कोविड-19 और मंकीपॉक्स जैसे संक्रामक रोगों ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया है। पिछले कुछ दशकों में, हमने कई ऐसे रोग देखे हैं जो जानवरों से मानवों में फैले हैं। जैसे कि 2003 में सार्स (SARS), 2009 में मर्स (MERS) और H1N1 स्वाइन फ्लू, इबोला और जीका वायरस ने मानव समाज को प्रभावित किया है। अब मंकीपॉक्स के फैलने की चर्चा के बीच यह बहस भी आम हो रही है कि कौन सा खाना इन जानवर जनित बीमारियों से हमें सुरक्षित रख सकता है? आइए जानते हैं…
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हर साल करोड़ों लोग जानवरों के कारण होते हैं बीमार
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, हर साल एक अरब से अधिक लोग जानवरों से फैलने वाली बीमारियों के शिकार होते हैं। इनमें से लाखों की मौत हो जाती है। WHO का दावा है कि पिछले तीन दशकों में इंसानों में 30 नई बीमारियां सामने आई हैं, जिनमें से 75% जानवरों से फैली हैं। ये बीमारियां जानवरों को खाने ( मांसाहार ) या उन्हें बंदी बनाकर रखने से उत्पन्न होती हैं।
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मंकीपॉक्स का मंकी से क्या संबंध है?
मंकीपॉक्स (Monkeypox) का नाम 1958 में पहली बार सुना गया था, जब डेनमार्क के कोपेनहेगन में एक लैब में रखे गए बंदरों में इस बीमारी के लक्षण देखे गए। इन बंदरों के शरीर पर चेचक जैसे दाने उभर आए थे। तब इस वायरस को "मंकीपॉक्स" नाम दिया गया था। 1958 से 1968 के बीच, एशिया से आने वाले बंदरों में इस वायरस का फैलाव देखा गया। हालांकि, बाद में भारत, इंडोनेशिया, मलेशिया और जापान के बंदरों में मंकीपॉक्स के खिलाफ एंटीबॉडी नहीं मिली, जिससे वैज्ञानिकों को इसका ओरिजिन पता करने में कठिनाई हुई।
पूरी दुनिया में फैल रहा मंकीपॉक्स
1970 में, मंकीपॉक्स का पहला मानव मामला सामने आया था, जब कॉन्गो में एक 9 महीने के बच्चे में यह संक्रमण देखा गया। इसके बाद कई अफ्रीकी देशों में मंकीपॉक्स के मामलों की पुष्टि हुई। 2003 में, यह वायरस अफ्रीका से बाहर अमेरिका में फैल गया, जहां इसका संक्रमण पालतू कुत्ते से हुआ था। इसके बाद, सितंबर 2018 में इजरायल, मई 2019 में यूके, और
दिसंबर 2019 में सिंगापुर में भी मंकीपॉक्स के मामले सामने आए। भारत में भी हाल ही में मंकीपॉक्स का एक मामला दर्ज किया गया है।
तो क्या जानवरों से दूर रहना चाहिए?
WHO के अनुसार, मंकीपॉक्स एक दुर्लभ बीमारी है जो जानवरों से इंसानों में फैलती है। यह वायरस वैरियोला वायरस फैमिली का हिस्सा है जो चेचक का कारण बनता है। मंकीपॉक्स के लक्षण चेचक जैसे होते हैं, लेकिन बेहद कम मामलों में यह घातक साबित होता है। मंकीपॉक्स के फैलाव का मुख्य स्रोत जानवर हो सकते हैं, और इससे इंसानों में ट्रांसमिशन की संभावना बनी रहती है। यानी हमें जानवरों से दूरी बनाकर रखना चाहिए।
क्या नॉन-वेज खाने से खतरा बढ़ता है?
कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि भविष्य में और महामारियों का सामना करना पड़ सकता है, इसलिए जानवरों से फैलने वाली बीमारियों पर ध्यान देना आवश्यक है। 2013 में, फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन (FAO) ने चेतावनी दी थी कि लाइव स्टॉक हेल्थ हमारी ग्लोबल हेल्थ चेन की सबसे कमजोर कड़ी है। रिपोर्टों के अनुसार, 90% से अधिक मांस फैक्ट्री फार्म से आता है, जहां जानवरों को भीड़-भाड़ में रखा जाता है, जिससे वायरल बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
तो क्या वेजिटेरियन बनकर बचा जा सकता है?
वेजिटेरियन डाइट अपनाने से केवल स्वास्थ्य ही नहीं, बल्कि पर्यावरण और अर्थव्यवस्था पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। PETA का मानना है कि वेजिटेरियन डाइट अपनाकर न केवल स्वास्थ्य समस्याओं से बचा जा सकता है, बल्कि वैश्विक खाद्य संसाधनों का बेहतर उपयोग भी किया जा सकता है। वर्ल्ड वॉच इंस्टीट्यूट के अनुसार, मांस उत्पादन में अनाज का दुरुपयोग होता है, जिससे भूख की समस्या बढ़ती है। वेजिटेरियन डाइट अपनाने से आर्थिक रूप से भी लाभ होगा, जिससे 2050 तक 31 ट्रिलियन डॉलर की बचत संभव हो सकती है।
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