महाकुंभ : 1918 में बापू ने संगम में लगाई थी डुबकी, अंग्रेजों ने बंद कर दी थी रेल टिकट

1915 के हरिद्वार कुंभ में महात्मा गांधी का आगमन, रानी लक्ष्मीबाई की प्रयाग कुंभ यात्रा और कुंभ के दौरान ब्रिटिश सरकार द्वारा की गई कड़ी पाबंदी यह साबित करती हैं कि कुंभ मेला हमेशा से सामाजिक जागरूकता का एक अहम साधन रहा है।

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Vikram Jain
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हरिद्वार कुंभ में संत समुदाय से मिले थे बापू। Photograph: (the sootr)

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दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में से एक प्रयागराज महाकुंभ मेला 13 जनवरी से शुरू होने जा रहा है। प्रयागराज महाकुंभ के इतिहास पर चर्चा के साथ ही कुंभ मेले से जुड़ी कई ऐतिहासिक घटनाएं सामने आ रही है। कुंभ मेला भारत का सबसे बड़ा और प्रसिद्ध धार्मिक उत्सव न केवल एक धार्मिक अवसर है, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की महत्वपूर्ण घटनाओं का गवाह भी रहा है। 1915 के हरिद्वार कुंभ में महात्मा गांधी का आगमन, रानी लक्ष्मीबाई का प्रयाग कुंभ की यात्रा, और 1942 के कुंभ के दौरान ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा की गई कड़ी पाबंदियाँ यह साबित करती हैं कि कुंभ मेला हमेशा से सामाजिक जागरूकता का एक अहम साधन रहा है।

हरिद्वार कुंभ में संत समुदाय से मिले थे बापू

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने 1915 के हरिद्वार कुंभ में संत समुदाय से मुलाकात की थी और इसे स्वतंत्रता संग्राम का एक अहम हिस्सा माना जाता है। इस दौरान, कुंभ मेला सिर्फ धार्मिक अवसर नहीं था, बल्कि एक गुप्त राजनीतिक संवाद का भी माध्यम बन चुका था। कुंभ मेला स्वतंत्रता सेनानियों के मिलन और लोगों को जागरूक करने का एक प्रभावी मंच था। ऐसे अवसरों पर क्रांतिकारी अपने संदेश देने के लिए प्रतीकों का उपयोग करते थे, जिससे साथियों को जुटने का संकेत मिलता था।

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संगम नगरी आई थीं रानी लक्ष्मीबाई

प्रयाग तीर्थ पुरोहितों के दस्तावेज के मुताबिक झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने 1857 की क्रांति की योजना बनाने से पहले प्रयाग की यात्रा की थी। वे यहां एक तीर्थ पुरोहित के ठहरी हुई थीं। रानी लक्ष्मीबाई 1857 की क्रांति की तैयारी को लेकर संगम नगरी पहुंचीं थीं। रानी लक्ष्मीबाई ग्वालियर में नागा साधु बाबा गंगादास की बड़ी शाला में भी पहुंचीं थीं। तब 2 हजार नागा साधुओं ने अंग्रेजों के खिलाफ मैदान में उतर कर युद्ध लड़ा था। इस लड़ाई में 745 साधुओं की शहादत हुई थी। रानी लक्ष्मीबाई का संगम नगरी आना इस बात का प्रतीक था कि स्वतंत्रता संग्राम के शुरुआती दिन जब देशभर में विद्रोह की लहर थी, तो कुंभ मेला एक महत्वपूर्ण स्थान बन चुका था।

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1918 में महात्मा गांधी ने लगाई थी संगम में डुबकी

महात्मा गांधी साल 1918 में प्रयाग कुंभ पहुंचे थे, और उन्होंने डुबकी भी लगाई थी। महात्मा गांधी राजनीतिक गुरु गोपालकृष्ण गोखले की सलाह पर कुंभ में पहुंचे थे। अंग्रेज अधिकारियों की खुफिया रिपोर्ट में लिखा हुई है कि तब महात्महा गांधी लगातार लोगों से मुलाकात कर रहे थे।
खुद बापू ने 10 फरवरी 1921 की फैजाबाद जनसभा में अपनी कुंभ यात्रा का जिक्र किया था।

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अंग्रेजों ने लगाई थी रेल टिकट बिक्री पर रोक

महात्मा गांधी के कुंभ में आने और वहां लोगों की जुटने का डर अंग्रेजों को सताने लगा। इसके बाद ब्रिटिश अधिकारियों ने रेल टिकटों की बिक्री पर रोक लगा दी थी। 1918 में कुंभ की भीड़ रोकने के लिए रेलवे बोर्ड चैयरमेन आरडब्ल्यू गिलन ने रेल टिकट बिक्री पर रोक लगाई थी। स्थिति यह थी कि क्रांतिकारियों और आजादी के लिए जारी आंदोलनों से परेशान होकर अंग्रेजों ने 1930 में प्रयागराज महाकुंभ भी डरते-डरते कराया था। 

इसके बाद अगला महाकुंभ साल 1942 में प्रयाग में हुआ। भारत छोड़ो आंदोलन के चरम पर होने से अंग्रेज सरकार ने महाकुंभ के आयोजन का आधिकारिक ऐलान नहीं किया था। लेकिन रेल और बस की टिकट बिक्री पर रोक लगा दी थी। इतना ही कुंभ को प्रभावित करने खबर फैलाई गई कि विश्वयुद्ध के चलते जापान द्वारा मेले पर बम गिराया जा सकता है। इसके बावजूद कुंभ में लाखों तीर्थयात्री पहुंचे थे।

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महामना ने वायसराय को दिया यह जवाब

महाकुंभ से जुड़ी ऐतिहासिक घटनाओं में एक घटना और भी है। जब 1942 में तत्कालीन वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो प्रयाग कुंभ पहुंचे थे। वायसराय महामना मदनमोहन मालवीय के कहने पर कुंभ में पहुंचे थे। कुंभ में जनसैलाब देखकर वायसराय पूछा कि इतने सारे लोगों को बुलाने में बहुत पैसा खर्च हुआ होगा, इस पर मदनमोहन मालवीय ने जवाब दिया कि ‘सिर्फ दो पैसे खर्च हुए है। वायसराय ने कहा कि पंडिज जी आप मजाक नहीं कर रहे हैं... फिर मदन मोहन मालवीय महामना ने अपनी जेब से पंचांग निकाला और कहा यह पंचांग दो पैसे का है और इसमें से कुंभ और स्नान पर्व की जानकारी मिलती है। लोग बिना किसी निमंत्रण के यहां पहुंचते हैं।

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