैं इसलिए उन्हें मौसमी फलों विशेषकर बेर तो समर्पित करें ही, बेहद अच्छा होगा कि शिवलिंग पर भांग व बेल व बेल के पत्तों के अलावा धतूरे भी चढ़ा दें। पूरी संभावना है कि शिव प्रसन्न हो जाएंगे ओर आपके ‘भाग’ खुल जाएंगे।

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इनका त्याग करेंगे तो भोलेनाथ अवश्य प्रसन्न हो जाएंगे।

वैसे तो भगवान शिव का जल से ही अभिषेक कर देंगे तो वह प्रसन्न हो जाएंगे। लेकिन इस अवसर पर शिवलिंग की कुछ वस्तुओं आदि से पूजा नहीं करनी चाहिए। इसके लिए धार्मिक ग्रंथों में बाकायदा उदाहरण और कारण बताए गए हैं। भगवान शिव को कभी भी तुलसी के पत्ते समर्पित न करें। इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि शिवलिंग का अभिषेक शंख से न किया जाए। हल्दी भी शिवलिंग पर न रगड़ें और न ही चढ़ाएं। इसके अलावा टूटे चावलों से भी परहेज करें। ऐसा भी कहा जाता है कि भगवान शिव की पूजा करते समय केतकी, चंपा, लाल कनेर या लाल रंग के फूलों को अर्पित न करें। ऐसा भी कहा गया है कि कुमकुम-रोली और सिंदूर को भी शिवलिंग से दूर रही रखें। हमारा मानना है कि आप ऐसा कर लेंगे तो भगवान शिव आपके मन-आत्मा में झूमने लगेंगे।  

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