NEET-JEE के एग्जाम क्यों बन रहे कठिन, सरकार करेगी चार साल के पेपर्स की जांच

नीट, जेईई और सीयूईटी परीक्षा के हार्ड होने को लेकर उठ रहे सवालों के बीच शिक्षा मंत्रालय कमेटी गठित कर रहा है। यह कमेटी पिछले चार साल के पेपर्स का साइकोमैट्रिक विश्लेषण कर 2026 से बदलाव की सिफारिश कर सकती है।

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Rohit Sahu
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शिक्षा मंत्रालय ने NEET-JEE और सीयूईटी (यूजी) जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं के हार्ड क्वेश्चन पेपर को लेकर जांच शुरू कर दी है। कमेटी यह मूल्यांकन करेगी कि ये पेपर 12वीं के औसत छात्रों के लिए कितने उपयुक्त हैं। इसके तहत 4 सालों के पेपर्स का साइकोमैट्रिक एनालिसिस किया जाएगा।

कोचिंग डिपेंडेंसी पर चिंता

केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय को लगातार शिकायतें मिल रही थीं कि बिना कोचिंग या विशेष गाइडेंस के यह पेपर क्रैक करना संभव ही नहीं है। कुछ बोर्डों के छात्र आउट ऑफ सिलेबस सवालों की शिकायत भी कर रहे थे। शिकायतों पर मंत्रालय की कमेटी जल्द ही अपनी रिपोर्ट सौंपेगी।

बदलाव 2026 से होंगे संभव

राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (NTA) 2026 से नई सिफारिशों के आधार पर पेपर स्ट्रक्चर में बदलाव कर सकती है। इसका मतलब पेपर को बहुत आसान बना देना नहीं होगा बल्किलेवल को संतुलित करना होगा।

कठिन प्रश्नों और भाषा के स्तर की होगी जांच

एनालिसिस में यह देखा जाएगा कि प्रश्न औसत छात्र की समझ को सही परख रहे हैं या नहीं। सवालों की भाषा कहीं भ्रमित करने वाली तो नहीं, सभी छात्रों को समान अवसर मिल रहा या नहीं।

जेईई में ट्रिकी सवाल, मैथ्स सबसे कठिन

जेईई में पिछले वर्षों में केमिस्ट्री आसान, फिजिक्स मध्यम और मैथ्स सबसे कठिन रही है। खासकर मैथ्स में नए टॉपिक्स और कैलकुलेशन भारी रहते हैं। कुछ शिफ्ट में कठिनाई का स्तर भी अलग-अलग होता है, जिसके लिए Normalization जरूरी होता है।

नीट-2025 में कोई भी छात्र नहीं पार कर सका 700 अंक

नीट के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ जब कोई छात्र 700 अंक नहीं ला सका। इससे पहले 2024 में 67 छात्रों को 720 अंक मिले थे। फिजिक्स में लंबे कैलकुलेशन वाले सवाल छात्रों के लिए चुनौती बने रहे हैं।

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पेपर सेटर्स के नजरिए पर भी विचार

जेईई एडवांस के पेपर आईआईटी प्रोफेसर बनाते हैं, जो टॉप क्लास के छात्रों को ध्यान में रखकर प्रश्न बनाते हैं। इससे सामान्य छात्रों के लिए पेपर काफी कठिन हो जाता है।

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क्षेत्रीय भाषाओं के पेपर में गलत अनुवाद भी परेशानी

कमेटी यह भी देखेगी कि क्या अलग-अलग भाषाओं के पेपर में सवाल एक जैसे हल हो रहे हैं। कई बार अनुवाद की गलतियों से छात्र गलत जवाब दे बैठते हैं।

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