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mens-suicide-rate-increasing Photograph: (thesootr)
हाल ही में TCS के मैनेजर मानव शर्मा की आत्महत्या और अतुल सुभाष की घटना ने देश को झकझोर कर रख दिया है। इन घटनाओं के बाद यह सवाल उठ रहा है कि क्या पुरुषों को भी घरेलू उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है? NCRB की रिपोर्ट के अनुसार, पुरुषों में आत्महत्या की दर में खतरनाक वृद्धि देखी गई है। इस खबर में हम इन घटनाओं के कारणों और पुरुषों के आत्महत्या के आंकड़ों पर चर्चा करेंगे, साथ ही उन कानूनों पर विचार करेंगे जिनकी वजह से यह समस्या और बढ़ रही है।
अतुल सुभाष की आत्महत्या से मुद्दा फिर आया सामने
भारत में पुरुषों की आत्महत्या की दर में लगातार वृद्धि हो रही है, और यह चिंताजनक है। हाल ही में TCS के मैनेजर मानव शर्मा और अतुल सुभाष की आत्महत्या की घटनाओं ने इस मुद्दे को फिर से सबके सामने ला दिया है। इन घटनाओं के बाद सवाल उठ रहा है कि क्या शादीशुदा पुरुष अपनी जिंदगी से परेशान हैं और क्या यह परेशानी दहेज, तलाक, और एक्सट्रा मैरिटल अफेयर जैसे कानूनों से जुड़ी हुई है?
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पुरुषों की आत्महत्या के आंकड़े
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, 2015 से 2022 के बीच 8.09 लाख पुरुषों ने आत्महत्या की। इनमें से ज्यादातर पुरुष शादीशुदा थे और उनकी आत्महत्या की वजह पारिवारिक समस्याएं थीं। NCRB की 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, देश में कुल 1.64 लाख आत्महत्याएं हुईं, जिनमें 81,000 शादीशुदा पुरुष थे।
सुसाइड की मुख्य वजह
NCRB के आंकड़े बताते हैं कि आत्महत्या के प्रमुख कारण पारिवारिक समस्याएं थीं। इनमें मानसिक उत्पीड़न, घरेलू विवाद, लड़ाई-झगड़े और शारीरिक उत्पीड़न शामिल थे। हालांकि रिपोर्ट में इन समस्याओं के विस्तृत कारणों का उल्लेख नहीं किया गया है, लेकिन यह स्पष्ट है कि कई पुरुष इन परिस्थितियों से जूझते हुए आत्महत्या का कदम उठाते हैं।
दहेज कानून और उसका दुरुपयोग
IPC की धारा 498A, जो दहेज उत्पीड़न से जुड़ी है, अक्सर विवाद का कारण बनती है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा था कि कई महिलाएं इस कानून का गलत इस्तेमाल करती हैं, जिससे पुरुषों को बेवजह परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इस कानून के तहत केस दर्ज होने के बाद, पुरुषों को खुद को बेगुनाह साबित करने का दबाव होता है, जबकि महिलाओं को कोई सबूत पेश करने की जरूरत नहीं होती।
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एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर पर कानून
IPC की धारा 497 में एक्सट्रा मैरिटल अफेयर को अपराध माना गया था, लेकिन 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया था। इस फैसले ने विवाहेत्तर संबंधों से जुड़ी कानूनी स्थिति को बदल दिया, और अब यह अपराध नहीं माना जाता।
क्या बदलाव जरूरी है?
इन आंकड़ों और घटनाओं से यह सवाल उठता है कि क्या कानूनों में बदलाव की जरूरत है? क्या पुरुषों को भी समान कानूनी सुरक्षा मिलनी चाहिए? इन सवालों के जवाब तलाशने के लिए समाज में व्यापक चर्चा की आवश्यकता है।